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    1963 में संसद में अनुच्छेद 370 पर हुई थी बहस, ऐसा रहा था नेहरू का जवाब

  • December 10, 2023

    नई दिल्‍ली (New Delhi)। 1950 में, जम्मू-कश्मीर राज्य को अनुच्छेद 370 – (Article 370) एक ‘अस्थायी’ प्रावधान – के आधार पर भारत संघ (union of india) में शामिल किया गया था। लेकिन समय के साथ, यह ‘अस्थायी’ प्रावधान लगभग 70 वर्षों तक किताबों में रहकर कमोबेश स्थायी हो गया। यह कैसे हुआ? उत्तर सरल है: अनुच्छेद 370 को कानूनी सुविधा के रूप में बरकरार रखा गया था।

    वहीं सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के आसपास की बहस को निपटाने के लिए तैयार है। 11 दिसंबर को फैसला सुनाने जा रहा है। इससे पहले आलोचकों का तर्क है कि अनुच्छेद को निरस्त करने का निर्णय एकतरफा था, क्योंकि इसे एक स्थायी संवैधानिक प्रावधान माना जाता था। केवल जम्मू और कश्मीर संविधान सभा को ही ऐसा निर्णय लेने का अधिकार था। हालांकि, विधानसभा 26 जनवरी 1957 को भंग कर दी गई थी। कुछ वर्ष पहले नरेंद्र मोदी सरकार ने अनुच्छेद को निरस्त कर दिया था। शीतकालीन सत्र के दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने कश्मीर में लंबे समय तक के लिए अनुच्छेद 370 लागू रहने के लिए देश के पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को जिम्मेदार ठहराया था।



    27 नवंबर 1963 को संसद में इस मुद्दे पर बहस हो रही थी। सांसदों ने अनुच्छेद को निरस्त करने के बारे में सवाल उठाए। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसपर जवाब दिया।

    हरि विष्णु कामथ, प्रकाश वीर शास्त्री, भागवत झा आजाद, पीसी बोरोहा, मोहन स्वरूप, डॉ एलएम सिंघवी, विश्राम प्रसाद, रघुनाथ सिंह, डीडी मंत्री, राम रतन गुप्ता, पीआर चक्रवर्ती, सिधेश्वर प्रसाद, डीडी पुरी, कछवैया, डीसी शर्मा और हेम राज सहित 19 सांसदों का एक समूह ने भारत के साथ जम्मू-कश्मीर के एकीकरण पर भारत सरकार से प्रतिक्रिया मांगी थी। उनके पश्नों को तीन भागों में विभाजित किया गया था।

    पहले और दूसरे सवाल के जवाब में तत्कालीन गृह राज्य मंत्री आरएम हजरनवीस ने कहा था, “संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत राष्ट्रपति का एक आदेश 25 सितंबर 1963 को जारी किया गया था, जो जम्मू और कश्मीर पर लागू होता है।” उन्होंने कहा था, “यह निर्णय लिया गया है कि लोकसभा में जम्मू-कश्मीर के प्रतिनिधियों को अन्य राज्यों की तरह प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा चुना जाना चाहिए। यह निर्णय वर्तमान आपातकाल की समाप्ति के बाद प्रभावी होगा।” उन्होंने आगे कहा, “यह भी निर्णय लिया गया है कि जम्मू-कश्मीर के सदर-ए-रियासत और प्रधानमंत्री को क्रमशः राज्यपाल और मुख्यमंत्री के रूप में नामित किया जाना चाहिए। प्रस्ताव को प्रभावी बनाने के लिए कानून राज्य विधानमंडल के अगले सत्र के दौरान लाए जाने की उम्मीद है।”

    नेहरू ने भी इन सवालों का जवाब दिया। उन्होंने कहा, “जैसा कि गृह मंत्री ने बताया है यह खत्म हो गया है। पिछले कुछ वर्षों में कई चीजें की गई हैं, जिससे कश्मीर का भारत सरकार के साथ बहुत घनिष्ठ संबंध बने हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि कश्मीर पूरी तरह से एकीकृत है।” उन्होंने आगे, “हमें लगता है कि अनुच्छेद 370 को धीरे-धीरे कमजोर करने की प्रक्रिया चल रही है। कुछ नए कदम उठाए जा रहे हैं। अगले एक-दो महीने में ये पूरे हो जाएंगे। हमें इसे चलने देना चाहिए। हम अनुच्छेद 370 को समाप्त करना चाहते हैं। हमें लगता है कि यह पहल कश्मीर राज्य सरकार और लोगों की ओर से होनी चाहिए। हम खुशी से इससे सहमत होंगे। यह प्रक्रिया जारी है।”

    हालांकि उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि: “अनुच्छेद 370 कुछ संक्रमणकालीन अनंतिम व्यवस्थाओं का एक हिस्सा है। यह संविधान का स्थायी हिस्सा नहीं है।”

    आपको बता दें कि उस समय जम्मू और कश्मीर में शांति थी। राज्य सरकार और विधायिका के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध थे। 1980 के दशक के बाद इसमें बदलाव आना शुरू हुआ, जब पाकिस्तान ने जम्मू और कश्मीर को पाकिस्तानी क्षेत्र में विलय करने की एकतरफा घोषणा की।

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