• img-fluid

    इन 7 सुपर स्टार ने छुड़ा दिए विरोधियों के छक्के, जानिए वो स्ट्रैटिजी जिसने कर दिया खेला

  • June 04, 2024

    नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव 2024 में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party in Uttar Pradesh) ने दमदार वापसी की है. राजनीतिक जानकारों की मानें तो इस बार सपा प्रमुख अखिलेश यादव (SP chief Akhilesh Yadav) की यूपी में टिकट बांटने की रणनीति उसकी जीत का प्रमुख कारण है. लोकसभा चुनाव 2024 में सपा ने टिकट देने में नॉन यादव और ओबीसी उम्मीदवारों को ज्यादा प्राथमिकता दी. भारतीय राजनीति के कई खिलाड़ियों के लिए लोकसभा चुनाव सरवाइवल की जंग हो गई थी, लेकिन अपने सतत संघर्ष की बदौलत कई रणबांकुरों ने मंजिल पा ली है – अखिलेश यादव से लेकर उद्धव ठाकरे तक सभी के मामले में रवायत मिलती जुलती ही है।

    अखिलेश यादव
    एक बार फिर साबित हो गया है कि डिंपल यादव की हार के बाद अखिलेश यादव जब मैदान में उतरते हैं तो बड़ी जीत हासिल करते हैं. 2009 में डिंपल यादव को पहली बार फिरोजाबाद लोकसभा सीट पर उपचुनाव में समाजवादी पार्टी का उम्मीदवार बनाया गया था. कांग्रेस के राज बब्बर ने डिंपल यादव को चुनाव हरा दिया था. हार के उसी दर्द के साथ अखिलेश यादव ने साइकिल उठाई और निकल पड़े थे. तब यूपी में मायावती की सोशल इंजीनियरिंग वाली सरकार थी – और मुलायम सिंह यादव का दिल्ली में मन लगने लगा था.

    तीन साल की कड़ी मशक्कत के बाद अखिलेश यादव घर तभी लौटे जब 2012 में समाजवादी पार्टी को यूपी के लोगों ने सत्ता सौंप दी. अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने और जब उनकी खाली की हुई कन्नौज सीट पर चुनाव हुए तो ऐसे इंतजाम किये गये कि डिंपल यादव निर्विरोध जीत कर संसद पहुंच गईं. 2014 का चुनाव तो डिंपल यादव बड़े आराम से जीत गईं, लेकिन 2019 में मायावती की बीएसपी के साथ गठबंधन के बावजूद कन्नौज सीट गंवा बैठीं – 10 साल बाद अखिलेश यादव के लिए दोबारा वैसा ही सदमा था – और सदमे से तो वो डिंपल की मैनपुरी की जीत के साथ ही उबर चुके थे, लेकिन बीजेपी से बदला अब जाकर पूरा हुआ है.

    ‘करो या मरो’ – अखिलेश यादव ने ये यूं ही नहीं कहा था. 2017 और 2022 ही नहीं, 2014 और 2019 में पांच-पांच सीटें ही मिली थीं, जिससे डिंपल यादव बाहर थीं. मायावती के गठबंधन तोड़ लेने, और कांग्रेस के साथ एक बार गठबंधन फेल हो जाने के बाद भी राहुल गांधी के साथ चुनावी समझौता किया. कोविड के दौरान अखिलेश यादव पर घर से नहीं निकलने तक के आरोप लग रहे थे. लोकसभा चुनावों को लेकर भी कहा जा रहा था कि बहुत देर से जगे हैं. सामने देश की सबसे ताकतवर पार्टी बीजेपी से लड़ाई थी. एक साथ मोदी और योगी दोनो से दो-दो हाथ करने थे, लेकिन अखिलेश यादव ने डट कर मुकाबला किया और राम मंदिर के निर्माण और उद्घाटन से बीजेपी के पक्ष में बने माहौल में संघर्ष किया – और फैजाबाद की सीट पर भी काबिज होते लग रहे हैं. अखिलेश यादव का का पीडीए तो ऐसा अचूक हथियार साबित हुआ है कि लग रहा है बीजेपी 32 सीट पर सिमट कर रह जाएगी.

    चंद्रबाबू नायडू
    चंद्रबाबू नायडू का एनडीए के साथ पिछला अनुभव अच्छा तो नहीं रहा, लेकिन जैसे समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के साथ फिर से हाथ मिलाने का फैसला किया, टीडीपी भी बीजेपी के साथ वैसे ही पेश आई. 2019 से पहले नायडू के एनडीए छोड़ देने से नाराज तो बीजेपी भी थी, लेकिन आंध्र प्रदेश में पांव जमाने के लिए उसे भी एक बैसाखी की जरूरत थी. 2019 के आम चुनाव में चंद्रबाबू नायडू ने बीजेपी के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने की खूब कोशिशें की थी – चुनाव नतीजे आने के पहले तक राहुल गांधी और ममता बनर्जी को एक साथ बिठाकर विपक्ष की मीटिंग कराना चाहते थे, लेकिन टीएमसी नेता ने बिलकुल भी भाव नहीं दिया.

