बड़बोलेपन में फंस गए नेताजी
नगर निगम में मलाईदार पद पर रहे भाजपा के नेताजी ने सोचा था कि वे कांग्रेस में जाने की धमकी देंगे और भाजपा उस धमकी से डर जाएगी, लेकिन जब दीपक जोशी और भंवरसिंह शेखावत जैसे नेताओं से पार्टी का कुछ नहीं बिगड़ा तो नेताजी की क्या बिसात? नेताजी की धमकी को पार्टी ने हलके में लिया। यूं भी नेताजी के पास अभी कार्यकर्ताओं का टोटा है और घर के झगड़े में वे फंसे हुए हैं। खैर अब उनके सामने ये परेशानी है कि उन्हें जिसने जोश दिलाया था, उनका जोश तो ठंडा पड़ गया है और वे मझधार में हैं। जिस विधानसभा से उनको टिकट चाहिए, वहां पहले ही भाजपा के क्षत्रपों का कब्जा है। ऐसे में अब नेताजी चुप हो गए हैं और सोच रहे हैं कि कहीं जोश-जोश में ज्यादा तो नहीं बोल दिया? अब तीर तो कमान से निकल चुका है और नेताजी भी बड़े नेताओं की निगाह में चढ़ गए हैं। अभी तो उनकी पूछपरख हो जाती थी, लेकिन अब उनके हालचाल भी जानने कोई नहीं जा रहा।
पहली बार गांधी भवन पर भीड़
कल दो-दो अध्यक्षों की मौजूदगी में गांधीभवन पर भीड़ जमा थी। हुआ यूं कि बारिश से प्रभावित लोगों को खाने के पैकेट बांटने के लिए गांधीभवन को केन्द्र बनाया गया और सभी मंडलम और ब्लाक अध्यक्षों को बुलाया था, ताकि उनके क्षेत्र में वे भोजन के पैकेट ले जा सके। इसी को लेकर बडी़ संख्या में कल कार्यकर्ता भी पहुंच गए। ऐसे में वहां भीड़ हो गईं। कुछ ने कह दिया कि अगर मीटिंग के लिए बुलाते तो इतने नहीं आते।
अब नेताओं के माथे हैं लाडली बहनाएं
जिन महिलाओं का लाडली बहना योजना में पंजीयन नहीं हुआ है वे भाजपा नेताओं, पार्षदों और विधायकों के चक्कर काट रही है। हर महीने लाडली बहनाओं को मिलने वाली सौगातों को लेकर उनका मन भी ललचा रहा है, लेकिन पंजीयन बंद हैं। नेता भी सीधे मना नहीं कर सकते, इसलिए उन्हें एक-दो दिन में पंजीयन शुरू करने का आश्वासन दे देते हैं। महिलाएं फिर उन्हीं के ऑफिस चली जाती है, लेकिन अब जो होना है चुनाव बाद ही होगा।
भाजपा ऐसे ही नहीं कहती देवदुर्लभ कार्यकर्ता
भाजपा में भले ही नेता की अपेक्षा बढ़ते जाती है और जब उसे उसकी अपेक्षा के अनुसार नहीं मिलता तो वह विद्रोह पर आमाद हो जाता है, लेकिन पार्टी का कार्यकर्ता वहीं का वहीं रहता है और अपनी शक्ति से पार्टी को मजबूत करने में लगे रहता है। इसीलिए पार्टी अपने कार्यकर्ताओं को देवदुर्लभ कार्यकर्ता कहकर संबोधित करती है। ऐसे ही वार्ड क्रमांक 47 के अध्यक्ष अजेश शिरा के पिता का शनिवार को निधन हो गया। शनिवार को बारिश भी हो रही थी। उनकी अंत्येष्टि कर जैसे ही वे घर पहुंचे तो मैसेज चलाने लगे कि लोगों को मदद करने के लिए उनके विधायक क्षेत्र में पहुंच रहे हैं। इस पर भाजपा नेता विकास जैन ने उन्हें डपटा और कहा कि पिता की राख ठंडी नहीं हुई और तुम नेतागिरी में लग गए। इस पर शिरा ने कहा कि मोदीजी भी तो अपनी मां का अंतिम संस्कार कर पार्टी का काम करने लगे थे।
