नई दिल्ली। पुराणिक कथाओं के अनुसार महिषासुर एक असुर था. महिषासुर के पिता रंभ, असुरों का राजा था जो एक बार जल में रहने वाले एक भैंस से प्रेम कर बैठा. इसी योग से महिषासुर का जन्म हुआ. इसी वज़ह से महिषासुर इच्छानुसार जब चाहे भैंस और जब चाहे मनुष्य का रूप रख सकता था. वैसे संस्कृत में महिष का अर्थ भैंस होता है. वह ब्रह्मा का परम भक्त था.
मैसूर (Mysore) का सबसे शुरुआती नाम महिषासुर(Mahishasura) के नाम पर ही रखा गया था. जो पहले महिषा सुरू था. फिर महिषुरु हुआ. कन्नड़ में इसे मैसुरू कहा जाने लगा और अब मैसूर. मैसूर में महिषासुर की एक बहुत बड़ी प्रतिमा भी लगी हुई है. जिसे आपने ऊपर तस्वीर में देखा है.
जालंधर(Jalandhar) शहर का नाम जलंधर नाम के राक्षस के नाम पर पड़ा. कहा जाता है कि जलंधर भी शिव का पुत्र था. हालांकि पौराणिक कथाएं उसे भगवान शिव का सबसे बड़ा शत्रु बताती हैं. श्रीमद् देवी भागवत पुराण के अनुसार जलंधर असुर शिव का अंश था लेकिन उसे इसका पता नहीं था. जलंधर बहुत ही शक्तिशाली असुर था. इंद्र को पराजित कर जलंधर तीनों लोकों का स्वामी बन बैठा था. कहा जाता है कि यमराज भी उससे डरते थे.
पंजाब के इस शहर में आज भी असुरराज जलंधर की पत्नी देवी वृंदा का मंदिर मोहल्ला कोट किशनचंद में स्थित है. मान्यता है कि यहां एक प्राचीन गुफा थी, जो सीधी हरिद्वार तक जाती थी. माना जाता है कि प्राचीनकाल में इस नगर के आसपास 12 तालाब हुआ करते थे. नगर में जाने के लिए नाव का सहारा लेना पड़ता था. तमिलनाडु के शहर तिरुचिरापल्ली (Tiruchirappalli) का नाम भी एक राक्षस के नाम पर पड़ा. मान्यताओं के अनुसार यहां थिरिसिरन नाम का एक राक्षस हुआ करता था. जो शिव की घनघोर तपस्या करता था. जिससे जिस जगह वो रहता था, उसका नाम लोग थिरि सिकरपुरम कहने लगे. बाद में ये तिरुचिरापल्ली हो गया. ये शहर प्राचीन काल में चोल साम्राज्य का हिस्सा था. अब ये तमिलनाडु के बड़े जिलों में एक है. इसे त्रिची भी कहा जाता है. ये शहर अपने कई खास मंदिरों मसलन श्री रंगानाथस्वामी मंदिर, श्री जम्बूकेश्वरा मंदिर और वरैयूर आदि के लिए भी जाना जाता है. गया (Gaya) शहर में एक जमाने में गयासुर नाम का राक्षस रहता था. इस शहर का नाम उसी के नाम पर पड़ा. उसे लेकर इस शहर के लोग कई कहानियां भी कहते हैं. ये विष्णुपद मंदिर है. इस मंदिर का खास रिश्ता भी गयासुर से है. दरअसल भगवान विष्णु ने इस दैत्य का वध किया था. उस समय यहां के पैरों के चिन्ह पड़े थे. उसी के बाद यहां ये मंदिर बना, जिसे विष्णुपद मंदिर कहा जाता है. गया मुक्तिधाम के रूप में भी प्रसिद्ध है. लोग देशभर से यहां आकर अपने पितरों का श्राद्ध करते हैं. वैसे गया बौद्धों और जैन धर्म के लिए भी ऐतिहासिक महत्व रखता है. यहां कई विश्व प्रसिद्ध बौद्ध मंदिर और स्थान हैं. ये बिहार का दूसरा बड़ा शहर भी है. इस शहर का उल्लेख रामायण और महाभारत में मिलता है. गया तीन ओर से छोटी व पत्थरीली पहाड़ियों से घिरा है, जिनके नाम मंगला-गौरी, श्रृंग स्थान, रामशिला और ब्रह्मयोनि हैं. नगर के पूर्व में फल्गू नदी बहती है. ये प्रलंबासुर राक्षस है. वो मथुरा के राजा कंस का असुर मित्र था. एक बार जब श्रीकृष्ण अन्य गोपों तथा बलराम के साथ खेल रहे थे. तभी असुर प्रलंब भी सखाओं में मिल गया. फिर वो बलराम को कंधे पर बिठाकर चुपके से भाग निकला. बलराम ने तब अपने शरीर का भार इतना अधिक कर लिया कि प्रलंबासुर के लिए भागना मुश्किल हो गया. उसे चलने में दिक्कत होने लगी. उसे अपने असली रूप में आना पड़ा. तब प्रलंबासुर तथा बलराम के बीच युद्ध हुआ और प्रलंबासुर मारा गया. पलवल(Palval) का नाम इसी प्रलंबासुर राक्षस के नाम पर पड़ा. इस शहर को पलंबरपुर भी कहा जाता था लेकिन समय के साथ नाम बदल कर पलवल कर दिया गया. हालांकि इस शहर ने आजादी की लड़ाई में भी काफी योगदान दिया है.