नई दिल्ली: भारतीय दंड संहिता और अपराध संहिता की जगह केंद्र सरकार ने नया विधेयक लोकसभा में पेश कर दिया है. इस विधेयक को लेकर चर्चाएं शुरू हो गई हैं. चर्चाओं के इसी दौर में से एक बात निकल कर आई है कि सरकार द्वारा प्रस्तावित विधेयक में पुरुषों के साथ होने वाले अप्राकृतिक यौन अपराधों में सजा का प्रावधान नहीं है.
पुरुषों को यौन अपराध से संरक्षण IPC की धारा 377 में मिलता है, लेकिन केंद्र सरकार के प्रस्तावित कानून में पुरुषों के खिलाफ होने वाले अप्राकृतिक यौन अपराधों के लिए सजा का कोई प्रावधान ही नहीं किया गया है. केंद्र सरकार की ओर से प्रस्तावित कानून में बलात्कार जैसे यौन अपराधों को परिभाषित करने के लिए पुरुष द्वारा किसी महिला या बच्चे के खिलाफ किए गए कृत्य के तौर पर ही बताया गया है.
क्या कहता है आज का कानून?
मौजूदा समय में जो कानून है, उसके मुताबिक पुरुषों के खिलाफ यौन अपराध धारा 377 के अंतर्गत आते हैं. भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 377 कहती है कि कोई भी अपनी मर्जी से किसी भी पुरुष, महिला या जानवर के साथ अप्राकृतिक शारीरिक संबंध बनाता है, उसे आजीवन कारावास या एक अवधि के लिए कारावास की सजा हो सकती है. इसे बढ़ाया भी जा सकता है और दस साल तक की सजा और जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
6 सितंबर 2018 को, सुप्रीम कोर्ट ने सर्वसम्मति से आईपीसी की धारा 377 को लेकर ऐतिहासिक फैसला दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने सहमति से वयस्कों के बीच समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था. हालांकि, पुरुषों के खिलाफ गैर-सहमति से होने वाले कृत्यों, जैसे की अप्राकृतिक यौन संबंध को अभी भी धारा 377 के तहत अपराध माना जाता है. लेकिन केंद्र के प्रस्तावित कानून में ऐसा नहीं है.
महिलाओं के खिलाफ अपराध पर सख्ती
प्रस्तावित विधेयक भारतीय न्याय संहिता के तहत पहचान छिपाकर किसी भी महिला से शादी करना या शादी का वादा कर यौन संबंध बनाना कानून लागू होने पर दंडनीय होगा. यही नहीं, प्रमोशन, नौकरी का झूठा वादा या अन्य कोई झूठ बताकर यौन संबंध बनाने पर 10 साल तक का कारावास भुगतना होगा.
यह पहला मौका है, जब ऐसे अपराधों को लेकर एक विशेष प्रावधान का प्रस्ताव महिलाओं के संरक्षण के मद्देनजर किया गया है. विशेषज्ञों की मानें तो अगर इसमें स्थायी समिति कोई बदलाव नहीं करती और यह जस का तस व्याख्या के साथ लागू होता है तो यह प्रावधान लव जिहाद के खिलाफ एक हथियार साबित होगा. हालांकि उनका यह भी कहना है कि यह महिलाओं के हित में है, क्योंकि आए दिन ऐसे मामले सामने आते हैं, जहां महिलाएं फर्जी नाम या वादे पर यौन शोषण का शिकार होती हैं.
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