फिर भी चिंटू खुश है…
चिंटू खुश हैं कि कांग्रेस ने दो नंबर से कद्दावर नेता दादा दयालु के सामने उन्हें चुनावी मैदान में उतारने का निर्णय लिया है। अभी घोषणा नहीं हुई है, लेकिन चिंटू ने चुनावी बरात के लिए दूल्हे का सूट सिला लिया है और सेहरा बंधने की देर है। नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद जिस तेजी से चिंटू अपने आपको शहर कांग्रेस का बड़ा चेहरा बनाने में लगे हुए हैं, उसमें अब कांग्रेसी ही उन्हें पछाडऩे में लग गए हैं। चिंटू ने गोलू अग्रिहोत्री का समर्थन करके उन्हें शहर अध्यक्ष बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी और दूसरे नेताओं के हाशिये पर आ गए। गोलू को अब कार्यकारी अध्यक्ष पद मिला। इसके बाद चिंटू ने हर 15 दिन में नगर निगम पर प्रदर्शन करने की घोषणा की थी, लेकिन इसमें भी नेतृत्व करने के चक्कर में उनके साथ के कई पार्षद नाराज हो गए और विरोध एक महीने भी चल नहीं पाया। अब देखना है कि चिंटू विधानसभा चुनाव में कितनी ताकत लगा पाते हैं..?
खिल उठे सांसद समर्थकों के चेहरे
नेताजी विधानसभा चुनाव लडऩे का सपना देख रहे हैं और जब मालूम पड़ा कि पार्टी भी उनके नाम पर विचार कर रही है तो उनके समर्थकों के चेहरे खिल उठे। दरअसल सांसद शंकर लालवानी चार नंबर से लंबे समय से विधायक के टिकट पर अपना दावा कर रहे हैं और संगठन की उस घोषणा ने उनकी उड़ान को और पंख लगा दिए, जिसमें सांसदों को चुनाव लड़ाने की बात में लालवानी के नाम का भी जिक्र सामने आया है। देखते हैं लालवानी की ये दिली इच्छा पूरी होती है या नहीं?
कहां हैं बहादुर का तेज?
नागदा भाजपा के वरिष्ठ नेता तेजबहादुरसिंह को इंदौर का संगठन प्रभारी बनाया गया था और उन्हें संभाग के सहप्रभारी का पद भी दे दिया गया। संगठन के काम में दक्ष और हमेशा सक्रिय तेजबहादुर अभी कहीं नहीं आ रहे हैं। कारण पता किया तो मालूम पड़ा कि वे भी विधानसभा चुनाव में टिकट के दावेदार हैं और अब वे उतना समय इंदौर को नहीं दे पा रहे हैं, जितना पहले देते थे। सब कह रहे हैं उनका टिकट पक्का है, इसलिए अब इंदौर के प्रति उनका तेज कम हो गया है। आखिर उनके भी राजनीतिक भविष्य का सवाल है।
शिक्षकों को बेसन की नेताओं को काजू की बर्फी
नगर निगम ने इस बार शिक्षकों का सम्मान करने में खूब बंदरबांट की। करीब डेढ़ सौ शिक्षकों को सम्मानित किया गया और यह सम्मान कार्यक्रम तब तक चलता रहा, जब तक अतिथि थककर अपनी कुर्सी पर नहीं बैठ गए। दो भागों में खाना रखा गया था। एक तरफ वीआईपी तंबू था तो दूसरी तरफ शिक्षकों के लिए व्यवस्था की गई थी। जाहिर है, वीआईपी तंबू नेताओं के लिए ही होगा। वहां जब सत्तन गुरु, कृष्णमुरारी मोघे, सुदर्शन गुप्ता और कुछ एमआईसी सदस्य खाना खाने पहुंचे तो कैटरर्स ने खूब आवभगत की। यही नहीं उन्हें काजू बर्फी यानि कतली परोसी गई और पीने के पानी की बोतल। कुछ शिक्षकों ने जब काजू कतली मांगी तो कैटरिंग वालों ने बेसन की बर्फी आगे कर दी। पानी की बोतल मांगी तो उनसे कहा कि पानी की कैन के पास लौटे रखवाए हैं, वहां जाकर पी लो।
