मंत्री मामा के खिलाफ कांग्रेसी भानजे ने पकड़ा मैदान
चुनाव आ रहे हैं और हर विधानसभा में दावेदारों ने खलबली मचा रखी है। ऐसे में सांवेर विधानसभा कैसे अछूती रहेगी। यहां मंत्री मामा तुलसी सिलावट के खिलाफ भानजे ओम सिलावट ने मोर्चा खोल दिया है। सांवेर के खलखला गांव गंभीर नदी पर बने बैराज के निर्माण की घटिया क्वालिटी को लेकर उन्होंने आरोप लगाए कि मामा के विभाग के अधिकारी गड़बड़ी कर रहे हैं। दूसरा मामला उन्होंने डकाच्या में बन रहे खेल स्टेडियम को लेकर भी उठाया है और पूछा है कि ये स्टेडियम कब बनेगा? ऐसे ही मामलों को लेकर वे कांग्रेसियों के साथ अब सांवेर के चक्कर लगा रहे हैं। मामला मामा के सामने चुनाव लडऩे का है। एक संत की कथा में भी वे अपनी सक्रियता निभा चुके हैं। मामा जब कांग्रेस से भाजपा में गए थे, तब भानजे कांग्रेस में ही रह गए। वैसे मामा-भानजे की कभी कांग्रेस में रहते हुए पटी नहीं है।
अभी भी प्रोटोकाल में रहते हैं बाकलीवाल
विनय बाकलीवाल को भले ही शहर कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटा दिया है, लेकिन वे बड़े नेता के इंदौर आने या फिर किसी कार्यक्रम में नजर आ ही जाते हैं। कमलनाथ के नाम का झंडा पकडक़र राजनीतिक करने वाले बाकलीवाल अभी भी अपने आपको अध्यक्ष समझकर ही प्रोटोकाल पूरा कर रहे हैं। फिलहाल तो वे दिग्गी के आगे-पीछे ज्यादा नजर आ रहे हैं। वे दिग्गी को भी अपने मन की मंशा जता चुके हैं। आश्चर्य तो इस बात का है कि दूसरे दो दावेदार अब ठंडे पड़ते नजर आ रहे हैं।
गौरव दिवस पर मच्छर उड़ाना पड़े अतिथियों को
गौरव दिवस का पहला दिन था और ऐतिहासिक गांधी हॉल में पानी बचाने को लेकर बात होना थी। अतिथि के रूप में महापौर पुष्यमित्र भार्गव, एमआईसी मेम्बर गुड्डू चौहान, अश्विन शुक्ला, पार्षद कमल बाघेला और अन्य भी मौजूद थे, लेकिन उनका ध्यान कार्यक्रम में कम मच्छर उड़ाने में ज्यादा था। शहर में हो रहे बारीक काले मच्छरों से पार्षद भी परेशान दिखाई दिए और वहां बैठे निगम के अधिकारी भी। शहर के लोग पिछले दो महीने से निगम के सामने भिनभिना रहे हैं, लेकिन अभी तक इसका हल निगम नहीं निकाल सका है।
अपने ही पुराने उस्ताद को मात दे रहे हैं चेले
भाजपा में लाभ के पद पर की गई एक युवा नेता की नियुक्ति से उसी विभाग के दूसरे नेता परेशान हैं। कभी वे गुरु हुआ करते थे और उनके सामने जी-भाई साब के अलावा नेताओं के मुंह से कुछ नहीं निकलता था, लेकिन उनकी लाभ के पद पर की गई नियुक्ति के बाद वे इंदौरी नेताओं के बराबर ही गिने जाने लगे हैं, वहीं चेले का पद भले ही छोटा हो, लेकिन अब कद उनके बराबर हो गया है और वे हर कामकाज में दखल देने लगे हैं। यहां तक कि अपनी राजनीतिक दुकान भी अलग ही चला रहे हैं। गुरु बेचैन हैं, लेकिन चेला है कि दिन-ब-दिन कुछ न कुछ कर लोगों के बीच अपनी पैठ बना रहा है। गुरु इसलिए नहीं चाह रहे थे कि कोई उनके समकक्ष आए, लेकिन चेला तो इस मामले में उनसे आगे निकल गया। गुरु भोपाल में जहां से आते हैं, वहां चेले की भी गहरी पैठ बताई जाती है। चेले की निगाह विधानसभा की एक सीट पर भी है और उसी को लेकर वे लगातार अपनी सक्रियता बनाए रखे हैं।
