नई दिल्ली. आखिरकार राज्यसभा (Rajya Sabha) में कई घंटे तक हुई चर्चा के बाद वक्फ संशोधन बिल (Wakf Amendment Bill) पास हो गया. गुरुवार पूरे दिन एनडीए (NDA) और इंडिया ब्लॉक (India Block) के सांसदों के बीच जोरदार बहस हुई. राज्यसभा में बिल के विरोध में 95 वोट पड़े और बिल के पक्ष में 128 वोट पड़े. इससे पहले बुधवार को लोकसभा में वक्फ बिल पास हुआ था.
लोकसभा के सहयोगी को किया राजी
बिल को पारित कराने के लिए मोदी सरकार ने दो बड़ी बाधाओं को पार किया और सबसे पहले लोकसभा में सहयोगी जेडीयू और टीडीपी को राजी किया और फिर राज्यसभा में लंबी बहस के बाद आसानी से पारित करा दिया. दरअसल विपक्ष को लगता था कि अबकी बार अपने दम पर बहुमत से लोकसभा में दूर बीजेपी यह बिल पारित नहीं कर पाएगी.
सरकार ने सबसे पहले 8 अगस्त 2024 को वक्फ संशोधन बिल संसद में पेश करके सहयोगी दलों को मनाया. इसके बाद इसे जेपीसी में भेजा गया. संसदीय समिति ने वक्फ बिल में नए बदलावों पर अपनी रिपोर्ट को 29 जनवरी को मंजूरी दी थी. इस रिपोर्ट के पक्ष में 15 और विरोध में 14 वोट पड़े थे. इसके बाद जब बिल लोकसभा में आया तो नतीजा ये रहा कि वोटिंग के दौरान 520 सांसदों ने भाग लिया. 288 ने पक्ष में और 232 ने विपक्ष में वोट डाले.
मुस्लिम संगठनों के विरोध के बावजदू सरकार के साथ खड़े रहे नीतीश-नायडू
विपक्ष को ये लग रहा था कि बिहार में नीतीश कुमार औऱ आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू के सांसदों के भरोसे चलती सरकार वक्फ पर फैसला लेने में हिचकिचाएगी. लेकिन 240 सीट के साथ भी संसद में बीजेपी वैसी ही दिखी जैसे 303 सीट के साथ रही. 12 घंटे से भी ज्यादा वक्त तक चली मैराथन बहस के बाद वक्फ संशोधन बिल के पक्ष में सरकार विपक्ष पर भारी रही. नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू ने डटकर विपक्ष और मुस्लिम संगठनों के दबाव के बावजूद सरकार का साथ दिया. कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता की दलील तक को नीतीश कुमार की पार्टी ने खारिज किया.
नीतीश कुमार जो धर्मनिरपेक्षता की दलील देकर 2014 में मोदी के दिल्ली पहुंचने से पहले NDA से अलग हुए. जो हिंदू राष्ट्र की बात पर संविधान की दलील देते रहे, उन नीतीश कुमार की पार्टी ने खुलकर साथ वक्फ संशोधन बिल पर संसद में सरकार का दिया.
बीजेडी ने अंतिम समय में मारी पलटी
वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 पर ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल (BJD) ने अपने रुख में बदलाव किया. BJD ने इससे पहले इस बिल का कड़ा विरोध किया था और इसे अल्पसंख्यकों के हितों के खिलाफ बताया था और बाद में अपने सांसदों को इस पर वोटिंग के दौरान स्वतंत्र निर्णय लेने की अनुमति दे दी.
BJD ने स्पष्ट कर दिया था कि पार्टी इस बिल पर कोई व्हिप जारी नहीं करेगी और राज्यसभा में उसके सांसद अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनकर अपनी मर्जी से मतदान कर सकते हैं.
राज्यसभा में अतिरिक्त सांसदों का मिला साथ
राज्यसभा में इस समय 236 सांसद हैं, जिस वजह से यहां बहुमत के लिए 119 सांसदों के समर्थन की जरूरत थी राज्यसभा में बीजेपी के 98 सांसद हैं. गठबंधन के लिहाज से देखें तो एनडीए के सदस्यों की संख्या 118 के करीब थी. छह मनोनीत सदस्यों को भी जोड़ लें जो आमतौर पर सरकार के पक्ष में ही मतदान करते हैं तो नंबर गेम में एनडीए 124 तक पहुंचता था. कांग्रेस (27) को मिलाकर इंडिया ब्लॉक के दलों के 88 सदस्य राज्यसभा में रहे.
बीजेपी की रणनीति का ही कमाल था कि राज्यसभा में बिल के पक्ष में 128 वोट पड़े जबकि 95 सदस्यों ने इसके विरोध में वोट दिया. गौर करने वाली बात ये थी कि बीजेपी के तीन सांसद मतदान के दौरान गैर-हाजिर रहे थे.
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