टिकट के पते नहीं और कार्यालय खोल लिया
ग्रामीण क्षेत्र में कांग्रेस के एक कद्दावर नेता हैं। कांग्रेस सरकार में इनकी तूती बोलती थी, लेकिन सरकार पलट जाने के बाद अब वे दूध के सबसे प्लांट के कर्ताधर्ता हैं। विधायक के टिकट के दावेदारी तो वे कर ही रहे हैं और एक बड़े नेता ने उन्हें आश्वस्त भी कर दिया है। इसी को लेकर उन्होंने उस क्षेत्र में अपना कार्यालय शुरू कर दिया है, जहां से उन्हें चुनाव लडऩा है। लोगों की समस्या सुलझाने का दावा करने वाले नेताजी की समस्या तो फिलहाल टिकट लाना ही है।
फर्जी लिस्ट ने मचा दी नेताओं में हलचल
पिछले दिनों किसी ने भाजपा की एक सूची जारी करके हलचल मचा दी। इस सूची में ऐसे-ऐसे नाम विधानसभा के उम्मीदवारों के रूप में रखे गए थे, जिन पर विश्वास नहीं किया जा सकता था। हालांकि कुछ बड़े नेताओं ने भी ये सूची सोशल मीडिया पर चला दी और इंदौर से भोपाल तक सूची को लेकर तहकीकात होने लगी, लेकिन बाद में मालूम पड़ा कि ऐसी कोई सूची जारी ही नहीं की गई है, तब जाकर दावेदारों ने चैन की सांस ली, लेकिन जिनके नाम सूची में थे वे फूले नहीं समाए।
इस बार आयोजकों का मेहनत नहीं करना पड़ी
पिछले दिनों इंदौर आए उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए भीड़ जुटाने के लिए भाजपा नेताओं को मशक्कत नहीं करना पड़ी। नहीं तो सरकारी आयोजनों में भीड़ का टोटा पड़ जाता था। योगी जहां-जहां भी गए वहां युवाओं की भीड़ ने उनका स्वागत किया। इससे ये तो जाहिर है कि योगी का जलवा बढ़ता जा रहा है। शिवाजी वाटिका चौराहे पर नगर निगम के कार्यक्रम में भी युवाओं की संख्या बता रही थी कि कार्यक्रम उन्हीं के लएि रखा है। कार्यक्रम में मंत्री तुलसी सिलावट, उषा ठाकुर और अन्य नेताओं के भाषण पहले ही करवा दिए गए, लेकिन उनको सुनने में युवाओं की रूचि नहीं थी। जब भी कोई एम्बूलेंस साइरन बजाते हुए वहां से निकलती वे लोग उस ओर देखने लगते। उनकी ये उत्सुकता बता रही थी कि मोदी के बाद योगी ही हैं जो युवाओं में सर्वाधिक लोकप्रिय हैं।
कांग्रेस और भाजपा के दावेदार परेशान हैं। हर दिन कोई न कोई चंदे का कट्टा लेकर उनके पास पहुंच जाता है और फिर शुरूआत होती है 5 हजार रुपए से जो 500 रुपए पर आकर टिक जाती है। खैर ये तो होना ही था, जब घर में ब्याव मंडता है तो दुल्हे से उम्मीदें बढ़ जाती हंै कि वो अब सबकी पूछपरख करता रहे। खैर गणेश उत्सव में मामला चंदे तक सीमित होता है, लेकिन अब नवदुर्गा उत्सव और दशहरा भी आएगा। नवदुर्गा उत्सव में तेल के डिब्बे और आटा लगेगा तो रावण का पुतला जलाने के लिए चंदा लगेगा। हालांकि तब तक आचार संहिता लग सकती है।
-संजीव मालवीय
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved