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    मोदी की ध्यान साधना और उस पर उठते सवालों के बीच यह भी एक सच है !

  • June 02, 2024

    – डॉ. मयंक चतुर्वेदी

    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पिछली बार की तरह इस बार भी चुनाव प्रचार समाप्त होते ही ध्यान साधना के लिए चले गए। हम सभी जानते हैं कि पहले उन्होंने उत्तराखंड के केदारनाथ की रूद्र गुफा को अपनी ध्यान स्थली के रूप में चुना था और इस बार वे तमिलनाडु राज्य में कन्याकुमारी स्थित विवेकानंद रॉक मेमोरियल में ध्यान मग्न होने पहुंचे। यानी प्रधानमंत्री मोदी ने भारत के हिमालय के उस क्षेत्र में जहां आद्य गुरु शंकराचार्य ने साधना की से लेकर सुदूर कन्याकुमारी जहां आधुनिक ऋषि विवेकानन्द की तपोस्थली है, वहां स्वयं की साधना के लिए स्थान तय किया।


    आश्चर्य होता है यह जानकर कि प्रधानमंत्री मोदी की व्यक्तिगत कामना और निज से जुड़े बेहद आध्यात्मिक प्रसंग को भी भारत जैसे सर्वपंथ सद्भाव वाले देश में कई लोगों द्वारा नकारात्मक रूप से प्रस्तुत किया जा रहा है। इसके उदाहरण स्वरूप मीडिया में चल रहीं कई अंतहीन बहसों में इंडी गठबंधन से जुड़े नेता प्रधानमंत्री के इस निजि प्रसंग को भी राजनीतिक चश्में से देख रहे हैं और उनकी भरपूर आलोचना कर रहे हैं। क्या विपक्ष का यह रवैया सही है? आइए इस विषय पर कुछ गहन चर्चा करें; प्राचीन ग्रंथ ‘बृहस्पति आगम’ में भारत के भू-भाग को एक श्लोक में बहुत ही सुंदर ढंग से समझाया गया है –

    ‘‘हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्।
    तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थान प्रचक्षते॥”
    इसका अर्थ है, हिमालय से प्रारंभ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है। इस श्लोक की साधारण व्याख्या आगे स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने अपने अंदाज में बहुत सरल एवं आवश्यक व्याख्या की है । वे लिखते हैं –

    आसिन्धुसिन्धुपर्यंता यस्य भारतभूमिका ।
    पितृभूः पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरिति स्मृतः ।।
    तात्पर्य है कि ‘सिन्धु नदी के उद्गमस्थान से कन्याकुमारी के समुद्रतक (विस्तृत भूभाग को) भारत भूमि को जो पितृ भूमि (मातृ भूमि) और पुण्य भूमि मानते हैं, उन्हें ‘हिन्दू’ कहते हैं । 1923 में प्रकाशित सावरकर की रचना “एसेंशियल ऑफ हिन्दुत्व” अस्तित्व में आई । उन्होंने इस पुस्तक में भारत वर्ष में रहनेवाले लोग कौन हैं इस पर गहराई से प्रकाश डाला है।

    पुस्तक का ‘सारतत्व यह है कि, हिंदू वह है, जो सिंधु से सिंधुपर्यन्त समुद्र तक फैले हुए इस देश को अपने पूर्वजों की भूमि के रूप में अपनी पितृभूमि (पितृभु), मानकर पूजता हो; जिसके शरीर में उस महान जाति का रक्त प्रवाहित हो रहा हो जिसका मूल वैदिक सप्तसिंधुओं में सर्वप्रथम दिखाई देता है और जो कुछ भी इसमें शामिल था उसको आत्मसात करते हुए तथा जो भी शामिल था उसको और बेहतर योग्य करते हुए संसार में “हिंदू” नाम से विख्यात हुई; और जो हिन्दुस्तान को अपनी पितृभूमि (पितृभु) और हिन्दू जाति को अपनी जाति मानने के कारण उस हिन्दू संस्कृति को अपनी विरासत मानता है और दावा करता है जो मुख्य रूप से उनकी सामान्य पारंपरिक भाषा, संस्कृत में व्यक्त की जाती है और एक साझा इतिहास, एक साझा साहित्य, कला और वास्तुकला, कानून और न्यायशास्त्र, संस्कारों और रिवाजों, समारोहों और धार्मिक उत्सवों, मेलों और त्योहारों द्वारा प्रकट होती है; और सबसे बढ़कर इस भूमि को, इस सिंधुस्तान को अपनी पवित्र भूमि (पुण्यभु) के रूप में संबोधित करता है, और इसे धर्मप्रर्वतकों (पैंगम्बरों) की भूमि के रूप में, अपने ईश्वर और गुरुओं की तथा धर्मपरायणता और तीर्थभूमि के रूप में देखता है।’

    “एसेंशियल ऑफ हिन्दुत्व” में सावरकर जोर देकर कहते हैं कि ‘ये हिंदुत्व की अनिवार्यताएं हैं- एक साझा राष्ट्र (राष्ट्र), एक साझा नस्ल (जाति), और एक साझा सभ्यता (संस्कृति ) । इन सभी आवश्यक बातों को समेटकर, संक्षेप में यह कहकर प्रस्तुत किया जा सकता है कि एक हिंदू वह है जिसके लिए सिंधुस्थान न केवल पितृभूमि (पितृभु) है, बल्कि पवित्र भूमि (पुण्यभू) भी है।’ हिन्दू शब्द पर की गई इस व्याख्या से इतना तो स्पष्ट हो जाता है कि किसी भी पंथ, मजहब, धर्म, विचार को माने या न मानें कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन भारत-भू को अपना सर्वस्व माननेवाला यहां निवासरत प्रत्येक मनुष्य हिन्दू है। क्योंकि उसकी पुण्यभूमि और जन्म भूमि भारत है और उसके पुरखे भी समान हैं।

    अब प्रधानमंत्री मोदी यहां क्या कर रहे हैं? वे अपने पूर्वजों द्वारा स्थापित ज्ञान परंपरा के तमाम केंद्रों पर लगातार जा रहे हैं । जो भारत की मूल सांस्कृतिक पहचान हैं, उस पहचान के आधुनिक विस्तार में आज प्रधानमंत्री मोदी अपना (राजनीतिक, आर्थिक समाजिक, धार्मिक) हर संभव योगदान दे रहे हैं । पिछले 10 सालों में सत्ता में रहते हुए उन्होंने एक ओर आधुनिक भारत के लिए जरूरी सभी आवश्यकताओं को अपरिहार्य रूप से पूरा करने के लिए अपना संकल्प दिखाया है तो दूसरी ओर भारतीय ज्ञान परंपरा के वाहक स्तम्भों को कैसे और अधिक विस्तार दिया जा सकता है उस दिशा में कार्य किया है । आलोचना करनेवाले जो भी कहें, किंतु इस बात को क्या कोई नकार सकता है कि सांस्कृतिक भारत के पुनर्निमाण में प्रधानमंत्री मोदी का योगदान लोकतंत्रात्मक शासन प्रणाली में अभी तक की सभी सरकारों के कार्यकाल में सबसे अधिक रहा है।

    आप देखिए, प्रधानमंत्री मोदी उत्तराखण्ड जाते हैं, फिर वहां विकास का एक नया दौर शुरू होता दिखता है। वे वाराणसी बाबा विश्वनाथ से होते हुए सारनाथ, विंध्यवासिनी, वहां से बोध गया, नालंदा तक संदेश देते हुए उज्जैयनी के महाकाल लोक में आते हैं और रामपथ गमन का संपूर्ण मार्ग प्रशस्त करते हैं! फिर ओंकारेश्वर होते हुए दक्षिण भारत, गुजरात, पूर्वोत्तर भारत की यात्रा करते-करते प्रधानमंत्री मोदी जम्मू कश्मीर से कन्याकुमारी तक संपूर्ण भारत को उसकी प्राचीन आध्यात्मिक देव परंपरा के साथ एक नए सिरे से जोड़ते हुए दिखाई देते हैं। जिसमें विकास भी है, रोजगार भी है, आध्यात्म भी है और शांति भी है।

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