उज्जैन। स्वतंत्रता के पहले अगर भारत में सबसे बड़ा कोई नुकसान हुआ है तो वह शिक्षा, विज्ञान और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का। उस दौरान भारतीय विश्व गुरु कहलाते थे। स्वतंत्रता के पहले सबसे बड़ा आघात इसी पर सन् 1700 से लेकर 1947 तक किया गया। वैज्ञानिक शोध को पूर्ण रूप से नष्ट करने के प्रयास भी बाहरी ताकतों ने किए।
यह बात मुख्य वक्ता के रूप में जयंत सहस्त्रबुद्धे राष्ट्रीय संगठन मंत्री ने अपने उद्बोधन में कही। कार्यक्रम विज्ञान भारती मालवा प्रांत शासकीय कन्या कालिदास महाविद्यालय व विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया था। विज्ञान भारती के स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव कार्यक्रम के तहत शुभारंभ अवसर पर अन्य वक्ताओं ने भी अपनी बात रखी। अमृत महोत्सव के यह कार्यक्रम 15 अगस्त तक सतत चलते रहेंगे। कल भारतीय प्राचीन व आधुनिक विज्ञान तथा वैज्ञानिक स्वतंत्रता पूर्व व पश्चात के संदर्भ में यह कार्यक्रम आयोजित किया गया था। कार्यक्रम में नई शिक्षा नीति से लेकर विद्यार्थियों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण संचार करने, भारत को फिर से विश्व गुरु बनाने जैसे विषयों पर मंथन हुआ। शुभारंभ कार्यक्रम में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पी.के. नागर का सम्मान व स्वागत किया गया। जिन्होंने पूर्व राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद के नेतृत्व में स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था। इस दौरान पर्यावरणविद् महेश शर्मा, मालवा प्रांत के अध्यक्ष डॉ. पी.के. वर्मा ने भी अपनी बात रखी। संचालन डॉ. हरीश व्यास ने किया और आभार विज्ञान भारती मालवा प्रांत संगठन मंत्री प्रजातंत्र गंगेले ने व्यक्त किया।
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