सुरजीत का मजमा लूट ले गए गोलू
गोलू अग्रिहोत्री को कांग्रेस का कार्यवाहक अध्यक्ष बना दिया गया है। पहले दोनों ही नेता चार नंबर से टिकट के दावेदार थे, लेकिन बीच में गोलू ने पार्टी में अपनी सक्रियता कम कर दी थी। पिछले दिनों भारत जोड़ो यात्रा की सालगिरह पर सुरजीत ने पदयात्रा निकाली तो उसके शुरू होने के 15 मिनट पहले ही गोलू की कार्यवाहक अध्यक्ष की नियुक्ति की खबर आ गई। बस फिर क्या था, यात्रा में शामिल कांग्रेसी गोलू को बधाई देने लगे और उनके आगे-पीछे हो गए।
चार लोग साथ में नहीं और पार्टी बदलने चले
अफवाह उड़ी कि शहर के बीचोबीच रहने वाले एक पूर्व पार्षद कांग्रेस में शामिल होने जा रहे हैं। कभी निगम में मलाईदार पद पर रहे उक्त भाजपा नेता की इस खबर ने पार्टी के ही लोगों को हैरान कर दिया और पूछा कि नेताजी की क्या बखत है, जो वे कांग्रेस में जाने का सोच रहे हैं। वैसे आपको बता दें कि नेताजी पिछली बार भी विधायकी की दावेदारी कर रहे थे और इस बार भी दावेदार का सेहरा बुनकर यहां-वहां चक्कर काट रहे हैं, लेकिन भाव कहीं से नहीं मिल रहे हैं।
अधिकारी हैं कि पार्षदों तक की सुनते नहीं
भाजपा के पार्षदों की नगर निगम में चल नहीं रही है। सालभर से ज्यादा समय हो गया है, लेकिन अधिकारी पार्षदों को अपने ऊपर हावी नहीं होने दे रहे हैं। पार्षद मन मसोस कर रह जाते हैं। इसका उदाहरण एमआईसी मेम्बर बबलू शर्मा के वार्ड में जाकर नगर निगम द्वारा मंदिर का निर्माण तोडऩा और पार्षद मुद्रा शास्त्री द्वारा अपने क्षेत्र में एक मकान को तोडऩे से रोकने के बावजूद निगम द्वारा तोड़ देना, ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनमें निगम अधिकारियों की मनमर्जी साफ दिखाई दे रही है। बबलू शर्मा की तो दो-दो बार अधिकारी इकन्नी कर चुके हैं, वहीं अपने क्षेत्र में कई कामों को लेकर पार्षदों यहां तक कि एमआईसी मेम्बरों को जी-साब करके अधिकारियों के आगे-पीछे दौडऩा पड़ता है। पार्षदों की भड़ास बैठकों में सामने आ चुकी हैं, लेकिन अधिकारी हैं कि उनके कानों पर जूं तक नहीं रेंगती।
भाजपा के एक मंडल में चल रही दो पक्षों की लड़ाई थमने का नाम नहीं ले रही है या यूं कहे कि उसे रोकने की कोशिश कोई नहीं कर रहा है। इसमें संगठन का नुकसान हो रहा है सो अलग, लेकिन पर्दे के पीछे किसके हित सध रहे हैं, इसको लेकर चर्चा शुरू हो गई है। पार्टी के ही दो बड़े नेताओं के बीच चल रही टिकट की लड़ाई से इसको जोडक़र देखा जा रहा है। पिछले दिनों जिस तरह से भाजपा में तोडफ़ोड़ की खबरें चल रही हैं, उससे यहां भी माहौल बनने लगा है और ऐसा न हो कि बड़े नेता जागे, तब तक देर हो जाए। -संजीव मालवीय
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