ब्‍लॉगर

ये पॉलिटिक्स है प्यारे

एक वार्ड दो पार्षद, किसका आदेश माने?
इंदौर में एक वार्ड ऐसा है जहां-जहां दो-दो पार्षद हंै। अब निगम अधिकारियों और कर्मचारियों के सामने विडंबना है कि वे किसका कहना माने। वैसे दोनों ही पार्षद नियमानुसार कुछ नहीं है, लेकिन पहले के पार्षद अपने आपको पार्षद नहीं मानने को तैयार नहीं है और दूसरे ने अपने आपको पार्षद मानकर निगम के कामों में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया है। मामला वार्ड क्रमांक 44 का है जहां कोर्ट ने यहां की भाजपा पार्षद निशा देवलियाका निर्वाचन शून्य घोषित कर दूसरे नंबर पर रही उनकी प्रतिद्वंद्वी… पिंटू मिश्रा को पार्षद घोषित कर दिया था। बाद में देवलिया इस मामले में हाईकोर्ट से स्टे ले आईं। हालांकि उनकी पार्षदी तो जाती रही, लेकिन वार्ड का पार्षद कौन होगा, ये अभी तय नहीं है। बस इसी को लेकर दोनों में रोज ठनी रहती है। दोनों ही तेजतर्रार हैं और निगम के अधिकारी और कर्मचारी दोनों ही से पंगा मोल नहीं लेना चाहते, इसलिए दोनों की ही हां में हां मिलाते रहते हैं।

तोमर के समर्थकों की संख्या घटने लगी
नरेन्द्रसिंह तोमर का एक समय जलवा हुआ करता था। विधानसभा चुनाव के पहले जब उन्हें लगा कि उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। बस फिर क्या था उनके आगे-पीछे भीड़ बढऩे लगी, लेकिन हुआ कुछ उलट ही। पिछले दिनों जब वे इंदौर आए तो उन्हें लेने कोई नहीं पहुंचा। उनके पुराने पट्टे सुदर्शन गुप्ता जरूर वहां पहुंच गए। बाद में जब दूसरे नेताओं को खबर लगी तो वे दौड़ते-भागते पहुंचे। वैसे तब तक गुप्ता बता चुके थे कि उनके अलावा तोमर का कोई बड़ा समर्थक यहां है नहीं।


जोश नजर आ रहा है कांग्रेसियों में
सबकुछ लुटा के होश में आए तो क्या किया? वाली कहावत इन दिनों कांग्रेसियों पर फिट बैठ रही है। लोकसभा चुनाव में नोटा का बटन दबाने वाले कांग्रेसी अगर अपने अधिकृत प्रत्याशी के लिए इतनी मेहनत कर लेते तो शायद आज कांगे्रस जिंदा रहती। खैर अब कांग्रेस में जोश डालने का काम स्थानीय सरकार के नेता कर रहे हंै। निगम में नेता प्रतिपक्ष चिंटू कुछ न कुछ करके चर्चाओं में बने रहते हैं और कुछ भी हो, उन्होंने बड़े नेताओं को भी साध रखा है और वे भी उनके प्रदर्शन और धरने में नजर आने लगे हैं।

मोती की माला सजने के पहले कहीं बिखर न जाए
कांग्रेस के नेता मोतीसिंह पटेल ने विधानसभा का टिकट नहीं मिलने पर मुंह बना लिया था, लेकिन विशाल पटेल के पाला बदलने के बाद उनकी चल निकली और मोती चममचमाने लगे। मोती की माला कहां सजेगी, इसको लेकर तो अभी कुछ कहा नहीं जा सकता, लेकिन लगातार मोती की चमक बता रही है कि कुछ बड़ा होने वाला है। देपालपुर से विधानसभा का दावा करने वाले मोतीसिंह की राह में वैसे अभी कई रोड़े हैं और एक बड़ा रोड़ा उनके सामने आन खड़ा हुआ है,जिसको लेकर वे भी बेचैन हैं। अब आने वाला समय उनके राजनीति में क्या गुल खिलाएगा ये तो अभी नहीं बोला जा सकता। लोग कह रहे हैं कि कहीं मोतियों की ये माला सजने के पहले ही बिखर नहीं जाए।

रवानगी तय तो फिर मेहनत क्यों करें?
जब से इंदौर में युवक कांग्रेस का अध्यक्ष रमीज खान को बनाया गया है, तब से उन्हीं की पार्टी के नेता पचा नहीं पा रहे हैं। नेताओं का कहना है कि रमीज अपनी ही चलाते हैं। खैर चुनावों में युवक कांग्रेस ने कितने झंडे गाड़े, ये सबके सामने ही है। दो दिन पहले इंदौरआए प्रदेश अध्यक्ष मितेन्द्रसिंह का जिस तरह से स्वागत होना था वैसा हुआ नहीं। बताया जाता है कि इस मामले में वे नाराज दिखे। गांव से भी दौलत पटेल ऐसा कुछ खास नहीं कर पाए, जिससे प्रदेश अध्यक्ष खुश होकर जा सके। खैर अब इनकी रवानगी होना है तो मेहनत करने से कोई फायदा भी नहीं था।


राजनीति छोड़ नए काम में कूद गए
श्रमिक क्षेत्र में अपनी पत्नी को पार्षद का चुनाव लड़ा चुके एक नेता राजनीति में अपनी चलती न देख नए काम में कूद गए। उन्हें पुराने साथियों का साथ मिला और अब वे भानगढ़-भांग्या की ओर ज्यादा देखे जा रहे हैं। कुछ बड़ा कर रहे हैं। रहते दो नंबर में हैं, लेकिन काम सांवेर में हो रहा है। राजनीति की दुकान पूरी तरह से मंगल नहीं की है, क्योंकि जो काम वे कर रहे हैं, उसमें ऊंच-नीच हो गई तो….वैसे भी उन्हें राजनीति में लाने वाले अब नहीं हैं। उन्होंने समझ लिया है कि अपनी राजनीति भी तब तक ही जिंदा है, जब तक जेब भारी है, बाकी तो कोई पूछने वाला नहीं है।

घर तो लौटे…लेकिन रास्ते में अटके पड़े हैं
एक निर्दलीय पार्षद और उनके पति को फिर से भाजपा की माला पहना दी गई। वोटों का सवाल था। वैसे भाजपा ने इस मामले में पहले ही नोटिस दे दिया था, लेकिन जब वोटों का मामला हो तो राजनीति में सबकुछ चलता है। ये अलग बात है कि वे भाजपा को बड़े चुनाव में अपने लोगों के वोट नहीं दिलवा पाते हैं और वार्ड की राजनीति भी उनके आगे-पीछे ही मंडराती रहती हैं। खैर वे घर वापसी के लिए निकले तो हैं, लेकिन अभी भोपाल से फरमान नहीं आने के चक्कर में रास्ते में अटके पड़े हैं।

चुनाव निपटते से ही भाजपा में आए कुछ नए-नवेले नेताओं को निगम-मंडल की कुर्सियों के सपने आने लगे हैं। ऐसी ही कुछ स्थिति इंदौर में भी बन रही है। विधानसभा चुनाव के पहले संघ से भी कुछ नेताओं की आमद हुई थी और कांग्रेस से भी। नियुक्ति तो होना है, लेकिन लॉटरी किसकी खुलती है, ये आने वाला वक्त ही बताएगा।
-संजीव मालवीय

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