- वर्षा में तेज बहाव में चली जाती है यह बेल लेकिन इस बार अभी भी है
उज्जैन। शिप्रा नदी में जलकुंभी अभी तक बनी हुई है और मंगलनाथ पर तो ऐसा लगता है कि हरा घास का मैदान है। आश्चर्य की बात है कि शिप्रा शुद्धिकरण करने वालों को भी चिंता नहीं हैं। शिप्रा नदी से कई बार गाद निकाली गई और जलकुंभी साफ की गई लेकिन वर्षभर यही नजारा रहता है। गंगा घाट से आगे के भाग में शिप्रा नदी में अंगारेश्वर मंदिर तक जिधर देखो पानी में जलकुंभी नजर आ रही है, वहीं मंगलनाथ की छोटे पुल के यहाँ तो यह हाल है कि जलकुंभी इतनी फैल चुकी है कि यहाँ पर कोई हरा मैदान हो, पानी तो दिखाई नहीं दे रहा है, वहीं भैरवगढ़ ब्रिज के आसपास भी यही स्थिति बन रही है।
जलकुंभी लगातार बारिश के मौसम में और बढ़ेगी। हर बार जब बारिश खत्म होती है तो जलकुंभी अंगारेश्वर से लेकर मौनी बाबा के घाट तक फैल जाती है और फिर इसे हटाने का ठेका नगर निगम द्वारा बारिश के बाद दिया जाता है और कई दिनों की मेहनत के बाद यह हटाई जाती थी। अभी भी यह जलकुंभी पूरी नदी पर छा गई है और दलदल की स्थिति बन गई है। कल इस दलदल में एक भैंस फँस गई थी जो दो-तीन घंटे तक नहीं निकल पाई, बड़ी मशक्कत के बाद चरवाहों ने इसे निकाला। बता दें कि गत वर्ष विशेष सफाई अभियान के बाद नगर निगम के अधिकारियों ने बड़े-बड़े दावे किए थे कि अब शिप्रा में कभी जलकुंभी नहीं दिखेगी लेकिन जिम्मेदारों के दावे खोखले साबित हो रहे हैं। शिप्रा नदी में मंगलनाथ पुल से भैरवगढ़ पुल की ओर जलकुंभी की चादर बिछने लगी है जबकि मामले की निगम अधिकारियों को जानकारी भी नहीं है।