नई दिल्ली (New Delhi) । माघ महीने की पहली एकादशी यानी कि षटतिला एकादशी (Shattila Ekadashi ) का व्रत 18 जनवरी 2023 को किया जाएगा. इस व्रत में भगवान विष्णु (Lord Vishnu) की पूजा तिल से की जाती है और तिल का दान करना बेहद लाभकारी माना जाता है.
धार्मिक मान्यता है कि षटतिला एकादशी का व्रत करने से हजारों वर्ष तपस्या करने के अधिक फल मिलता है साथ ही जो इस दिन तिल का छह तरह से उपयोग करता है उसे कभी धन की कमी नहीं होती, आर्थिक तंगी (Cash-strapped) से छुटकारा मिलता है. व्यक्ति को हजारों वर्ष स्वर्ग में रहने का पुण्य प्राप्त होता है. शास्त्रों के अनुसार भगवान विष्णु ने नारद मुनि को षटतिला एकादशी व्रत का महत्व (Importance) बताया था. आइए जानते हैं षटतिला एकादशी व्रत की कथा
षटतिला एकादशी 2023 मुहूर्त
माघ मास कृष्ण षटतिला एकादशी तिथि शुरू – 17 जनवरी 2023, शाम 06 बजकर 05 मिनट
माघ मास कृष्ण षटतिला एकादशी तिथि समाप्त – 18 जनवरी 2023, शाम 4 बजकर 03 मिनट
षटतिला एकादशी व्रत का पारण – सुबह 07:14 – सुबह 09: 21 (19 जनवरी 2023)
षटतिला एकादशी व्रत पूजा विधि (Shattila Ekadashi Vrat Vidhi in Hindi)
षटतिला एकादशी के दिन को बेहद ही पवित्र माना जाता हैं. यह माह मनुष्य को अपनी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर अहंकार, क्रोध, लोभ और लालच का त्याग करना चाहिए. माघ माह की एकादशी की पूजा और व्रत विधि अन्य एकादशी की तुलना में भिन्न हैं. इस एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा की जाती हैं और उनका स्मरण करते हुए तिल से बने गोबर के 108 उपले बनाने चाहिए. उपले बनाने का कार्य एकादशी से पूर्व कर लेना चाहिए.
एकादशी के दिन सुबह प्रातः काल उठकर स्नान करके पूजा करने बैठना चाहिए.
पद्म पुराण के अनुसार षटतिला एकादशी के दिन भगवान हरि की चन्दन, अरगजा, कपूर, नैवेद्य आदि से पूजा करनी चाहिए.
उसके बाद भगवान विष्णु नाम का उच्चारण करते हुए कुम्हड़ा, नारियल अथवा बिजौर के फल से विधि विधान से पूज कर अर्घ्य देना चाहिए.
इस दिन को प्रकार के व्रत किये जा सकते हैं निर्जल व्रत और फलाहारी या जलीय व्रत. निर्जल व्रत शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति को करना चाहिए. अन्य या सामान्य लोगों को फलाहारी या जलीय उपवास रखना चाहिए.
एकादशी के दिन 108 बार “ऊं नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करते हुए तिल से बने उपलों की हवन में आहुति देना चाहिए.
इस पर्व पर रात्रि में जागरण करने का भी विशेष महत्व हैं.
एकादशी के अगले दिन ब्राह्मण की पूजा कर उसे घड़ा, छाता, जूता, तिल से भरा बर्तन व वस्त्र दान देना चाहिए.
षटतिला एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार पृथ्वी पर एक ब्राह्मणी भगवान विष्णु की परम भक्त थी. उसके पति का देहांत हो चुका था. वह पूरा समय श्रीहरि की सेवा में लगी रहती. हर माह भगवान विष्णु का व्रत रखती थी, श्रीहरि उसकी भक्ति से अति प्रसन्न हुए. एक बार भगवान विष्णु साधु का वेश धर ब्राह्मणी के घर भिक्षा मांगने पहुंचे. ब्राह्मणी ने साधु के रूप में विष्णु जी दान में एक मिट्टी का पिंड दे दिया. इसके बाद विष्णु जी वापस वैकुंठ धाम पहुंच गए.
ब्राह्मणी को मिली खाली कुटिया
कुछ समय बाद ब्राह्मणी की भी मृत्यु हो गई और वह विष्णु लोक में पहुंच गई. वहां उसे रहने के लिए एक खाली कुटिया मिलती. कुटिया देखकर उसने भगवान विष्णु से कहा कि मैंने अपना सारा वक्त आपकी सेवा और पूजा में व्यतीत किया और मुझे सिर्फ ये खाली कुटिया मिली. भगवान विष्णु ने ब्राह्मणी से कहा कि तुमने अपने मनुष्य जीवन में कभी भी अन्न-धन का दान नहीं किया. यह सुनकर ब्राह्मणी ने भगवान विष्णु से इसका उपाय जाना.
दान से मिला अन्न-धन
श्रीहरि विष्णु बोले जब देव कन्याएं आप से मिलने आएं तो उसने षटतिला एकादशी के व्रत का विधान पूछना. ब्राह्मणी ने षटतिला एकादशी का व्रत किया और तिल का दान किया. व्रत के प्रभाव से कुटिया अन्न धन से भर गई इसलिए षटतिला एकादशी पर अन्न दान बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है.
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