– मृत्युंजय दीक्षित
न केवल भारत वरन संपूर्ण विश्व में सनातन हिंदू संस्कृति का साहित्य के माध्यम से प्रचार- प्रसार करने वाली संस्था गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार मिलना हिंदू सनातन संस्कृति व साहित्य के लिए गर्व और हिंदू समाज के लिए आनंद की अनुभूति का समय है। जरा सोचिए कि अगर गीता प्रेस न होता तो आज हिंदू सनातन संस्कृति व परम्परा का क्या हाल हो रहा होता? एक विदेशी डाक्टर ए.ओ. हयूम तथा अंग्रेज मैकाले की शिक्षा के कुप्रभाव को रोकने में अगर जिसने अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाई वह गीता प्रेस ही है। आज संपूर्ण विश्व में हिंदू सनातन संस्कृति की जो जयकार होती है उसमें गीता प्रेस की बड़ी भूमिका है। संभवतः यही कारण है कि आज कांग्रेस गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार दिये जाने की आलोचना कर रही है।
गीता प्रेस हिंदू धार्मिक ग्रंथों का विश्व का सबसे बड़ा प्रकाशक है। आज हर घर तक गीता, रामायण, महाभारत सहित चार वेद और 18 पुराण तथा गोस्वामी तुलसीदास रचित समस्त साहित्य को बेहद सस्ती दरों में पहुंचाने का श्रेय यदि किसी को जाता है तो वह गीता प्रेस है। गीता प्रेस को सम्मान मिलना संस्थापक जयदाल जी गोयन्दका व हनुमान प्रसाद पोद्दार जी जैसे महान संतों का भी सम्मान है।
गीता प्रेस का मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म के सिद्धांतों, गीता,रामायण, उपनिषद, पुराण, संतों के प्रवचन और अन्य चरित्र निर्माण की पुस्तकों और पत्रिकाओं का प्रकाशन तथा अत्यंत सूक्ष्म मूल्य पर विपणन करके इनको आम जन के लिए सुलभ कराना है।- गीताप्रेस कार्यालय गोरखपुर में स्थित है जो भी लोग गोरखपुर भ्रमण के लिए जाते है वे गीताप्रेस अवश्य जाते हैं और सत साहित्य खरीद कर लाते हैं। गीता प्रेस की स्थापना 1923 में महान गीता मर्मज्ञ जयदयाल गोयन्दका के कर कमलों से हुई थी। यह संस्था भगवत्कृपा से सत साहित्य का उत्तरोत्तर प्रचार -प्रसार करते हुए प्रगति के पथ पर अग्रसर है। गीता प्रेस ने निःस्वार्थ भाव से सेवा कर्तव्य बोध दायित्व निर्वाह प्रभु निष्ठा प्राणिमात्र के कल्याण की भावना और आत्मोद्धार की जो सीख दी है वह सभी के लिए अनुकरणीय बना हुआ है।
गीता प्रेस मार्च 2014 तक 58 करोड़ 25 लाख से अधिक पुस्तकें प्रकाशित कर चुका था। यहां पर प्रतिदिन 50 हजार से अधिक पुस्तकें छपती हैं। यहां पर अब तक गीता की 11 करोड़ से अधिक प्रतियां प्रकाशित हो चुकी हैं। गीता प्रेस बच्चों के लिए प्रेरक सत साहित्य का भी प्रकाशन करता है। अब तक 12 करोड़ से भी अधिक भक्त चरित्र और भजन संबंधी पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। कई पुस्तकों के 80- 80 संस्करण तक प्रकाशित हो चुके हैं। गीता प्रेस में गीता का मूल्य एक रुपये से प्रारम्भ होता है और इसी प्रकार हनुमान चालीसा, और सुंदरकांड जैसे ग्रंथ भी मात्र तीन रुपये में ही उपलब्ध हो जाते हैं। यहां की पुस्तकें लागत से 40 से 90 प्रतिशत कम मूल्य पर बेची जाती है। यह एक ऐसा प्रेस है जिसमें किसी जीवित व्यक्ति का चित्र या कोई विज्ञापन नहीं प्रकाशित होता है।
