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    इन 4 राष्ट्रीय पार्टियों ने किया एक देश एक चुनाव का विरोध, कमेटी को गिनाईं ये वजह

  • March 14, 2024

    नई दिल्ली: ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ (‘One Nation One Election’) को लेकर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द (Former President Ramnath Kovind) की अध्यक्षता में हाईलेवल कमेटी ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (President Draupadi Murmu) को सौंप दी है. एक ओर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के सभी चार पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस शरद अरविंद बोबडे और जस्टिस यूयू ललित से परामर्श करने वाले पैनल ने लिखित प्रतिक्रियाएं दीं, जिनमें से सभी एक साथ चुनाव कराने के पक्ष में दिखे, तो वहीं हाईकोर्ट के तीन पूर्व चीफ जस्टिस और एक पूर्व राज्य चुनाव आयुक्त ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के विचार पर आपत्ति जताई है. ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पर कमेटी ने 62 पार्टियों से संपर्क किया था, जिनमें से 47 ने जवाब दिया. इसमें 32 पार्टियो ने एक साथ चुनाव कराने का समर्थन किया, जबकि 15 पार्टियों ने इसका विरोध किया और 15 पार्टियों ने इसका जवाब नहीं दिया.

    राष्ट्रीय दलों में से कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने प्रस्ताव का विरोध किया, जबकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और नेशनल पीपुल्स पार्टी ने इसका समर्थन किया. रिपोर्ट में कहा गया है कि 15 राजनीतिक दलों को छोड़कर 47 राजनीतिक दलों से प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं है. 32 राजनीतिक दलों ने न केवल एक साथ चुनाव की व्यवस्था का समर्थन किया, बल्कि दुर्लभ संसाधनों को बचाने, सामाजिक सद्भाव की रक्षा करने और आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए इसे अपनाने की वकालत भी की. वहीं AAP, कांग्रेस और CPI(M) ने प्रस्ताव को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह लोकतंत्र और संविधान की बुनियादी संरचना को कमजोर करता है. बसपा ने स्पष्ट रूप से इसका विरोध नहीं किया, लेकिन देश की बड़ी क्षेत्रीय सीमा और जनसंख्या के संबंध में चिंताओं को उजागर किया, जो कार्यान्वयन को चुनौतीपूर्ण बना सकता है.


    राज्य की पार्टियों में AIUDF, TMC, AIMIM, CPI, DMK, नागा पीपुल्स फ्रंट और समाजवादी पार्टी ने एक साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव का विरोध किया. अन्नाद्रमुक, ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन, अपना दल (सोनी लाल), असम गण परिषद, बीजू जनता दल, लोक जनशक्ति पार्टी (आर), मिजो नेशनल फ्रंट, नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी, शिव सेना, जनता दल (यूनाइटेड), सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा, शिरोमणि अकाली दल और यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल ने प्रस्ताव का समर्थन किया.

    समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीशों में से 9 ने एक साथ चुनाव का समर्थन किया, जबकि 3 पूर्व मुख्य न्यायाधीशों ने आपत्ति जताई है. इसमें दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश अजीत प्रकाश शाह ने ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ की अवधारणा का विरोध किया, उन्होंने कहा कि इससे विकृत मतदान पैटर्न और राज्य-स्तरीय राजनीतिक परिवर्तनों के के साथ ही लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति पर अंकुश लग सकता है. उन्होंने कहा कि एक साथ चुनाव राजनीतिक जवाबदेही में बाधा डालते हैं, क्योंकि निश्चित शर्तें प्रतिनिधियों को परफॉर्मेंस की जांच के बिना अनुचित स्थिरता प्रदान करती हैं, जो लोकतांत्रिक सिद्धांतों को चुनौती देती हैं.

    कलकत्ता हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश गिरीश चंद्र गुप्ता ने एक साथ चुनाव कराने का विरोध करते हुए कहा कि यह विचार लोकतंत्र के सिद्धांतों के अनुकूल नहीं है. वहीं, मद्रास उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति संजीब बनर्जी ने एक साथ चुनाव का विरोध करते हुए किया कि यह भारत के संघीय ढांचे को कमजोर करेगा और क्षेत्रीय मुद्दों के लिए हानिकारक होगा. उन्होंने डाटा का हवाला दिया, जिसमें बार-बार मध्यावधि राज्य चुनावों को दर्शाया गया है, जिसमें लोगों को अपनी पसंद का उपयोग करने की अनुमति देने के महत्व पर जोर दिया गया है. उन्होंने भ्रष्टाचार और अक्षमता से निपटने के लिए अधिक प्रभावी सुधार के रूप में चुनावों के लिए स्टेट फंडिंग का सुझाव दिया.

    वर्तमान और पूर्व राज्य चुनाव आयुक्तों में से 7 ने वन नेशन वन इलेक्शन का समर्थन किया, जबकि तमिलनाडु के पूर्व चुनाव आयुक्त वी पलानीकुमार ने आपत्ति व्यक्त की. उन्होंने कहा कि इससे चुनाव के दौरान स्थानीय विचारों पर राष्ट्रीय मुद्दों का व्यापक प्रभुत्व होगा. इसके अलावा उन्होंने चुनावी जनशक्ति की कमी के गंभीर मुद्दे पर प्रकाश डाला और चुनावों के निर्बाध और कुशल निष्पादन को सुनिश्चित करने के लिए कर्मचारियों को मजबूत करने की अनिवार्यता पर जोर दिया. बता दें कि पैनल ने गुरुवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसमें पहले कदम के रूप में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने और उसके बाद 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव कराने की सिफारिश की गई.

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