बदले-बदले से सरकार नजर आते हैं…
जिस हिसाब से उनकी इंट्री इंदौर की पॉलिटिक्स में हुई थी, उसी तरह चुनाव के पहले उनका पद जाता रहा। खैर, वो अकेले नहीं थे, जिन्होंने पद गंवाया। सफेद कुर्ता और वही पुराना जलवा आज भी बरकरार है, लेकिन साब के व्यवहार में थोड़ा अंतर तो है। वह पुरानी ठसक तो जाती रही, अब वे भी दूसरे नेताओं के समकक्ष हैं। कोशिश है कि फिर से इंदौर में कहीं न कहीं किसी पद पर बैकडोर इंट्री हो जाए। उनकी इंट्री को लेकर शहर के कुछ नेता जुगाड़ भिड़ा रहे हैं कि कैसे भी हो उनको रोका जाए। कुछ नेताओं का तो दबी जुबां में कहना है कि अगर ये फिर किसी बड़े पद पर बैठ गए तो इंदौर की राजनीति में कई नेताओं की दुकानें बंद हो जाएंगी। खैर, साब तो साब हैं। इंदौर के हर कार्यक्रम में उन्हें मंच पर आगे की कुर्सी मिल रही है, लेकिन भाषणबाजी का मौका नहीं।
चिंटू की चाल का धमाल
जब से जिलाध्यक्ष की कुर्सी पर चिंटू वर्मा बैठे हैं, तब से उनकी चाल को देखकर भाजपा नेता भविष्य का अंदाजा लगा रहे हैं। वैसे चिंटू देपालपुर से विधानसभा के दावेदार थे, लेकिन यहां मनोज पटेल टिकट ले आए। चिंटू को उस समय आश्वस्त किया गया था कि कुछ अच्छा होगा और उन्हें अध्यक्ष बना दिया गया। हाल ही में हुए चुनाव में महू में मिली धार सीट की बढ़त का सेहरा चिंटू के ही माथे सजाया जा रहा है। अभी जब केंद्रीय राज्यमंत्री सावित्री ठाकुर इंदौर में थीं, तब उन्हें मिली तवज्जो कुछ नए संकेत दे रही है।
पटवारी के लिए नहीं दिख रही आसान राह
लोकसभा चुनाव निपटने के बाद अब जीतू पटवारी को कांग्रेस चलाने के लिए डगर आसान नजर नहीं आ रही है। बड़े नेता इशारों ही इशारों में तीर चलाना नहीं भूल नहीं रहे हैं। वे पटवारी को कमजोर नेता साबित करने में लगे हंै। कमलनाथ ने पहले ही भोपाल से मुंह फेर लिया है, दिग्गी मौन हैं। सज्जनसिंह वर्मा पहले ही कह चुके हैं कि डर के राजनीति नहीं होती। अजयसिंह ने भी खरी-खरी सुना दी हैऔर अब अरुण यादव का मुंह भी खुल गया है। दरअसल कांग्रेस की प्रदेश की राजनीति में पटवारी को शुरू से ही पचाया नहीं जा रहा है। इसलिए समय-समय पर उन पर हमले हो रहे हैं। अब पटवारी आलाकमान से फ्री हैंड मिलने का दावा तो कर रहे हैं, लेकिन ये दावा मैदान तक नहीं आ पा रहा है।
महापौर-सांसद की जुगलबंदी का राज
महापौर पुष्यमित्र भार्गव और सांसद शंकर लालवानी की जुगलबंदी का राज क्या है? दरअसल सांसद द्वारा करवाए जाने वाले मालवा उत्सव में इस बार सांसद के साथ महापौर का भी नाम है। इस जुगलबंदी को क्या नाम दिया जाए, यह इंदौरी नेताओं को समझ नहीं आ रहा है। सब जानते हैं कि कभी लालवानी का लक्ष्य चार नंबर विधानसभा थी और महापौर भी इसी विधानसभा को लेकर खबरों में छाए रहते हैं। हो न हो इस जुगलबंदी के पीछे कोई न कोई बड़ा राजनीतिक कारण जरूर छिपा हुआ है।
दूध के जले हैं…छांछ भी नहीं पी रहे हैं
कहावत हैदूध का जला छांछ भी फूंक-फूंककर पीता है, लेकिन यहां तो नेताजी छांछ से ही डर रहे हैं, क्योंकि वे एक बार इसका स्वाद ले चुके हंै और जिस तरह से उन्हें अपनों ने ही छांछ बताकर दूध पकड़ा दिया था, उससे वे अब हर कदम सावधानी से रख रहे हंै। पेशे से व्यापारी नेताजी को अब एक बार फिर शहर कांग्रेस की कुर्सी नजर आ रही है, जो खटाई में पड़ गई थी। सामने से तो वे कुछ नहीं बोल रहे हैं, लेकिन बता रहे हैं कि मैं तो पिछली बार भी आगे होकर नहीं गया था और इस बार बार भी आगे होकर नहीं जाऊंगा। पार्टी को अगर मुझे बनाना है तो आगे होकर आए। नेताजी ने तो अपनी बात कह दी है, देखते हैं आगे क्या होता है?
इंदौर के वे कांग्रेसी नेता, जिनकी दुकान कमलनाथ के सहारे चल रही थी, उनका शटर डाउन होने वाला है। फिलहाल तो किसी में हिम्मत नहीं है कि वे छिंदवाड़ा का रास्ता छोड़ दें, लेकिन वे अपने आका के फैसले का इंतजार कर रहे हैं। वैसे इसी बीच राज की बात यह है कि इनमें से कुछ नेता तो दूसरे बड़े नेताओं के साथ नजर आने लगे हैं, ताकि उनकी दुकान तो चलती रहे। -संजीव मालवीय
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved