नई दिल्ली (New Delhi) । मिशन चंद्रमा (moon) के लिए चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) रवाना हो चुका है। चंदा मामा के राज जानने के लिए चंद्रयान-3 अपने साथ कुछ खास उपकरण (special equipment) लेकर गया है। यह छह उपकरण चंद्रमा की मिट्टी (Soil) से संबंधित समझ बढ़ाने और चंद्र कक्षा से नीले ग्रह की तस्वीरें (pictures) लेने में इसरो की मदद करेंगे। भारत के इस तीसरे चंद्र मिशन का लक्ष्य चंद्रमा की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करना है, जो भविष्य के अंतर-ग्रहीय अभियानों के लिए मार्ग प्रशस्त करेगा। उपकरणों में ‘रंभा’ और ‘इल्सा’ भी शामिल हैं, जो 14-दिवसीय मिशन के दौरान सिलसिलेवार ढंग से ‘पथ-प्रदर्शक’ प्रयोगों को अंजाम देंगे। ये चंद्रमा के वायुमंडल का अध्ययन करेंगे और इसकी खनिज संरचना को समझने के लिए सतह की खुदाई करेंगे।
चंद्रमा की भूकंपीय गतिविधियों का अध्ययन
लैंडर ‘विक्रम’ तब रोवर ‘प्रज्ञान’ की तस्वीरें लेगा जब यह कुछ उपकरणों को गिराकर चंद्रमा पर भूकंपीय गतिविधि का अध्ययन करेगा। लेजर बीम का उपयोग करके, यह प्रक्रिया के दौरान उत्सर्जित गैस का अध्ययन करने के लिए चंद्र सतह के एक टुकड़े ‘रेजोलिथ’ को पिघलाने की कोशिश करेगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का 15 वर्ष में यह तीसरा चंद्र मिशन है। इसकी शुरुआत शुक्रवार को अपराह्न दो बजकर 35 मिनट पर श्रीहरिकोटा से हुई। पांच अगस्त को इसके चंद्र कक्षा में पहुंचने की उम्मीद है। यह 23 अगस्त की शाम को चंद्रमा पर उतरने का प्रयास करेगा।
बड़े पैमाने पर होगा अध्ययन
इसरो अध्यक्ष एस सोमनाथ ने कहा कि हम जानते हैं कि चंद्रमा पर कोई वायुमंडल नहीं है। लेकिन यह पूरी तरह सच नहीं है क्योंकि इससे गैस निकलती हैं। वे आयनित हो जाती हैं और सतह के बहुत करीब रहती हैं। यह दिन और रात के साथ बदलता रहता है। लैंडर के साथ लगा उपकरण ‘रेडियो एनाटॉमी ऑफ मून बाउंड हाइपरसेंसिटिव आयनोस्फियर एंड एटमॉस्फियर’ (रंभा) चंद्र सतह के नजदीक प्लाज्मा घनत्व और समय के साथ इसके बदलाव को मापेगा। सोमनाथ ने कहा कि रोवर अध्ययन करेगा कि यह छोटा वातावरण, परमाणु वातावरण और आवेशित कण किस तरह भिन्न होते हैं। उन्होंने कहा कि यह बहुत दिलचस्प है। हम यह भी पता लगाना चाहते हैं कि रेजोलिथ में विद्युत या तापीय विशेषताएं हैं या नहीं।
इल्सा के जिम्मे यह पता लगाना
‘इंस्ट्रूमेंट फॉर लूनर सीस्मिक एक्टिविटी’ (इल्सा) लैंडिंग स्थल के आसपास भूकंपीयता को मापेगा और चंद्र परत एवं आवरण की संरचना का अध्ययन करेगा। इसरो प्रमुख ने कहा कि हम एक उपकरण गिराएंगे और कंपन को मापेंगे-जिसे आप ‘मूनक्वेक’ (चंद्र भूकंप) व्यवहार या आंतरिक प्रक्रियाएं कहते हैं। ‘लेजर-इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप’ (लिब्स) लैंडिंग स्थल के आसपास चंद्र मिट्टी और चट्टानों की मौलिक संरचना का पता लगाएगा। जबकि ‘अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर’ (एपीएक्सएस) चंद्र सतह की रासायनिक संरचना और खनिज संरचना संबंधी अध्ययन करेगा। ‘स्पेक्ट्रो-पोलरिमेट्री ऑफ हैबिटेबल प्लैनेट अर्थ’ (शेप) नामक उपकरण निकट-अवरक्त तरंगदैर्ध्य रेंज में अध्ययन करेगा, जिसका उपयोग सौर मंडल से परे एक्सो-ग्रहों पर जीवन की खोज में किया जा सकता है।
लैंडिंग का समय भी अहम
लैंडर का चंद्र सतह पर उतरने का समय काफी मायने रखता है क्योंकि इससे उपकरणों के अध्ययन करने की अवधि का निर्णय होता है। चंद्रयान-3 अपने लैंडर को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास 70 डिग्री अक्षांश पर उतारेगा जहां इसके रात होने से पहले एक चंद्र दिवस (धरती के 14 दिन के बराबर) तक रहने की उम्मीद है। चंद्रमा पर रात का तापमान शून्य से 232 डिग्री सेल्सियस नीचे तक गिर जाता है। सोमनाथ ने कहा कि तापमान में भारी गिरावट आती है और सिस्टम के रात के उन 15 दिनों तक बरकरार रहने की संभावना को देखना होगा। यदि यह उन 15 दिनों तक बरकरार रहती है और नए दिन की सुबह होने पर बैटरी चार्ज हो जाती है, तो यह संभवतः अंतरिक्ष यान के जीवन को बढ़ा सकता है।
पूरे देश को इंतजार
इसरो प्रमुख के अनुसार, 23 अगस्त को शाम 5.47 बजे चंद्रमा की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ कराने की योजना बनाई गई है। यदि ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ में सफलता मिलती है तो भारत ऐसी उपलब्धि हासिल कर चुके अमेरिका, चीन और पूर्ववर्ती सोवियत संघ जैसे देशों के क्लब में शामिल होने के साथ ही ऐसा कीर्तिमान रचने वाला विश्व का चौथा देश बन जाएगा। चंद्रयान-2 ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ में सफल नहीं रहा था, इसलिए चंद्रयान-3 और अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है, जिसकी सफलता के लिए पूरा देश प्रतीक्षा और प्रार्थना कर रहा है।
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