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    ये पॉलिटिक्स है प्यारे

  • May 20, 2024

    कोशिश के अलावा और क्या कर सकते हैं?
    कोशिश तो बहुत की, लेकिन कांग्रेस का कमिटमेंट वोट बैंक नहीं रोक पाए। हालांकि भाजपा के मुस्लिम विभाग यानि अल्पसंख्यक मोर्चा द्वारा दावा किया जा रहा है कि इस बार मुस्लिमों के इलाके में परिणाम आश्चर्यजनक आएंगे, क्योंकि हमने बहुत कुछ लोगों का रोका है। इंदौर में 9 वार्ड है, जहां मुस्लिम मतदाता गड्ढा कर देते हैं और इस गड्ढे को कम करने के लिए दूसरे क्षेत्रों में मतदान बढ़ाया गया है। 5 नंबर विधानसभा में एक बड़ा गड्ढा है, जहां के निवासी दोनों ही पार्टियों में अल्पसंख्क मोर्चा की जवाबदारी संभाले हैं और दोनों भाई भी हैं। एक ओर शेख अलीम हैं तो दूसरी ओर शेख असलम। दोनों के अपने दावे हैं और 4 जून को यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस ने कितने वोट डलवाए और भाजपा कितने लोगों को नोटा पर बटन दबाने से रोकने में कामयाब रही।


    सावन कहां बरसेंगे
    सावन सोनकर की राजनीतिक जमीन पर अब तुलसी की फसल काटी जा रही है। राजेश सोनकर पहले ही जिलाबदर कर दिए गए हैं। सावन के पास अब सांवेर में फिर से बरसने का कोई कारण नजर नहीं आ रहा है। राज्य सरकार ने उन्हें राज्यमंत्री का पद देकर उपकृत तो कर दिया, लेकिन उससे उन्होंने कितनों का भला किया ये वे ही जाने। आने वाले 3 साल में चुनाव भी नहीं है। ऐसे में सावन कहां बरसेंगे, इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। सावन के कई समर्थक भी ऐसी स्थिति में है कि किधर जाएं। फिर भी सावन के नाम का झंडा उठाने वाले अभी इंतजार के मूड में हैं।
    सक्रिय कार्यकारी अध्यक्ष
    देवेंद्र सिंह यादव अपने लोगों के नेताओं की टोली को लेकर कुछ न कुछ उतापे करते रहते हैं। अब उडऩदस्ता बनाया है 55 लोगों का, लेकिन अक्षय कहीं नजर नहीं आ रहा है। कोई इसे बम स्क्वाड का नाम भी दे रहा है। एक नेता ने तो अक्षय का पीछा करने की कहानी भी बनाई, लेकिन वह भी अधूरी ही रही। उडऩदस्ता बनाए 4 दिन हो गए हैं, लेकिन कांग्रेसी अभी तक अक्षय को ढूंढ नहीं पाए हैं। वैसे देवेन्द्र ही हैं, जो हर मामले में आगे हो जाते हैं, फिर भी उन्हें वो मुकाम नहीं मिल पाता, जिसके लिए वे सारे दन-फन करते हैं। वो सुबह कभी तो आएगी… के चक्कर में देवेन्द्र के पास इंतजार ही है।

    मंत्रीजी का सोशल मीडिया प्रेम
    पिछले दिनों एक राजनीतिक परिवार की हस्ती का निधन हो हुआ। परिवार के झंडाबरदार रहे एक प्रभावी नेता के पास अंतिम संस्कार की व्यवस्थाएं देखने की जवाबदारी थी। बस फिर क्या था नेताजी ने न केवल व्यवस्थाएं की, बल्कि अपनी फोटो इसी परिवार के एक-दूसरे झंडाबरदार के साथ सोशल मीडिया पर शेयर कर डाली, जिसकी जरूरत नहीं थी।अरे नेताजी हम जानते हैं कि इस परिवार के आप कितने खास हो और फिर आपकी कुर्सी भी सही सलामत है तो फिर ये प्रचार क्यों? खैर राजनीति है और राजनीति में सबकुछ दिखाना पड़ता है और फिर जब सोशल मीडिया है तो अपने मुंह मियां मि_ू बनने से क्या फर्क पड़ता है?


    इंदौर कांग्रेस से किसकी बलि होगी
    आने वाले दिनों में कांग्रेस संगठन में कई परिवर्तन होना है। इसमें इंदौर के दोनों अध्यक्षों पर भी गाज गिरना तय माना जा रहा है, क्योंकि दोनों के रहते ऐसा कुछ खास नहीं हुआ, जिससे लोकसभा चुनाव में कांग्रेस आगे रही हो। बचीकुची कसर बम विस्फोट से हो गई। इसके बाद जो लोग कांग्रेस छोडक़र चले गए, उसका ठीकरा भी लोकल नेताओं पर फूटा। ग्रामीण के जिला अध्यक्ष विधानसभा चुनाव के बाद बच गए थे, लेकिन अब कहा जा रहा है कि उन्हें भी रवानगी दी जा सकती है। इसके लिए दावेदार दूसरे नेताओं ने भोपाल तक दौड़भाग लगाना शुरू कर दिया है और यादव को कटघरे में उतारा जा रहा है।
    एक ढपली पर एक ही राग अलापते रहे
    इंदौर में जिस तरह का चुनाव कांग्रेस ने लड़ा है, उसकी कल्पना भी किसी ने नहीं की होगी। ‘बम विस्फोट’ के बाद छितरे-छितरे हुई कांग्रेस के पास कुछ बचा नहीं था। न ही उनके पास ऐसा कोई मुद्दा रहा, जिससे वे जनता की अदालत में अपना पक्ष रख सके। बस हर जगह वही बम वाली कैसेट बजाते रहे। कांग्रेसियों को ये ध्यान नहीं रहा कि नोटा दबवाने के और भी कई कारण हो सकते थे, जिस पर लोगों का ध्यान लाया जा सकता है, लेकिन सभी एक ही ढपली पर राग अलाप रहे थे। अगर कांग्रेसी महंगाई, भ्रष्टाचार और अन्य मुद्दों को सामने लाते तो लोगों की मदद भी उन्हें मिलती।


    फिलहाल तो मानना पड़ रही है कांग्रेसियों की
    गर्मी के मौसम में नेतागीरी का एक बड़ा काम होता है लोगों को पानी उपलब्ध कराना। जिस तरह से शहर में पानी की कटौती के हालात बने हुए हैं, उसमें भाजपा पार्षद अपने-अपने क्षेत्र में पानी के टैंकर दौड़ा रहे हैं। अब इनमें वे कांग्रेसी भी शामिल हो गए हैं, जो भाजपा में आ गए हैं। उन्हें भी अपनी राजनीतिक दुकान चलाने के लिए टैंकर चाहिए और पुराने भाजपाई जमी-जमाई दुकान बिगाडऩा नहीं चाहते। फिर भी बड़े नेताओं के कहने पर कांग्रेसियों की बात मानना पड़ रही है। आगे-आगे देखो होता है क्या?

    जीतू पटवारी द्वारा भेजा गया खर्चा-पानी कहां खर्च हो गया, ये पता लगाया जा रहा है। कुछ क्षेत्रों में बूथ पर कांग्रेसी नहीं थे, लेकिन खर्चा सबने बता दिया था। खुद पटवारी ही इंदौर में आओ इसका पता लगाएं की तर्ज पर देख रहे हैं कि पैसा कहां गया? इसके लिए उनके जासूस विधानसभा क्षेत्रों में भेजे जा चुके हैं।
    -संजीव मालवीय

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