नई दिल्ली. दशहरा (Dussehra) गुजर चुका है और दिवाली नजदीक है, लेकिन राजधानी दिल्ली (Delhi) समेत कई राज्यों में वायु प्रदूषण (Air Pollution) की समस्या जस की तस है. ऐसे में एक बार फिर त्योहार पर ‘ग्रीन पटाखों’ का शोर सुनाई दे सकता है. उदाहरण के लिए राजस्थान सरकार ने अपना फैसला बदलते हुए केवल ग्रीन क्रैकर्स को ही अनुमिति देने का फैसला किया है, जबकि दिल्ली(Delhi) में पटाखों पर पूरी तरह से प्रतिबंध (Sanctions) रहेगा. इधर, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कुछ राज्यों से ग्रीन पटाखों (green firecrackers) को अनुमति देने की अपील की है. अब समझते हैं कि ग्रीन क्रैकर्स आखिर होते क्या हैं?
सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) की तरफ से मंजूरी हासिल कर चुके ग्रीम पटाखों से उत्सर्जन कम होता है. आम पटाखों की तुलना में इनके शेल का आकार भी कम होता है. 2017 में पटाखों और आतिशबाजियों पर लगे पूर्ण प्रतिबंध में ढील देते हुए शीर्ष अदालत ने ग्रीन क्रैकर्स की इजाजत दी थी. इन्हें काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च-नेशनल एनवायरमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (CSIR-NEERI) के एक्सपर्ट्स ने तैयार किया है.
सुप्रीम कोर्ट की तरफ से जारी किए गए आदेशों के अनुसार, इन ग्रीन पटाखों को कम हानिकारक कच्चे माल से तैयार किया जाता है. इन्हें इस तरह से तैयार किया जाता है कि जलाए जाने पर ये धूल को दबाते हैं. इनमें लिथियम, आर्सेनिक, बैरियम और लेड जैसी कैमिकल्स भी नहीं होते. यह जलने पर भाप छोड़ते हैं जो धूल को उड़ने नहीं देती. हालांकि, यह भी कुछ हद तक पर्यावरण को प्रभावित करते हैं. माना जाता है कि ये ग्रीन पटाखे 30 फीसदी कम पार्टिकुलेट मैटर पॉल्युशन (PM) उत्सर्जित करते हैं हैं.
दिल्ली में 1 जनवरी 2022 तक पटाखे जलाने पर पूरी तरह से प्रतिबंध होगा. आदेश के अनुसार, कई जानकारों ने कोविड-19 के मामले फिर बढ़ने की संभावना जताई है. तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा और ओडिशा के समकक्षों से ग्रीन पटाखों की बिक्री पर गंभीरता से विचार करने की अपील की है. इसके बाद राजस्थान ने नियमों में ढील दी थी.
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