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    एक थे पत्रकार बलभद्रप्रसाद तिवारी अच्छे अच्छों के स्क्रू टाइट कर देते थे

  • May 20, 2023


    चराग़ सारे बुझा चुके उन्हें इंतिज़ार कहाँ रहा,ये सुकूँ का दौर-ए-शदीद है कोई बे-कऱार कहाँ रहा।

    कबी कबी खां भायान (भाईजान) हम आपको इस नवाबी शान-ओ-शौकत के शहर के उन सहाफियों (पत्रकारों) की अज़मत के बारे में बताते हैं, जिनका एक दौर हुआ करता था। इस कड़ी में आज जि़कर करेंगे मरहूम पंडित बलभद्र प्रसाद तिवारी का। 1956 में मध्यप्रदेश नया नया बना ही था। महाराष्ट्र के विदर्भ इलाके के हिंगणघाट से पंडित बलभद्र प्रसाद तिवारी भोपाल आये। पंडितजी की तालीमो-तरबियत वर्धा के सेवाग्राम आश्रम में हुई थी। वहां उन्हें विनोबा भावे की सरपरस्ती भी मिली। हिंदी और संस्कृत पे अच्छी पकड़ थी उनकी। जब ये भोपाल आये तब मुल्क को आज़ाद हुए दसेक बरस ही हुए थे। जंगे आज़ादी में भी उन्ने हिस्सा लिया था। नागपुर की बड़ी हस्ती मदनलाल बागड़ी, श्याम सुंदर कश्मीरी के ग्रुप के साथ पंडितजी ने आज़ादी की लड़ाई में भागीदारी करी। सन 1940 से 47 तक बलभद्र प्रसाद तिवारी ने आज़ादी के मूवमेंट में साहित्य से लेके दूसरा सामान इधर से उधर पहुंचाने का काम करा। उन्हें पहलवानी का भी शौक़ था। पाबंदी के साथ अखाड़े जाते और कुश्ती लड़ते। लिहाज़ा मिजाज़ में तुर्शी और बागीपन था। शादी के बाद कुछ कर गुजऱने की मंशा के साथ आप भोपाल आए। उन्हें मदनलाल बागड़ी के भोपाल में ताल्लुकात का फ़ायदा ये मिला के तब लालघाटी पे आईना बंगला के पास बनी सेठ छगनलाल की कोठी के आउट हाउस में इनके रहने का ठिकाना मिल गया। ये वही कोठी थी जो इसके वारिसान के अदालत में जाने के चलते भंगार हो गई थी और भोपाल के लोग उसे भूत बंगला कहते थे। सात आठ बरस पहले मेयर आलोक शर्मा की पहल पे भूत बंगला ज़मीदोज़ कर दिया गया।



    बलभद्र प्रसाद तिवारी ने सेठ द्वारकाप्रसाद अग्रवाल के दौर दैनिक भास्कर में काम किया। सन 1961 में इन्होंने प्रजामित्र अखबार का रेजिस्ट्रेशन करवाया। रंजन पेन कार्नर से इब्राहिमपुरा की तरफ जाने वाली सड़क पे एक किराए के कमरे में प्रजामित्र की ट्रेडिल मशीन डाली गई। इसी बीच पंडितजी का परिवार भूत बंगला छोड़ के बालविहार के पास सज्जाद कालोनी (मुल्ला सज्जाद हुसैन की कालोनी) में रहने आ गया था। सन 69 के आसपास इन्हें ने हाथीखाने में सरकारी क्वाटर अलॉट हो गया था। वहां उस दौर में पंडित जुगल बिहारी अग्निहोत्री, ठाकुर विक्रम सिंह, ध्यान सिंह तोमर राजा, जगदीश गुरु जैसे भन्नाट पत्रकार रहा करते थे। इब्राहिमपुरा में मकान खाली करने पे प्रजामित्र प्रेस हाथीखाने के पास माचिस फेक्टरी के दो कमरों में शिफ्ट हुई। बाकी बलभद्रप्रसाद तिवारी मिजाज़ से बड़े फक्कड़ और अखखड़ थे। न किसी बाहुबली से डरते न किसी गुंडे बदमाश से चमकते। बल्कि ऐसे करप्ट लोगों के खिलाफ ये प्रजामित्र में बेख़ौफ़ लिखते। करप्ट अफसरों को पंडितजी छूट गालियां तक सुना देते। इनका पहनावा हमेशा सूती धोती और खादी का कुर्ता ही रहा। पंडित बलभद्रप्रसाद तिवारी के किरदार की सबसे बड़ी खासियत थी किसी के भी अंतिम संस्कार में श्मशान पहुंचना और पूरे रीतिरिवाज से मृतक की अंतिम क्रियाएं करवाना। उस दौर में बाहर से आये सहाफियों का लोकल मेलजोल कम था। किसी के यहां गमी होती तो लोग बलभद्रप्रसाद जी से राब्ता करते। वे सारी सामग्री का इंतज़ाम करते और अंतिम क्रियाएं करवाते। उनके दो बेटे और दो बेटियां हैं। एक बेटे अजय का इंतक़ाल हो गया। बड़े बेटे संजय तिवारी साउथ अफ्रीका में शिफ्ट हो गए। बड़ी बेटी उत्तरा महिला एवं बालविकास विभाग से रिटायर हो चुकी हैं। दूसरी बेटी नीलम तिवारी गिन्नौरी में कप्तान शादी हाल के पास एक किराए के फ्लैट में अपनी बुजुर्ग वालिदा के साथ रहती हैं। ये अपने पिता के अखबार प्रजामित्र को एक रिसाले (मैगज़ीन) के तौर पे निकालती हैं। प्रेस का वजूद अब नहीं रहा। नीलम बताती हैं कि पिताजी के द्वारका प्रसाद मिश्र से लेकर अर्जुन सिंह तक अच्छे ताल्लुकात रहे। लेकिन उन्होंने कभी किसी मुख्यमंत्री से फायदा नहीं उठाया। लिहाज़ा वे अपना मकान तक नहीं बनवा सके। 31 मई 1994 को पंडित बलभद्रप्रसाद तिवारी का भोपाल में इंतक़ाल हुआ।

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