श्रीनगर। कश्मीर (Kashmir) में एक ऐसा गांव भी है, जहां पर रहस्यमय ढंग से मूक और बधिर (mute and deaf) लोगों की एक बड़ी संख्या है। सेना ने जम्मू और कश्मीर के डोडा जिले (Doda district of Kashmir) के भद्रवाह कस्बे से 105 किलोमीटर दूर पहाड़ी की चोटी पर बसे इस गांव को गोद लेने का फैसला किया है। सेना के एक प्रवक्ता (an army spokesman) ने कहा कि इन लोगों के इलाज और पढ़ाई के लिए राष्ट्रीय राइफल्स (Rashtriya Rifles) ने अब इसे गांव को गोद लिया है।
आपको बता दे की इस जनजातीय गांव में 105 परिवार हैं। इनमें से 55 परिवारों में रहस्यमय तरीके से कम से कम एक व्यक्ति ऐसा है, जो न तो बोल सकता है और न ही सुन सकता है। पूरे गांव में ऐसे 78 लोग हैं, जिनमें 41 महिलाएं और 30 तीन से 15 साल की उम्र के बच्चे हैं। सेना के प्रवक्ता ने कहा कि गांव में कई सामाजिक कल्याण (social welfare) के कार्यक्रमों को शुरू करने का उद्देश्य लोगों को अपने दम पर जीवनयापन का भरोसा (living trust) दिलाना है। पहले चरण में कपड़े, भोजन और स्वास्थ्य देखभाल जैसी बुनियादी जरूरतों के अलावा सेना ने मूक-बधिर बच्चों के लिए घर-घर जाकर निजी शिक्षा कक्षाएं शुरू की हैं।
उन्होंने आगे बताया की इसके लिए विशेष रूप से तेलंगाना में प्रशिक्षित सांकेतिक भाषा विशेषज्ञों (trained sign language experts) को तैनात किया जा रहा है। योजना के अगले चरण में दधाकी गांव पंचायत में हॉस्टल (Hostel in Panchayat) की सुविधा वाला एक स्कूल बनाया जाएगा। सेना ने कहा कि उसका मकसद लोगों की मदद करना है। सांकेतिक भाषा (Sign language) सिखाने के लिए हैदराबाद और सिकंदराबाद (तेलंगाना) में विशेष प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए सेना ने दो शिक्षकों का खर्च उठाया। अब मूक और बधिर लोगों को उनके घरों पर पढ़ाया जा रहा है। गांव के लोगों में बच्चों के मूक और बधिर होने को लेकर इतना खौफ है कि जब भी कोई महिला गर्भवती होती है, तो न केवल उसका परिवार बल्कि पूरा गांव भावी संतान के मूक-बधिर होने के भय में रहता है।
गांव वालों ने बताया कि पिछले कुछ दशकों में गांव में कई एनजीओ (NGO) पहुंचे, लेकिन कुछ भी ठोस काम नहीं किया गया। सेना ने व्यावहारिक कदम उठाए हैं, जो निश्चित रूप से मूक बधिर लोगों के दुखों को कम करने के लिए मददगार होंगे। सांकेतिक भाषा सीखने वाली कुछ लड़कियों ने एक सिलाई केंद्र (sewing center) शुरू करने की इच्छा जताई और उन्होंने सिलाई मशीन और एक स्कूल बनाने की मांग की। अब गांव वालों की सभी उम्मीदें सेना पर टिकी हुई हैं। जनवरी में सेना ने 10 बच्चों को 17,000 रुपये की कीमत वाले हियरिंग एड (hearing aid) दिए। इसके अलावा उन्हें सांकेतिक भाषा सिखाना भी प्रारम्भ कर दिया है।
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