    जगनमोहन रेड्डी ने परेशान करने में नायडू को परेशान करने में कोई कसर बाकी न रखी, जेल तक भेज डाला. जेल से बाहर आकर चंद्रबाबू नायडू राजनीतिक लड़ाई छेड़ दी, और जगनमोहन रेड्डी के खिलाफ आंध्र प्रदेश में उभरे असंतोष का पूरा फायदा उठाया. आज की तारीख में नायडू के दोनों हाथों में लड्डू तो है ही सिर भी कड़ाही में है – सूबे में सत्ता तो मिली ही, लोकसभा की इतनी सीटें मिली है कि एनडीए छोड़ना नहीं चाहता – और इंडिया ब्लॉक भी चारा डालने की कोशिश में है – खोई हुई जमीन पर काबिज होने के साथ साथ किंगमेकर बन कर उभरे हैं चंद्रबाबू नायडू. चंद्रबाबू नायडू ने जगनमोहन रेड्डी को सत्ता से तो बेदखल किया ही है, आंध्र प्रदेश की 16 सीटों पर बढ़त बनाने के साथ ही YSRCP को 4 सीटों पर समेट दिया है.

    उद्धव ठाकरे
    उद्धव ठाकरे ने अखिलेश यादव की तरह ‘करो या मरो’ जैसी बात भले न कही हो, लेकिन उनकी स्थिति तो और भी बुरी हो गई थी. बीजेपी से दुश्मनी लेकर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री तो बन गये थे, लेकिन एक दिन एक झटके में बदले की आग में धधकती बीजेपी ने ही पैरों तले जमीन ही खींच डाली – एकनाथ शिंदे की बगावत के चलते पार्टी से भी पैदल हो गये. चुनाव आयोग ने भी एकनाथ शिंदे को ही शिवसेना का असली नेता बना दिया – और बीजेपी की मदद से वो एक साथ पार्टी और मुख्यमंत्री की कुर्सी पर भी काबिज हो गये.

    उद्धव ठाकरे के लिए ये चुनाव अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाने और बेटे आदित्य ठाकरे की भविष्य सुरक्षित रखने का आखिरी मौका था – अब अगर महाराष्ट्र विधानसभा में सत्ता में वापसी नहीं भी कर पाये तो भी उद्धव ठाकरे को कोई मलाल नहीं रहेगा. महाराष्ट्र में लोकसभा सीटों के रुझानों की बात करें तो बीजेपी के पास उद्धव ठाकरे से महज एक सीट ज्यादा है. बीजेपी को 10 सीटें मिलने जा रही हैं जबकि उद्धव ठाकरे की शिवसेना को 9 सीटे मिल रही हैं – और सबसे बड़ी बात एकनाथ शिंदे को उद्धव ठाकरे दो सीटें कम 7 मिल रही हैं.

    ममता बनर्जी
    ममता बनर्जी ने तो तीन साल के भीतर दूसरी बार बीजेपी को पटखनी दे डाली है. शुभेंदु अधिकारी जैसे मजबूत सहयोगी को गंवाने के बाद उनके खिलाफ नंदीग्राम से खुद हार कर भी ममता बनर्जी ने टीएमसी को पश्चिम बंगाल की सत्ता दिला दी थी – और इस बार तो ऐसा लग रहा था जैसे बीजेपी बंगाल में टीएमसी को तहस नहस कर डालेगी, लेकिन ममता ने ऐसा होने नहीं दिया. एक बार तो लगा था कि इंडिया गठबंधन से दूरी बनाकर ममता बनर्जी ने ठीक नहीं किया, लेकिन जीत तो हर बात का जवाब होती है. ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल की 29 लोकसभा सीटों पर बढ़त बनाकर सभी सवालों का जवाब दे दिया है – बीजेपी का 12 सीटों पर सिमटते नजर आना तो तृणमूल कांग्रेस के लिए बोनस है.

    नीतीश कुमार
    नीतीश कुमार तो सबसे बड़े खिलाड़ी बन कर उभरे हैं. ढलती उम्र और घटती लोकप्रियता के बावजूद नीतीश कुमार ने अपनी ‘पलटू’ स्किल का भरपूर इस्तेमाल किया है – और मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज रहते हुए भी लोकसभा चुनाव में बीजेपी को पछाड़ कर बदला ले लिया है. 2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने चिराग चिराग पासवान की मदद से नीतीश कुमार को सबसे कम सीटों पर समेट दिया था. अरुणाचल प्रदेश के 6 विधायकों पर भी हाथ साफ कर दिया था.

    मौका देखकर अगस्त, 2022 में लालू यादव के साथ चले गये नीतीश कुमार ने इंडिया गठबंधन बनाया, लेकिन बात नहीं बनी तो बीजेपी के ना-ना करने के बावजूद मजबूर करते हुए फिर से जनवरी, 2024 में एनडीए में शामिल हो गये. चंद्रबाबू नायडू और ममता बनर्जी की तरह नीतीश कुमार भी बीजेपी के बराबर 12 सीटों पर बढ़त बनाकर एक मजबूत किंगमेकर बन कर उभरे हैं – और ऐसी पोजीशन हासिल कर ली है कि दोनो तरफ तगड़ा मोलभाव करने की स्थिति में आ गये हैं.

    चंद्रशेखर आजाद
    2022 में विधानसभा पहुंचने के लिए जूझ रहे भीम आर्मी वाले चंद्रशेखर आजाद को सीधे संसद में दाखिला मिल चुका है. सहारनपुर हिंसा के लिए जेल भेजे जाने और गैंगस्टर एक्ट की कार्रवाई से उबरने के बाद जब चंद्रशेखर आजाद बाहर आये तो मायावती को बुआ कह कर संबोधित किया था, लेकिन बीएसपी नेता ने सीधे सीधे रिश्ता खारिज कर दिया था कि वो किसी की बुआ नहीं हैं – और उसके बाद वो लगातार अपने दलित समर्तकों को आगाह करती रहीं कि चंद्रशेखर जैसे लोगों के झांसे में आने की जरूरत नहीं है.

    संघर्ष के दौरान कभी प्रियंका गांधी की सहानुभूति मिली, तो कभी अखिलेश यादव बातचीत के लिए राजी हुए, लेकिन उनकी डिमांड किसी ने भी नहीं पूरी की. 2019 में चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ वाराणसी से चुनाव लड़ने की बात कही, लेकिन मोटरसाइकिल रैली करके लौट गये. 2022 में वो यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ चुनाव भी लड़े. यूपी में उपचुनावों के दौरान वो आरएलडी नेता जयंत चौधरी के साथ साथ लगे रहे, और राजस्थान में भी उनके साथ जमीन तलाशते रहे – जयंत चौधरी का बीजेपी के साथ चले जाना चंद्रशेखर के लिए बहुत अच्छा रहा. केंद्र सरकार की तरफ से उनको सुरक्षा तो मिली ही, ऐसी परिस्थितियां बनीं कि नगीना लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने का रास्ता साफ हो सका – और करीब डेढ़ लाख वोटों के अंतर से जीत भी हासिल कर ली है.

    प्रियंका गांधी वाड्रा
    अव्वल तो राहुल गांधी ने भी लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया है, लेकिन उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा उनसे दो कदम आगे नजर आ रही हैं. बेशक राहुल गांधी रायबरेली और वायनाड दोनों जगह से चुनाव जीत गये हैं, लेकिन अमेठी का बदला तो प्रियंका गांधी ने ही लिया है. 2019 के आम चुनाव से पहले प्रियंका गांधी को कांग्रेस में औपचारिक तौर पर महासचिव बनाया गया, और पूर्वी उत्तर प्रदेश का जिम्मा भी. 2022 के यूपी चुनाव में प्रियंका गांधी ने कांग्रेस का नेतृत्व भी किया, लेकिन हिस्से में हार ही आई. रायबरेली की सीट कांग्रेस के बचा लेने और अमेठी फिर से हासिल कर लेने का क्रेडिट तो प्रियंका गांधी को ही मिलेगा – और ये चीज उनको लोकसभा चुनाव 2024 में स्टार परफॉर्मर बनाती है.

    Share:

    नई सरकार बनते ही किसानों के खाते में आएगी इस योजना की 17वीं किस्त, 12 करोड़ को मिलेगा फायदा

    Wed Jun 5 , 2024
    नई दिल्‍ली (New Delhi) । प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) योजना (Prime Minister Kisan Samman Nidhi Scheme) के तहत आने वाले करीबन 12 करोड़ किसानों (Farmers) के लिए बड़ी खुशखबरी है। खबर है कि चुनावी नतीजे यानी 4 जून के बाद केन्द्र की नई सरकार पीएम किसान योजना के तहत 17वीं किस्त जारी कर सकती […]
    सम्बंधित ख़बरें
  • खरी-खरी
    रविवार का राशिफल
    मनोरंजन
    अभी-अभी
    Archives
  • ©2024 Agnibaan , All Rights Reserved