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ये पॉलिटिक्स है प्यारे

March 11, 2024

उपलब्धि तो बहुत गिनाई, टिकट पर नो कमेंट्स
सांसद शंकर लालवानी अभी भी उम्मीद से हैं, लेकिन भाजपा की राजनीति को जानने समझने वाले कह रहे हैं कि इंदौर जैसी सीट पर पार्टी नया प्रयोग कर सकती है और प्रयोग के परिणाम लालवानी के उलट जा सकते हैं। इंदौर में इंदौर संपादक समूह की संस्था के कार्यक्रम में जब लालवानी पत्रकारों से घिरे तो उन्होंने बिना रुके हवा, पानी और जमीन के इंफ्रास्ट्रक्चर को लेकर अपनी उपलब्धियां गिना डाली। खैर पत्रकारों से घिरे थे तो सियासी सवाल होना लाजिमी था। पूछ लिया गया कि लालवानी को टिकट मिल रहा है या नहीं? उनका जवाब था…नो कमेंट्स। फिर क्या किसी महिला को टिकट मिलेगा? जवाब मिला… नो कमेंट्स। इतने काम किए फिर भी? नो कमेंट्स। ऐसे ही कुछ सवालों पर नो कमेंट्स ही जवाब आया। वैसे लालवानी के टिकट को लेकर जितनी राजनीति हो रही है, उसको लेकर लालवानी ने अपना मुंह सील लिया है। जहां भी ऐसे सवाल होते हैं, वे मुस्कुरा देते हैं।

गनांव वाली भाजपा की अपनी चाहत
ग्रामीण भाजपा के नेता दबी जुबान में कह रहे हैं कि इस बार टिकट ग्रामीण क्षेत्र के किसी नेता को मिलना चाहिए, लेकिन ये नेता इंदौर से भोपाल के आगे नहीं जा रहे हैं। इसका तर्क भी वे दे रहे हैं कि इंदौर ग्रामीण क्षेत्र के चारों विधायक शहरी क्षेत्र में ही रहते हैं। उषा ठाकुर, मधु वर्मा, मनोज पटेल और तुलसी सिलावट चारों के शहर में मकान हैं और अब बची-खुची कसर जिलाध्यक्ष की कुर्सी पर चिंटू वर्मा को बिठाकर कर दी है, जो रहने वाले देपालपुर के हैं, लेकिन इंदौर में भी उनका मकान है औरवेअधिकांश समय यहीं गुजारते हैं। खैर गांव वाली भाजपा की चाहत सांसद के टिकट की है, लेकिन होगा वही जो दिल्ली चाहेगी।


सब दावे टांय-टांय फिस्स हो गए
राहुल गांधी की यात्रा की पोल अब धीरे-धीरे खुलती जा रही है और जिन इंदौरी नेताओं को जवाबदारी दी गई थी अगर उनके भरोसे जीतू पटवारी रहते तो बदनावर में उनकी लुटिया डूबना तय थी और यह उनका अध्यक्ष के बतौर राहुल गांधी के सामने पहला इम्प्रेशन था जो ठंडा पड़ जाता। कइयों ने तो इंदौर में हुई बैठक में बड़े-बड़े दावे कर डाले थे कि वे अपने साथ कार्यकर्ताओं की भीड़ लेकर पहुंचेंगे। भला हो वहां के आसपास के जिलों के नेताओं का जिन्होंने पटवारी की लाज रख ली।

पहले उठाते नहीं थे, अब फोन बंद आने लगा
विधायक मनोज पटेल के मामले में कहा जाता रहा है कि वे सीधे फोन नहीं उठाते। अगर उनसे किसी को इमरजेंसी में बात करना है तो उसे इंतजार करना पड़ता है कि विधायक जी कहां मिलेंगे। अब एक और गंदी आदत मनोज को लग गई है। उनका फोन लगाओ तो एक घंटी बजकर बंद हो जाता है। यानि फोन बंद है या फिर सभी के नंबर ब्लैक लिस्ट में डाल दिए गए हैं। खैर मनोज को इस बार की विधायकी बड़ी आसानी से मिल गई है, क्योंकि देपालपुर वाले हर बार अपना विधायक और पार्टी बदल देते हैं। अब ये बात मनोज को कौन समझाए। वैसे जिलाध्यक्ष चिंटू वर्मा के कार्यक्रम में भी वे नजर नहीं आ रहे हैं।