यहां कुल 15 भाषाओं हिंदी, संस्कृत,अंग्रेजी, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, गुजराती, मराठी,बंगला, उड़िया, असमिया, गुरुमुखी, नेपाली और उर्दू में पुस्तकें प्रकाशित होती है। इस प्रकार गीता प्रेस एक भारत श्रेष्ठ भारत का अनुकरणीय उदाहरण भी प्रस्तुत कर रहा है। गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार उसकी इस भावना को भी दिया गया सम्मान है। गीता प्रेस कल्याण नाम की एक पत्रिका प्रकाशित करता है जिसका एक विशेषांक हर वर्ष के प्रथम या द्वितीय माह तक उपलब्ध हो जाता है और विशेषांक लेने वाले प्रत्येक ग्राहक को यह पत्रिका पूरे वर्ष निशुल्क मिलती रहती है । कल्याण का हर विशेषांक संग्रहणीय होता है । कल्याण विश्व की एकमात्र ऐसी पत्रिका है जो बिना किसी विज्ञापन के अनवरत प्रकाशित हो रही है। कल्याण सनातनी हिंदू समाज की लोकप्रिय पत्रिका है। यह पत्रिका शान्ति और मानवता का संदेश देती है।
भारत के तथाकथित वामपंथी इतिहासकारों ने हिंदू देवी देवताओं व संत समाज की जो विकृत तस्वीर आम जनमानस के समक्ष प्रस्तुत की है गीताप्रेस का साहित्य उनके सभी षड्यंत्रों को विफल करता है। गीताप्रेस के संस्थापक जयदयाल जी गोयन्दका का कथन है कि मनुष्य को सदा सर्वत्र उत्तम से उत्तम कार्य करते रहना चाहिए। मन से भगवान का चिंतन, वाणी से भगवान के नाम का जप, शरीर से जगज्जनार्दन की निःस्वार्थ सेवा यही उत्तम से उत्तम कार्य है।
पुरस्कार पर विकृत राजनीति अच्छी बात नहीं। गीता प्रेस का इतिहास साक्षी है कि उसने अभी तक किसी प्रकार कोई भी सम्मान नहीं लिया है । पुरस्कार की घोषणा पर गीता प्रेस ने अपनी परम्पराओं का हवाला देते हए कहा है कि वह इस बार पुरस्कार तो ग्रहण करेगा लेकिन एक करोड़ की धनराशि स्वीकार नहीं करेगा। प्रेस की बोर्ड बैठक में तय हुआ है कि गांधी शान्ति पुरस्कार के रूप में धनराशि को छोड़कर व प्रशस्ति पत्र, पट्टिका और हस्तकला, हथकरघा की कलाकृति स्वीकार की जाएगी इससे भारत सरकार और गीता प्रेस दोनों का सम्मान होगा।
गीता प्रेस के इस अत्यंत उदार व्यवहार के बाद भी कांग्रेस इसकी तुलना गोडसे को सम्मान मिलने से करके अपनी ओछी और विकृत मानसिकता का परिचय दे रही है। इस सन्दर्भ में कांग्रेस नेता जयराम रमेश का ट्वीट आने के बाद सोशल मीडिया पर कांग्रेस की खूब आलोचना हो रही है। जनमत कह रहा है कि कांग्रेस तुष्टिकरण की राजनीति कर रही है। एक यूजर ने लिखा जब कभी भविष्य में भारत में कांग्रेस की वर्तमान राजनीतिक दुर्गति पर शोध ग्रंथ लिखे जायेंगे तब उसमें जयराम रमेश जैसे स्वनामधन्य नेताओं के योगदान पर पूरा चैप्टर होगा। मोर कैथोलिक देन द पोप शिरोमणि जो वैयक्तिक रूप से एक म्युनिसीपैलिटी का चुनाव जीतने की भी हैसियत नहीं रखते।
मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले और नेहरू खानदान के प्रति वफादारी दिखाने वाले नेता सनातन हिंदू परम्पराओं व उसका विकास करने वाली संस्था को गांधी शांति पुरस्कार मिलने से नफरत से भर उठे हैं। संभवतः सनातन से बैर ही राहुल गांधी की मोहब्बत की मार्केटिंग है। सत्य तो यह है कांग्रेस स्वयं नफरत का बाजार चला रही है जिसका ताजा शिकार गीता प्रेस हुआ है । कांग्रेस ने सनातन हिंदू समाज का अपमान किया है अब वह अपने बचाव के लिए चाहे जो तर्क, वितर्क कुतर्क दे डाले उसका कुछ भला नहीं होने वाला है। कांग्रेस को नहीं पता कि गीता प्रेस आस्था का भी एक बहुत बड़ा केंद्र है। वहां काम करने वाला हर व्यक्ति विशुद्ध शाकाहारी होता है। यह कभी नहीं भुलाया जा सकता कि कांग्रेस सहित देश के सभी सेक्युलर दलों ने गीता प्रेस का गला घोटने के लिए तरह- तरह की पाबंदियां लगाई थीं, पूर्व केंद्रीय रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव ने अपने कार्यकाल में रेलवे स्टेशनों पर गीता प्रेस का साहित्य बेचने पर प्रतिबंध लगा दिया था किंतु ईश्वर की अनुकम्पा से गीता प्रेस का काम अनवरत चल रहा है।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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