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ये पॉलिटिक्स है प्यारे

October 05, 2020


पटवारी के जानी दुश्मन तुलसी सिलावट
लगता है तुलसी सिलावट के पार्टी छोडऩे से पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ से ज्यादा नुकसान पूर्व मंत्री जीतू पटवारी का हुआ है। तभी तो जब उनको बोलने का मौका मिलता है तो सिलावट को निशाने पर लेना नहीं भूलते हैं। जब भी वे बोलते हैं सिलावट उनकी हर बात में होते हैं और इस तरह पिल पड़ते हैं कि वे उनके जानी दुश्मन हो, लेकिन इन सबको लाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ बोलने के मामले में वे मुरव्वत कर जाते हैं। बोलना भी चाहिए, आखिर जैसे-तैसे मंत्री की कुर्सी तक पहुंचे थे और 15 महीने में ही कुर्सी खिसक गई। दूसरा निशाना उनका मनोज चौधरी है जो हाटपिपलिया में उनका ही विधायक था।

गुड्डू नहीं कर पा रहे विरोध
भाजपा के पास जिस तरह का सोशल मीडिया का नेटवर्क है, वैसा नेटवर्क कांग्रेस के पास नहीं है। गुड्डू के पास जरूर इस मामले में एक अच्छी टीम है, लेकिन वह भाजपा के वीडियो या आरोपों का सोशल मीडिया पर जवाब देने में पीछे हैं। पिछले दिनों गुड्डू का एक पुराना वीडियो चलाया गया, जब वे भाजपा में थे, लेकिन गुड्डू की टीम उसका विरोध करने में पीछे रह गई और वो वीडियो खूब चला, जिसमें वे कमलनाथ की बुराई कर रहे हैं। गुड्डू की टीम समझ पाती तब तक तो पूरा रायता फैल गया था।

तुलसी की पैनी नजर
तुलसी सिलावट की जगह भाजपा चुनाव लड़ रही है, लेकिन पेलवान भी अपने हिसाब से पूरा मामला देख रहे हैं। जनसंपर्क शुरू हो गया है और कौन-सा नेता उनको कहां चाहिए, वे ये संगठन को पहले ही बता देते हैं और वह नेता नहीं पहुंचता है तो संगठन के पास पेलवान का फोन पहुंच जाता है। वहीं जनसंपर्क में कोई नेता जरा-भी आगे-पीछे हुआ तो उसको नाम से आवाज दे देते हैं। सही है भिया, ऐसे ही चुनाव थोड़ी जीत जाएंगे, क्योंकि पुराने कांग्रेसियों का मानना है कि नजर हटी की दुर्घटना घटी।

येे नहीं तो वो सोनकर
जिलाध्यक्ष होने के नाते राजेश सोनकर के पास जवाबदारी ज्यादा है और इसी जवाबदारी के चलते वे क्षेत्र से दूर हो गए हैं। जनसंपर्क का प्लान ऐसा बनाया गया है कि राजेश सोनकर उसमें समय बहुत कम दे पाते हैं, जबकि दो साल पहले ही वे चुनाव लड़ते वक्त सांवेर में घूमे हैं, जिसका फायदा सिलावट को मिल सकता है, लेकिन संगठन ने राजेश सोनकर को छोड़कर सावन सोनकर को तवज्जो दे रखी है। सावन भी इस तरह से तुलसी पेलवान के साथ छाए रहते हैं कि जरा-भी उन्हें नहीं छोड़ते। वैसे इसका फायदा सावन को सांवेर में अपनी टीम मजबूत करने के रूप में मिल रहा है।

हमारे जासूस चारों ओर फैले हुए हैं
जिस तरह से कांग्रेस दूसरे चुनाव लड़ते आई है, वैसा इस चुनाव में नहीं है। आचार संहिता लग गई है तो नेताओं ने अपने जासूस भी भाजपाइयों के पीछे लगा दिए हैं। नेताजी का खास बनने के लिए ऐसी सूचनाएं भी दे देते हैं, जिसका कोई मतलब नहीं होता है। ऐसा ही कुछ पिछले दिनों हुआ। हाालंकि शिकायत हो गई थी तो पुलिस को भी पहुंचना पड़ा, लेकिन नतीजा सिफर रहा। जासूस से कहा गया है कि अब जब खबर लाना पक्की लाना और उसका प्रूफ भी लेकर आना।

नहीं बन पा रहा है उषा का माहौल
सांवेर में भाजपा की नाव का दूसरा चप्पू मंत्री उषा ठाकुर के हाथ में थमा दिया है और कहे कि अब मुख्य जवाबदारी उनकी ही है भाजपा की नाव तैराने की। हालांकि इस नाव का चप्पू अब तक रमेश मेंदोला के हाथ में था। दोनों मिलकर इस नाव को कितनी तेजी से आगे बढ़ाते हैं, ये तो समय ही बताएगा, लेकिन पूरा माहौल तो दूसरे नेता ही लूट रहे हैं और उषा ठाकुर का माहौल अभी बन नहीं पा रहा है।

और अंत में
उम्र ज्यादा होने के बावजूद कृपाशंकर शुक्ला हाटपिपलिया के मंच पर कमलनाथ के साथ दिखे और कमलनाथ ने उन्हें अपना पुराना साथी कहकर भी संबोधित किया। कांग्र्रेस के दूसरे चाचा नेहरू का इस उम्र में चुनाव में सक्रिय होना युवाओं के लिए प्रेरणा बन रहा है। पंडितजी भी जीतू पटवारी, सज्जनसिंह वर्मा और कुणाल चौधरी की कतार में थे और बताना चाह रहे थे कि अभी भी मेरे में दम है।

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Mon Oct 5 , 2020
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