भोपाल। मध्य प्रदेश (MP) में जल संसाधन विभाग(Department of Water Resources) अब घोटालों (SCAM) का विभाग बन गया है. भाजपा(BJP) की सरकार हो या फिर कांग्रेस (Congress) की, दोनों की नजर इस विभाग पर रही. जिस की सरकार रही उसने अपने से पहले वाली सरकार के दौरान हुए घोटालों की फाइल खुलवा डालीं. अब बारी बीजेपी की है और वो कमलनाथ सरकार(Kamal Nath Government) के दौरान हुए घोटाले की जांच करवा रही है.
इस घोटाले की जद में पूर्व चीफ सेक्रेटरी (former chief secretary) आ गए हैं. नियम विरुद्ध 850 करोड़ का कुछ कंपनियों को एडवांस भुगतान किया गया था. ईओडब्लू (EOW) के हाथ घोटाले की नोटशीट लगी है जिसके आधार पर कई बड़े जिम्मेदार जांच की जद में आ जाएंगे.
कमलनाथ सरकार के दौरान टेंडर में करोड़ों के घोटाले का आरोप
कमलनाथ सरकार के दौरान जल संसाधन विभाग के टेंडर में करोड़ों के घोटाले का आरोप लगा था. इसमें तत्कालीन जल संसाधन मंत्री नरोत्तम मिश्रा का नाम सामने आया था. लेकिन कुछ महीनों बाद सरकार बदल गई और अब बीजेपी की सरकार है तो फिर जल संसाधन विभाग में एडवांस पेमेंट करने का घोटाला ओपन हुआ है. एक बार फिर से मध्य प्रदेश की सियासत जल संसाधन घोटाले को लेकर गरमा गई है.
जांच की जद में पूर्व CS
इस एडवांस भुगतान में कई बड़े अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध है. विभाग के प्रमुख एस एन मिश्रा ने मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस को इसकी जानकारी दी थी. जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पास यह मामला आया तो उन्होंने जांच के आदेश दिए. मुख्यमंत्री के आदेश के बाद सामान्य प्रशासन विभाग ने इंजीनियर्स और अधिकारियों की भूमिका की जांच के लिए ईओडब्ल्यू को मंजूरी दी थी.
ऐसे हुआ खुलासा
जल संसाधन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव एस एन मिश्रा ने इस घोटाले का खुलासा किया था. उनके अनुसार अगस्त 2018 से फरवरी 2019 के बीच सिंचाई प्रोजेक्ट के आधार पर बांध और हाई प्रेशर पाइप नहर बनाने के लिए 3333 करोड़ रुपये के सात टेंडर्स को मंजूरी दी गई थी. टर्न के आधार पर मंजूर टेंडर्स मुख्य रूप से बांध निर्माण और जलाशय से पानी की आपूर्ति के काम के लिए थे. इसके लिए निर्धारित प्रेशर पंप हाउस, प्रेशराइज्ड पाइप लाइन के साथ-साथ नियंत्रण उपकरण लगाकर पानी सप्लाई की जाना थी. उसी दौरान मुख्य अभियंता गंगा कहार रीवा सरकार के संज्ञान में ये बात लाए कि गोंड मेगा प्रोजेक्ट के लिए शासन के 27 मई 2019 के आदेश में पेमेंट शेड्यूल के नियम को शिथिल कर एडवांस भुगतान कर दिया गया. इसके बाद शासन ने इसकी छानबीन की तो पता चला शासन ने भुगतान के संबंध में ऐसी कोई छूट नहीं दी थी.
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