नई दिल्ली। कश्मीर हमेशा (Kashmir always) से एक विवादित क्षेत्र (disputed area) रहा है। पाकिस्तान ने कई बार इसे भारत से छीनने का प्रयास किया है, लेकिन पाकिस्तान (pakistan) के मंसूबों पर भारत ने हर बार पानी फेर दिया। कारगिल की लड़ाई भी ऐसी ही एक जाबाज जंग की कहानी है।
आपको बता दें कि भारत ने परमाणु परीक्षण कर पूरी दुनिया को चौंका दिया था। तारीख थी 11 और 13 मई 1998। भारत के कारनामे को 15 दिन ही हुए थे कि दूसरी ओर पाकिस्तान ने 28 मई को ऐसा ही किया। इसी के साथ दोनों पड़ोसी देश परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र बन गए। अब दोनों के बीच तनाव बढ़ना बड़ी मुश्किलें पैदा कर सकता था। एक दूरदर्शी रणनीति के तहत भारत ने पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने की कोशिश की। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी फरवरी 1999 में बस से लाहौर पहुंचे। 21 फरवरी 1999 को दोनों देशों के बीच एक समझौता हुआ। जिसे लाहौर समझौता कहा जाता है। दोनों देशों ने कहा कि हम सहअस्तिव के रास्ते पर आगे बढ़ेंगे। जल्द ही दोनों देश कश्मीर समेत सभी मामले मिल बैठकर सुलझा लेंगे।
यहां तक की प्रधानमंत्री वाजपेयी को 21 तोपों की सलामी तक दी गई, लेकिन, ये सब पाकिस्तान अपने नापाक मंसूबो पर पर्दा डालने के लिए कर रहा था। एक ओर वह भारत की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ा रहा था, तो दूसरी तरफ उसकी सेना हिन्दुस्तान पर हमले की साजिश रच रही थी।
परवेज मुशर्रफ थे साजिश के सूत्रधार
पाकिस्तानी सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ इस साजिश के सूत्रधार थे। साजिश का नाम था ‘ऑपरेशन बद्र’। सेना प्रमुख के साथ पाकिस्तान सेना के बड़े अफसरों ने मिलकर इस प्लान को बनाया था। प्लान था शिमला समझौते को तोड़ने का, जिससे मुशर्रफ के नापाक मंसूबे पूरे हो सकें।
बात दो मई 1999 की है। ताशी नामग्याल नाम के एक चरवाहे थे। उस दिन उनका नया नवेला याक खो गया था। नामग्याल अपने याक की खोज में निकले। इसी दौरान उन्होंने कारगिल की पहाड़ियों में छिपे घुसपैठिये पाकिस्तानी सैनिकों को देखा।
नामग्याल पहाड़ियों पर चढ़-चढ़कर देख रहे थे। वो कोशिश कर रहे थे कि कहीं उनका याक दिख जाए। इसी दौरान उन्हें अपना याक नजर आ गया। इस दौरान उन्हें याक के साथ जो कुछ दिखा वह कारगिल युद्ध की पहली घटना माना जाता है। तीन मई को उन्होंने इसकी जानकारी भारतीय सेना को दी।
19 मई वो तारीख थी जिस दिन कारगिल युद्ध की एक तौर पर आधिकारिक शुरुआत हुई। द्रास सेक्टर पर अपने इलाके को कब्जे में लेने के लिए इस ऑपरेशन की शुरुआत हुई। दुश्मन ऊंची चोटियों पर बैठा था। हमारी सेना को खड़ी चढ़ाई चढ़नी थी। उसके लिए दुश्मन के निशाने से बचना मुश्किल था। इसके बाद तोलोलिन पहाड़ी से लेकर टाइगर हिल तक हर पोस्ट पर हमारे शूरवीरों ने न सिर्फ कब्जा किया बल्कि पाकिस्तानी सैनिकों को मार खदेड़ा। भारतीय सेना की बोफोर्स तोप ने अपने दम पर युद्ध का रुख बदला था।
26 मई 1999 को ऑपरेशन सफेद सागर लॉन्च किया गया। 27 मई को दो भारतीय लड़ाकू विमानों को पाकिस्तानी सेना ने मार गिराया। फ्लाइट लेफ्टिनेंट के नचिकेता को पाकिस्तान ने युद्धबंदी बना लिया। वहीं, स्क्वॉड्रन लीडर अजय अहूजा शहीद हो गए। इसके बाद भारत ने रणनीति बदली। लड़ाकू विमानों की जगह हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल करने का फैसला किया। इन हेलीकॉप्टरों ने पाकिस्तानी ठिकानों को निशाना बनाना शुरू किया। इस दौरान एक हेलीकॉप्टर खो दिया। इसके बाद भारत ने मिराज विमानों को मोर्चे पर लगाया। मिराज के हमलों से पाकिस्तानी सेना की कमर टूट गई।
नेवी ने अपना ऑपरेशन तलवार शुरू किया। इसके तहत वेस्टर्न नेवल कमांड और साउदर्न नेवल कमांड ने अरब सागर में पाकिस्तान पर नेवल ब्लॉकेज लगा दिया। इस ब्लॉकेज की वजह से पाकिस्तान में पेट्रोलियम की सप्लाई तक बंद हो गई। हालात यह हो गई उसके पास महज छह दिन का पेट्रोलियम बचा था। हर ओर से घिरे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मदद के लिए अमेरिका पहुंच गए।
14 जुलाई को भारत ने कहा कि हमारा ऑपरेशन सफल
एक ओर शरीफ अमेरिका से मदद मांग रहे थे, दूसरी ओर परवेज मुशर्रफ चीन से मदद की गुहार लगा रहे थे। इसी दौरान मुशर्रफ ने माना था कि उनकी सेना भारतीय इलाके में घुसी हुई है। मुशर्रफ की यह बात भारत ने इंटरसेप्ट करके सार्वजानिक कर दी। इस खुलासे के साथ पाकिस्तान की पूरी साजिश दुनिया के सामने आ गई। 14 जुलाई को भारत ने कहा कि हमारा ऑपरेशन सफल हो गया है। इसके बाद भारतीय सेना ने हर चौकी को पूरी तरह से मुक्त कराया और 26 जुलाई को सेना ने युद्ध खत्म होने का एलान किया।
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