भोपाल की राह तकने लगे इंदौरी नेता
लोकसभा चुनाव निपट चुके हैं और नई सरकार भी बन गई है। अब जिन नेताओं ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव में काम किया था वे भोपाल की राह तक रहे हैं कि उन्हें भी बुलावा आ जाए और कुछ न कुछ फायदे का पद उनको थमा दिया जाए। इंदौर में ऐसे नेताओं की एक लंबी लिस्ट है, जिनमें से कुछ को ही पद मिलने वाला है। संगठन ने अभी इशारा तो नहीं किया है, लेकिन जो नेता उम्मीद से हैं वे कह रहे हैं कि अब 3 साल से पहले कोईचुनाव नहीं है, इसलिए जल्द ही पार्टी को कोई निर्णय लेना चाहिए, नहीं तो कार्यकर्ताओं को टूटते देर नहीं लगती। निगम-मंडल समाप्त करने की खबर ने इन नेताओं की नींद तो उड़ाकर रख दी है। वैसे संगठन चुनाव पूरे होने तक पदों की बंदरबांट नहीं होने वाली है और इसमें ही 2 से 3 महीने का समय निकलने वाला है।
भीड़ कम होने लगी दीनदयाल भवन पर
भाजपा कार्यालय दीनदयाल भवन पर इन दिनों कार्यकर्ताओं की भीड़ नजर नहीं आ रही है। नहीं तो एक समय था कि कार्यकर्ता प्रतिदिन यहां आते और नेताओं से मिलते थे। खैर, अब संगठन मंत्री हैं नहीं और दूसरे नेता भी कार्यालय के बजाय कार्यकर्ताओं को अपने घर बुलवा लेते हैं। चुनाव के बाद तो एक तरह से ऐसा सन्नाटा छाया हुआ है, जैसे कि कांग्रेस कार्यालय हो। दिन में जरूर एक-दो नेता आते हंै और अपना काम करके चले जाते हैं। यूं भी अब तीन साल तक चुनाव नहीं है, इसलिए अब सब काम-धंधे में लग गए हैं।
भाजपा कार्यालय के पास शराब दुकान, रुझान शुरू
दीनदयाल भवन के पास खुली शराब दुकान के रुझान आना शुरू हो गए हैं। दुकान से लेकर कार्यालय तक शराबियों का आना-जाना जारी है। जहां राजमाता की प्रतिमा लगी है, वहां शराब की खाली बोतलें भी मिल जाती हैं और कुछ ऐसे हैं, जिनका कोई घर है ना बार, इसलिए उन्होंने शराब दुकान के आसपास अपना ठीया बना लिया है। दो दिन पहले तो एक शराबी ने इतना हंगामा मचाया कि उसके परिवार वालों को उसे रिक्शा में डालकर ले जाना पड़ा। ऐसे वाकये रोज हो रहे हैं और संस्कृति की दुहाई देने वाली भाजपा के कर्ताधर्ता मौन हैं।
इतना बड़ा गांधी भवन और मैडम के घर बैठक
लोकसभा चुनाव के पहले कांग्रेस की नेत्री शोभा ओझा के घर रोज होने वाली बैठक पर कुछ नेताओं ने सवालिया निशान लगाए, लेकिन कर कुछ भी नहीं सकते थे। गांधी भवन में भी बैठक हो सकती थी, लेकिन मैडम हर दिन अपने घर से ही कांग्रेस को संचालित कर रही थीं। मैडम का सीधे दिल्ली दरबार से जुड़ा होना और डायरेक्ट वहां रिपोर्ट करने की बात से सभी पीछे हट जाते थे। हालांकि कांग्रेस ने जितनी ताकत लगाई, उसका फल नोटा के रूप में मिला। पहले अपने आपको चुनाव से दूर रखने वाली मैडम क्यों सक्रिय हुईं इसका कारण भी पता लगाया जा रहा है।
कांग्रेस में बदलाव की खबर के बाद अब कुछ स्थानीय नेता सक्रिय होने लगे हैं। मीडिया में छोटे-छोटे मुद्दे लाकर वे बताना चाह रहे हैं कि उनके जैसी सक्रिय राजनीति करने वाला कोई नहीं, लेकिन इस बार पटवारी घर से ही इसकी शुरुआत करने वाले हैं और घर में तो उन्हें मालूम है कि कौन वास्तव में कांग्रेस के प्रति वफादारी कर रहा है और कौन हवाबाजी? -संजीव मालवीय
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