नई दिल्ली । कोरोना (Corona) महामारी के बीच पेटेंट मुक्त 81 दवाएं (medicines) सस्ती हुई हैं। वहीं आवश्यक सूची में शामिल कुछ दवाएं (medicines) अगले महीने से महंगी हो सकती हैं। इसमें दर्द निवारक, एंटीइन्फेक्टिव, कार्डियक और एंटीबायोटिक्स समेत अन्य जरूरी शामिल हो सकती है।
केंद्र सरकार ने सालाना खुदरा कीमत सूचकांक (WPI) के आधार पर कीमतों में बदलाव को अनुमति दे दी है। दवा कीमत पर नियंत्रण रखने वाली संस्था एनपीपीए (NPPA) ने शुक्रवार को कहा कि सरकार की ओर से 2020 के लिए डब्ल्यूपीआई में 0.5 फीसदी का वार्षिक बदलाव का नोटिफिकेशन जारी हुआ है। वहीं फार्मा कंपनियां इस बढ़ोतरी को लेकर खासी नाराज हैं। कंपनियों का कहना है कि दवा उत्पादन लागत में 15 से 20 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
इस आधार पर कंपनियां दवाओं की कीमतों में औसतन 20 फीसदी की बढ़ोतरी की योजना बना रही हैं। हालांकि अब आने वाला समय ही बताएगा की नए वित्त वर्ष शुरू होने के बाद कंपनियां क्या फैसला लेती हैं और दवाओं की नई बाजार कीमत क्या होती है। कोरोना के इलाज में इस्तेमाल होने वाले हेपरिन इंजेक्शन की कीमत में सितंबर 2021 तक कोई बदलाव नहीं होगा।
महामारी के कारण कीमतों में बढ़ोतरी
फार्मा कंपनियों की मानें तो सरकार ने जो दवा की कीमतों में वृद्धि की अनुमति दी है वो बहुत कम या न के बराबर है। कोरोना महामारी के दौरान कच्चा माला और पैकेजिंग समेत अन्य संसाधन की कीमतों में बढ़ोतरी हुई थी जिससे आपूर्ति कीमत बढ़ी थी। इसी आधार पर सरकार से इस बढ़ोतरी को ज्यादा करवाना है ताकि कंपनियां उत्पादन के साथ मुनाफा कमा सकें।
चीन पर निर्भरता से भी मुश्किल बढ़ी
हृदय, मधुमेह, एंटीबायोटिक, एंटीइन्फेक्टिव और विटामिन जैसी दवाओं का उत्पादन करने वाली अधिकतर कंपनियां जरूरी निर्माण सामग्री (एपीआई) चीन से आयात करती हैं। कुछ दवाओं के एपीआई के लिए चीन पर 80 से 90 फीसदी निर्भरता है। महामारी के कारण चीन ने एपीआई की कीमतों में 10 से 20 फीसदी तक की बढ़ोतरी की है। इससे दवा उत्पादन महंगा हुआ है।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved