लखनऊ। चुनावी समीकरणों का एक बेहद रोचक तथ्य है कि जिस भी दल ने आरक्षित सीटों में से साठ फीसदी से ज्यादा जीतीं, सत्ता उसी के हाथ रही। सभी दल इन सीटों की अहमियत समझते हैं। यही वजह है कि सभी इन सीटों पर जीत के समीकरण साधने में जुटे हैं। तो बसपा सुप्रीमो मायावती अनुसूचित जातियों के साथ ब्राह्मण, मुस्लिम और जाटों का गठजोड़ बनाने में जुटी हैं। मंशा साफ है कि इनमें से कोई एक भी पूरी तरह से साथ आ गया तो बात बन जाएगी।
प्रदेश में इस समय 86 आरक्षित सीटें हैं। इनमें 84 अनुसूचित जाति के लिए, तो दो सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए हैं। बहरहाल सियासी दलों की नजरें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 84 सीटों पर गड़ी हुई हैं। सियासी पंडित बताते हैं कि 2007 के विधानसभा चुनाव में आरक्षित सीटें 89 थीं। इनमें से बसपा ने 62 पर जीत दर्ज कर सरकार बना ली थी। 2012 के चुनाव में बसपा आरक्षित सीटों में से 15 ही जीत पाई। समाजवादी पार्टी ने 58 आरक्षित सीटें जीत लीं। नतीजा, सपा की सूबे में सरकार बन गई है।
आरक्षित सीटों पर बसपा का खास अभियान
पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 21 आरक्षित सीटों के समीकरण साधने में राजनीतिक दल जुट गए है। ब्राह्मण-अनुसूचित जाति का समीकरण साधने के लिए बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा सम्मेलन कर चुके हैं। रामपुर मनिहारन, सहारनपुर ग्रामीण, पुरकाजी, खैर, इगलास, जलेसर, नहटौर, नगीना, धनौरा, हापुड़, हस्तिानपुर, खुर्जा, आगरा देहात, आगरा कैंट, टूंडला, किशनी, बलदेव, फरीदपुर, पूरनपुर, पुवायां सीट पर खास तैयारी की गई है।
16 दिसंबर से दूसरे चरण का अभियान शुरू होना है। इन सभी सीटों पर जहां दलितों की संख्या काफी है, तो ब्राह्मण भी इस भूमिका में हैं कि वे चुनाव परिणाम को प्रभावित कर सकते हैं। बसपा की मंशा इन सीटों पर ब्राह्मणों को साथ जोड़ने की है ताकि उसकी मंजिल आसान हो जाए। हालांकि बसपा इन सीटों पर जाट और मुस्लिमों को भी जोड़ने की बात कर रही है, पर इन जातियों के मजबूत सिपहसालार इस समय नहीं होने के कारण पार्टी उतनी शिद्दत से काम नहीं कर पा रही है।
भाजपा की भी पैनी नजर, मंत्रिमंडल विस्तार में रखा खास ध्यान
भाजपा खास तौर पर दलित मतदाताओं पर नजर गड़ाए हुए है। सरकार ने मंत्रिमंडल विस्तार किया तो इसका खास ख्याल रखा और दलितों को तरजीह दी। सुरक्षित सीटों से जीतकर आए विधायकों को मंत्री बनाकर यह संदेश देने की कोशिश की गई कि भाजपा दलितों का खास ख्याल रख रही है। भगवा खेमे की पूरी मंशा आरक्षित वर्ग के साथ वैश्य, ठाकुर, गुर्जर, ब्राह्मण, त्यागी, अति पिछड़ा वर्ग को साथ लाने की है।
बसपा से आए सूरमा चला रहे सपा के तीर
वहीं, सपा ने भी इन सीटों पर अपना तीर चल दिया है। बसपा छोड़कर सबसे ज्यादा नेता सपा में आ रहे हैं। सपा इसी तीर से दूसरे दलों को धराशायी करना चाह रही है। खासतौर से बसपा छोड़कर आए अनुसूचित जाति के नेताओं को इन सीटों पर लगाया गया है। फिलहाल कैबिनेट मंत्री केके गौतम को इसी लक्ष्य को साधने की जिम्मेदारी दी गई है। कांग्रेस भी ऐसे ही समीकरण बनाने में जुटी है। लखीमपुर क्षेत्र में पंजाब के सीएम चरण सिंह चन्नी ने जिस तरह से कई बार अपनी आमद दर्ज कराई, उससे भी कांग्रेस की रणनीति साफ हो जाती है।
2017 में भाजपा सबसे ऊपर
अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित दोनों सीटें सोनभद्र जिले में हैं। भाजपा ने 2017 में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 69 तो अनुसूचित जनजाति की 1 सीट यानी 70 सीटें जीत लीं। अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित दूसरी सीट भाजपा के सहयोगी अपना दल ने जीती। वहीं, अपना दल व सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने एससी के लिए आरक्षित 3-3 सीटों पर जीत दर्ज की थी। तो दूसरी तरफ सपा ने 7, बसपा ने 2 और 1 सीट निर्दलीय उम्मीदवार ने जीती थी। भाजपा और उसके सहयोगी दलों की आरक्षित सीटों पर सामूहिक सफलता दर 88 फीसदी रही। भाजपा सरकार बनाने में कामयाब रही।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved