देश के दर्द पर फिल्म का तांडव
कंधार विमान अपहरण कांड हमारी नाकामी का ही तो सबूत रहा…और इस देश के फिल्मकार देश की उस नाकामी पर भी फिल्म बनाने से नहीं चूके, जिसके जख्म आज भी दर्द देते हैं… हम खुद को कोसते रहते हैं… कैसे हमारे देश से उस डेढ़ सौ यात्रियों से भरे विमान का अपहरण हो गया…कैसे नेपाल से हुआ अपहरण अमृतसर की धरती को भी छूकर सफलतापूर्वक निकल गया…कैसे अपहर्ताओं ने यात्रियों को सात दिनों तक तड़पाया…कैसे हमारी सरकार का विवश और बेबस चेहरा नजर आया और सबसे बड़ी शर्मसार बात यह रही कि हमें विमान अपहर्ताओं की शर्ते मानने पर मजबूर होना पड़ा और देश को उन तीन इस्लामिक आतंकवादियों को रिहा करना पड़ा, जिनमें एक आतंकी मौलाना मसूद अजहर रिहाई के बाद जैश-ए-मोहम्मद जैसा आतंकी संगठन बनाकर आज भी भारत की छाती पर मूंग दलता है…मुश्ताक अहमद जरगल और अहमद उमर सईद शेख आतंकी संगठनों के सरमाएदार बनकर हिंदुस्तानी फौजियों पर हमले करते हंै… इस नाकामी पर फिल्म बनाना और 25 साल पहले 24 दिसंबर 1999 को हुए हादसे के जख्मों पर नमक डालना शायद इस देश के धन के लोभी…अदाओं के फितरती और विचारों के आत्मघाती फिल्मकारों का फैशन बन गया है… वो निर्भया की याद दिलाते हैं… वो बलात्कारों पर फिल्म बनाते हैं…वो नारियों का चीरहरण करवाते हैं…वो घरों में गंदगी फैलाते हैं और मौका मिलते ही आतंक से जूझते लोग और सरकार की नाकामी दिखाकर देश को नीचा दिखाने से बाज नहीं आते हैं…पता नहीं कंधार पर फिल्म बनाकर पैसों के यह लालची क्या दिखाना चाहते हैं…हमने इस हादसे में 17 लोगों को खोया…हमने इस हादसे में अपनी खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों की नाकामी को भोगा…हमने इस हादसे के 150 पीडि़त परिवारों के आंसुओं को देखा…हमने अपनी सरकार के मुखिया की बेबसी और विवशता को झेला…हमने इस हादसे में उन तीन आतंकियों को खिलखिलाते हुए रिहा होते देखा…हमने इसी आतंकवाद और अपहरण के बाद अल-कायदा और तालिबान जैसे खूंखार संगठन को जन्म लेते देखा…जब सबकुछ इतना विषभरा है तो उस पर फिल्म बनाना और आतंकियों को भोला और शंकर बनाना सीधा-सीधा देशद्रोह है…वो झूठ परोसेंगे और हम पैसे देकर उनके झूठ को निगलेंगे…इस देश में जब तक ऐसे मंदबुद्धि रहेंगे, तब तक ऐसे आतंकवादी हीरो बनते रहेंगे।
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