न दिग्गी न जेवी टिकट बांटेंगे तो फिर देगा कौन?
जिस तरह से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह ने हारी हुई 66 विधानसभा सीटों पर जाकर संगठनात्मक तैयारियों का जायजा लेकर रिपोर्ट तैयार की है, उसी तरह इंदौर और उज्जैन जिले की 16 सीटों के प्रभारी बनाकर उनके पुत्र जयवर्धनसिंह को भी संगठनात्मक तैयारियों को लेकर उतारा है। दोनों ही नेता जिस सीट पर जाते हैं, वहां उनके आसपास कार्यकर्ताओं के साथ दावेदारों की भीड़ लग जाती है। वे स्पष्ट कह देते हैं कि वे टिकट देने नहीं आए हैं। वे तो केवल संगठन का काम कर रहे हैं। दोनों के काम करने के तरीके को देख कांग्रेस नेता भी यह कह देते हैं कि आप टिकट नहीं दोगे तो कौन देगा? इस पर वे कमलनाथ की ओर इशारा कर देते हैं, लेकिन सब जानते हैं कि टिकट वितरण में मुख्य भूमिका दिग्गी की भी रहने वाली हैं, इसलिए दिग्गी चाहे जितना भी मना करें, वे उनके आसपास मंडराने का मौका नहीं छोड़ते हैं।
एक नंबर के छोटू के पीछे लगे गुप्ता विरोधी
एक नंबर विधानसभा में एक छोटू नेता है। कभी सुदर्शन गुप्ता के नजदीकियों में जाने जाने वाले छोटू नेताअभी उनसे दूरियां बनाए हुए हैं, लेकिन पिछले कई साल से इन दूरियों का फायदा गुप्ता विरोधियों ने उठाया और छोटू का राजनीति में भी इस्तेमाल किया, क्योंकि जिंसी और आसपास के क्षेत्र में छोटू का अच्छा-खासा प्रभाव है। अब उनके ठीये पर एक नंबर से दावेदारी कर रहे अमरदीप मौर्य भी नजर आने लगे हैं। मिठाई की दुकान पर बैठने वाले उक्त नेता की चाशनी लेने की कोशिश में गुप्ता भी लग गए हैं और अगर जल्द ही छोटू उनके साथ गाड़ी में नजर आए तो आश्चर्य मत करना।
भाजपा के वार्ड में कांगे्रस का टैंकर?
कांग्रेस खेमे से आकर भाजपा से पार्षद बने मनोज मिश्रा को लेकर भाजपाइयों का कहना है कि वे एक बार में कार्यकर्ताओं की नहीं सुनते। वे यहां भी कांग्रेसी संस्कृति चला रहे हैं। इसका उदाहरण उस समय देखने को मिला, जब एक कार्यकर्ता के घर दूसरे क्षेत्र के कांग्रेस पार्षद ने टैंकर भिजवाकर पानी डलवाया। जलसंकट से परेशान भाजपाई इसके पहले कई बार मनोज को बोल चुके थे, लेकिन वे आश्वासन देते रहे। जब कांग्रेसी पार्षद को फोन लगाया तो एक बार में ही काम हो गया।
पांच साल में एक बार खिलता है ‘कमल’
अपने समय भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन और युवक कांग्रेस की राजनीति में अच्छा-खासा दखल रखने वाले एक नेता पूरे पांच साल तो सोते हैं और जब चुनाव आते हैं, तब सक्रिय हो जाते हैं। नेताजी हर बार सांवेर विधानसभा सीट से दावा करते हैं, लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिलता, क्योंकि ये कमल पांच साल में एक बार ही खिलता है, जबकि दूसरे कांग्रेसी लगातार सक्रिय बने रहते हैं। अब नेताजी की नींद खुली है और वे ये बताने से नहीं चूक रहे हैं कि मैं यहां का तगड़ा दावेदार हूं। नेताजी का उद्देश्य रहता है, उनकी राजनीतिक दुकान की जमावट बनी रहे और नाम चलता रहे, ताकि कोई कह न सके कि वे निष्क्रिय हैं। फिलहाल तो नेताजी की दाल इस बार भी गलते नहीं दिखाई दे रही है, क्योंकि सांवेर के अखाड़े में कांग्रेस के कई दिग्गज उतर चुके हैं।
