क्या इस बार सूखा रहेगा सावन?
सावन सोनकर के राजनीतिक भविष्य को लेकर उनके समर्थकों में खुसुर-फुसुर शुरू हो गई है। फिलहाल तो सावन का रूतबा कम नहीं है और वे राज्यमंत्री के रूप में घूम रहे हैं। राज्यमंत्री का दर्जा मिलने का कोई असर उनकी स्थानीय राजनीति पर तो नहीं दिखा है। 2018 में सांवेर से राजेश सोनकर के टिकट का विरोध करने वालों में उनका नाम भी सबसे आगे था। बाद में बदले राजनीतिक समीकरण में उन्हें लाभ का पद तो दे दिया, लेकिन अब इसके आगे उनकी राजनीति किस करवट जाएगी, इसका अनुमान लगाना मुश्किल हो रहा है। राजेश सोनकर को तो सोनकच्छ भेज दिया है, लेकिन सावन के लिए न तो इंदौर में बात हो रही है और न ही भोपाल में। मतलब समझ आ रहा है कि इस बार सावन सूखा रहेगा, क्योंकि सांवेर के आंगन में तो तुलसी का पौधा पनप चुका है।
पिता-पुत्री की लड़ाई में टिकट कटने का डर
एक विधानसभा से दावेदारी कर रही पुत्री की पिता से पटरी नहीं बैठ रही है। सबको मालूम है कि लड़ाई टिकट की ही है। पिता-पुत्री की लड़ाई संपत्ति के मामले में भी अब सडक़ पर आ गई है,जहां लीज पर दिए गए एक कॉलेज की लीज निरस्त कर दी गई। दोनों के बीच चल रही लड़ाई का असर अब सांवेर विधानसभा में भी देखने को मिल रहा है और पिता के समर्थक पुत्री से दूर नजर आ रहे हैं। इसका फायदा सीधे-सीधे दूसरे कांग्रेसी उम्मीदवारको मिल सकता है।
आखिर अफसर की अफसरी काम आ गई
कांग्रेस के खाटी नेता है अफसर पटेल। दावेदारी कर रहे थे जिले के कार्यकारी अध्यक्ष की, लेकिन चल पड़ी जीतू पटवारी की। कई सीटों पर मुस्लिम नायता समाज के वोटों पर पकड़ रखने वाले अफसर को कमलनाथ ने सीधे प्रदेश कांग्रेस का महामंत्री बना दिया है, यानि उनकी जवाबदारी बढ़ा दी है। कांग्रेस की राजनीति में उन्हें अफसर ही कहा जाता रहा है, उनकी अफसरी अब किस तरह से कांग्रेस को फायदा पहुंचाएगी, यह देखना होगा।
पहले पूरा शहर नाप देते थे, अब बंध गए
भाजपा के विधायक संजय शुक्ला, जीतू पटवारी और विशाल पटेल पहले शहर के हर आयोजनों में नजर आ जाते थे और एक तरह से कांग्रेस के तीन विधायक होने का फायदा उन्हें मिलता था। वे पूरा शहर नाप डालते थे, लेकिन बदले राजनीतिक हालात में वे अपने घर में ही बंधकर रह गए हैं। संजय शुक्ला और विशाल पटेल की जोड़ी पार्टी की बैठक में जरूर नजर आती हैं, लेकिन वे भी खुलकर कहीं जा नहीं पा रहे हैं। उन्हें अपनी विधानसभा की चिंता सता रही है। वहीं जीतू पटवारी इस मामले में बेफिक्र थे, लेकिन मधु वर्मा का नाम इस सीट पर आने के बाद वे भी सक्रिय हो गए और क्षेत्र में घूमते दिखाई दे रहे हैं। जाहिर हैं तीनों को ही अपने क्षेत्र में कांग्रेस की ओर से लडऩा है तो क्यों न अभी से ही सेना में जोश बनाए रखें, क्योंकि प्रदेश में कांग्रेस की राजनीति के जो हालात बन रहे हैं, उसने कईयों के मंत्री बनने की उम्मीद भी जगा दी है।
चिंटू ने लपका हार्दिक को
मंत्री तुलसी सिलावट ने अपने पुत्र नितेश उर्फ चिंटू सिलावट को अपनी विधानसभा में सक्रिय कर रखा है। पिछले दिनों सांवेर में भेजे गए गुजरात के विधायक हार्दिक पटेल को चिंटू ने पहले ही दिन ऐसे लपका कि आखिर तक नहीं छोड़ा। पूरे समय चिंटू उनके साथ ही रहे, ताकि किसी तरह की कानाफूसी न होने पाए। वैसे पटेल को पांच नंबर की जवाबदारी मिली थी, लेकिन पटेल परिवार से उनकी नजदीकियां के चलते किसी ने संगठन के बड़े नेताओं को खबर दे दी और हाथोहाथ भोपाल से इंदौर के रास्ते उन्हें सांवेर पहुंचा दिया गया।
जन्मदिन पर मिली टिकट की बधाई
देपालपुर विधानसभा के एक नेताजी का जन्मदिन था। हर बार से अलग इस बार नेताजी ने बड़ा जमावड़ा भी किया। जातिगत आधार पर देपालपुर से टिकट मांग रहे नेताजी को समर्थकों ने हाथोहाथ टिकट की बधाई भी दे डाली। कभी युवा मोर्चा की कमान संभाल चुके नेताजी को टिकट मिलने में वैसे कई रोड़े हैं, लेकिन नाम चलाने में क्या बुराई है?
केवल विधायक को आना था, फौज-पाटा ले आए
7 दिन इंदौर में रूककर कल लौटे गुजराती विधायकों के जाने के बाद इंदौरी नेताओं ने चैन की सांस ली। दरअसल केन्द्र के फरमान पर इन विधायकों को अपने साथ एक या दो सहयोगी लेकर आना थे, लेकिन कई विधायक तो अपने साथ अपनी फौज लेकर आ गए। इनमें पार्षद और उनके ेसमर्थक भी शामिल थे। पांच नंबर में आए एक विधायक के साथ तो एक दर्जन से अधिक लोग थे तो एक नंबर में पहुंचे विधायक के साथ दो गाडिय़ां भरकर गुजराती आए थे। इन सबको ठहराने और उनके सुबह के नाश्ते से लेकर रात के खाने तक में भाजपा नेताओं की हवा निकल गई। जहां भाजपा के विधायक हैं, वहां तो खर्चा करने वाले आगे आ गए, लेकिन जहां विधायक नहीं थे, वहां का खर्चा एडजस्ट करने में पसीने आ गए।
भाजपा के टिकट का विरोध करने वालों को लग रहा था कि उन्हें मनाने कोई बड़ा नेता उनके घर आएगा और रूठे फूफा की तरह उनकी मिन्नतें करेगा, लेकिन इस बार पार्टी का सख्त मिजाज है। इसके पीछे सोच यह है कि अगर मिन्नतें की गईं और उन्हें समझाने गए तो इससे पूरे प्रदेश में माहौल बनने लग जाएगा। एक नंबर से भी विरोध करने गए नेता छोटा-सा मुंह लेकर लौट आए, क्योंकि यहां विरोध में कोई बड़ा नाम नहीं था। सोनकच्छ के नेता और कार्यकर्ताओं को भी अधिकृत प्रत्याशी सोनकर के लिए काम करने का कह दिया गया है। -संजीव मालवीय
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