कांग्रेसियों में जोश नहीं
कांग्रेस की इंदौर में क्या स्थिति है, वह अब किसी से छिपी नहीं है। अपने दो बड़े नेता जो संकटमोचक और धन के साथ-साथ कांग्रेसी आयोजनों की जान थे। उनको वरिष्ठ कांग्रेसी रोक नहीं पाए। या यूं कहे कि इंदौर में ऐसा कोई नेता बचा ही नहीं जो इनसे बात कर पाता। पटवारी को भी उन्होंने नजरंदाज कर दिया। सज्जन इस पचड़े में नहीं पड़े और बचे कांग्रेसी जैसे तैसे अपनी दुकान चला रहे हैं। उनको भी डर है कि कहीं उनकी दुकान मंगल नहीं हो जाए। कुल मिलाकर सब अपने अपने हिसाब से लगे हुए हैं, क्योंकि परिणाम सबको मालूम है कि इंदौर जैसे शहर में हरल्ले नेताओं की फौज बढ़ते जा रही है जो कुछ कर ही नहीं रही तो हम क्या करे?

भरत पटवारी देख रहे हैं इंदौर
जीतू पटवारी ने अपने विधायकी कार्यकाल में अपने भाई भरत पटवारी को आगे किया और उनकी गैर मौजूदगी में वे ही अभी विधानसभा में सक्रिय हैं और हो सकता है विधायक का चुनाव लडऩे की ट्रेनिंग भरत को दी जा रही हो। वैसे भरत मैनेजमेंट में माहिर हैं, लेकिन जननेता बनेंगे, इसमें संदेह हैं। खैर पटवारी को राऊ में अपना विकल्प तो तैयार करना ही पड़ेगा, नहीं तो उनका नामलेवा यहां कोई नहीं बचेगा। वैसे एक धार्मिक आयोजन में उनकी पत्नी भी कंधे से कंधा मिलाकर उनके साथ चली। अब पत्नी या भाई, दोनों में से कोई एक पटवारी राजनीतिक विरासत संभाल सकता है।

सामने तारीफ…पीठ पीछे बुराई
नेताजी की पीठ पीछे बुराई करने वाले कुछ समर्थक अब सोशल मीडिया पर नेताजी को टिकट देने की वकालत कर रहे हैं। नहीं तो पिछले पांच सालों में वे कहते नहीं थके कि नेताजी ने हमारे लिए कुछ किया नहीं। ऐसे ही एक समर्थक कह रहे हैं कि कुछ भी हो जाए सांसदी का सेहरा तो नेताजी के सिर पर ही सकेगा। ऐसे ही कुछ और लोग अपनी तरफ से नेताजी को दिलासा दे रहे हैं कि आपका कार्यकाल अच्छा रहा। एक ने तो यह तक कह डाला कि उन्होंने विकास की योजनाएं लाने के साथ साथ अपने समाजबंधु का खूब विकास किया और दूसरे नगर निगम में टिकट तक को तरस गए।

इंदौर के लोकसभा उम्मीदवार का फैसला होना है। दबी जुबान से कहा जा रहा है कि यहां से एक महिला नेत्री का नाम लगभग तय हो गया था, लेकिन आलाकमान को मिले फीडबैक बाद कुछ बदलाव की संभावना नजर आ रही है। ये हम नहीं, बल्कि वे नेता कहते घूम रहे हैँ जो किसी जमीनी कार्यकर्ता को टिकट देने की वकालात कर रहे हैं।
-संजीव मालवीय

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