गोवा जाने का सुनकर आंखें चमक उठीं
देपालपुर विधायक विशाल पटेल ने अपने पदाधिकारियों को गोवा ले जाने की बात क्या कह दी कि कांग्रेसियों की आंखें चमक उठीं। दरअसल पटेल ने पिछले दिनों जयवर्धनसिंह के सामने संगठन की बैठक में कहा कि जो भी नारी सम्मान योजना के फार्म ज्यादा से ज्यादा भरवाएगा और मतदाता सूची में से फर्जी नाम हटवाएगा, उसे वे गोवा भेजेंगे। इसके बाद अब कांग्रेसी यह बताने में लगे हैं कि वे संगठन का काम लगातार कर रहे हैं और गोवा जाने के असली हकदार वे ही हैं।
दो भागों में बंटीं भाजपा-कांग्रेस
यादव समाज का कार्यक्रम था। मुख्यमंत्री को बुलवा लिया गया था, जिसमें मंच पर कांग्रेसी और भाजपाई भी थे, लेकिन इसमें कांगे्रेस और भाजपा के कुछ गुट के नेता नदारद थे। बताया गया कि आयोजन को लेकर ही दो धड़े दिखाई दिए और जिन्हें तवज्जो नहीं मिली, वे आयोजन से दूर हो गए। हालांकि इसको लेकर भी चर्चा रही कि मुख्यमंत्री को लाने के पीछे किसने दम लगाया। खैर कार्यक्रम हो गया और अब कोई कुछ भी कहे, लेकिन आयोजकों का मकसद सफल हो गया।
जनसंपर्क अभियान में पिछड़ी ग्रामीण भाजपा
30 मई से शुरू हुए विशेष जनसंपर्क अभियान में इस बार ग्रामीण भाजपा पिछड़ी नजर आई। आमतौर पर संगठन के कामों में अग्रणी रहने वाला ग्रामीण भाजपा संगठन इस बार कुछ खास नहीं कर पाया। बड़े आयोजन जरूर यहां हुए, क्योंकि उन पर संगठन की निगाह थी, लेकिन बड़े नेता अपने आपको आंदोलन से दूर रखे नजर आए। महू में उषा ठाकुर तो सांवेर में तुलसी सिलावट जरूर एक-दो आयोजन कर श्रेय ले उड़े, लेकिन देपालपुर में कल एक कार्यक्रम रखा गया था, जिसमें दम देने के लिए महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को बुलाया गया था। राऊ में जरूर दावेदार मधु वर्मा ने हितग्राही सम्मेलन में ऐतिहासिक भीड़ जुटाई, लेकिन इस बीच संगठन कहीं नजर नहीं आया। संगठन के कर्ताधर्ता भी आराम से यह सोचकर बैठे रहे कि चुनावी साल है, जिसको चुनाव लडऩा है, वह आगे रहकर कार्यक्रम करेगा और खर्चा भी। इससे उलट शहर में नगर संगठन हर दिन कोई न कोई आयोजन करता रहा।
कांग्रेस से आए एक प्रवक्ता भाजपा का प्रचार कम, बल्कि अपनी पुरानी पार्टी के अंदर क्या चल रहा है, इस पर ज्यादा ध्यान देते हैं। चूंकि जीवनभर जिस पार्टी में काम किया, वहां की अंदर की बातें तो उनके पास आ ही जाती है और फिर वे सोशल मीडिया पर वाइरल कर अपने प्रवक्ता होने का फर्ज निभा देते हैं। उनकी मजबूरी है कि उन्हें नए नेतृत्व को खुश कर, भाजपा के प्रति निष्ठा साबित करना है। -संजीव मालवीय
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