पार्षद की किरकिरी करवा दी समर्थकों ने
एक भाजपा पार्षद ने पिछले दिनों अपने समर्थकों की बातों में आकर क्षेत्र में रह रहे कुछ युवकों पर कार्रवाई करवा दी। पुलिस को उनके असामाजिक होने के बारे में बताया तो पुलिस उठाकर उन्हें थाने ले आई। पूछताछ हुई तो खोदा पहाड़ और निकला चूहा वाली कहावत सिद्ध हो गई। उन्होंने आधार कार्ड भी पेश कर दिए। हालांकि पुलिस ने भी इस मामले में फूंक-फूंककर कदम रखा, ताकि कोई बवाल न हो जाए। बैकफुट पर आए पार्षद अब इस बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहते हुए सतर्कता की बात कर रहे हैं।
क्या हम इंदौर के गौरव लायक नहीं?
इंदौर के गौरव दिवस कार्यक्रम में कांग्रेस के जनप्रतिनिधियों को नहीं बुलाना, उन्हें बेचैन कर रहा है। सबसे ज्यादा पीड़ा विधायक संजय शुक्ला और नेता प्रतिपक्ष चिंटू चौकस की है, जिन्होंने इसका विरोध भी जताया है। उन्होंने कहा कि क्या इंदौर को भाजपा के नेताओं ने बपौती बना लिया है, जो चुने हुए कांग्रेसी जनप्रतिनिधियों को कार्यक्रम में नहीं बुला रहे हैं। चिंटू ने तो कह दिया कि छोटी सोच वाले नेताओं ने ऐसे भाजपाइयों को प्रभारी बना दिया, जिन्हें जनता चुनाव में नकार चुकी है।
जुबान तो उनकी भी खराब थी… इनकी भी खराब है
पिछले दिनों एयरपोर्ट पर दिग्गी के पहुंचने पर कुछ नेताओं के व्यवहार को लेकर चर्चा होने लगी। एक बड़े नेता के बारे में कहा गया कि उनका व्यवहार और जुबान भी खराब है, इसलिए वे हारे। इसी परिवार से जुड़े एक बड़े नेता के लिए भी यही बात कही गई कि उनकी जुबान खराब थी। ये चर्चा चल ही रही थी कि दूसरी पीढ़ी के नेता का नाम भी आ गया कि उन्हें भी समझाइए, क्योंकि हम उनकी आदतों और व्यवहारों के कारण ही हारे हैं। दिग्गी सब मुस्कुराकर सुन रहे थे और सुनाने वाले सुना रहे थे। हालांकि एक नेता ने यह कहकर बात खत्म की कि एक विशेष विधानसभा से ताल्लुक रखने वाले बड़े भाई कुछ कहते हैं तो छोटे को उत्तर देना ही पड़ता है, इसलिए लोग कह देते हैं कि उनकी जुबान भी खराब हो चली है।
बार-बार प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर कयास चलते हैं और ये कयास मोबाइल के अंदर ही समाप्त हो जाते हंै। मीडिया की सुर्खियां जब बनती हैं तो कई लोग इधर-उधर की सोचने लगते हैं कि अब उनके आका प्रदेश की बागडोर संभालने जा रहे हैं, लेकिन बाद में सब टांय-टांय फिस्स हो जाता है। ऐसे में अब दावेदार समझ नहीं पा रहे हंै कि चुनाव का टिकट किधर से लेना पड़ेगा। फिलहाल तो नेताओं ने इस मामले में अपनी प्रतिक्रिया देना ही बंद कर दी है। न जाने कब क्या हो जाए?
-संजीव मालवीय
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