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    रोहिंग्याओं पर कोई समझौता नहीं, इनके मानवीय अत्याचारों को नहीं किया जा सकता माफ

  • March 27, 2024

    – डॉ. मयंक चतुर्वेदी

    भारत में अवैध तरीके से घुसे रोहिंग्याओं पर देश में ही वकालत करने वाले खड़े हो गए हैं। ऐसे सभी लोग भारत में अवैध तरीके से की गई इनकी पूरी घुसपैठ को कभी सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट (सीएए) से जोड़कर देखते हैं, तो कभी तिब्बत और श्रीलंका के शरणार्थियों के समान ही भारत सरकार द्वारा रोहिंग्याओं के साथ व्यवहार किए जाने की बात करते हैं । किंतु इस सब के बीच रोहिंग्याओं का समर्थन करनेवाले यह विचार करना भूल जाते हैं कि क्या उन लोगों को भारत में नागरिकता प्रदान की जानी चाहिए, जिन्होंने अपने ही देश म्यांमार में बहुसंख्यक समाज के ऊपर अत्याचार किए। जिसका परिणाम हुआ कि शांति प्रिय बौद्ध हिंसा करने के लिए मजबूर हो उठे।


    म्यांमार में इनके अत्याचार की लम्बी सूची है
    इन घटनाओं को क्रमश: आप देखिए; 1962 से 2011 तक वर्मा में सैनिक शासन रहा, इस दौरान यहां के नागरिक रोहिंग्या मुसलमान चुप बैठे रहे । किंतु जैसे ही इस देश में लोकतंत्र की बहाली हुई, यह सड़कों पर प्रदर्शन करने, स्थानीय बहुसंख्यक बौद्ध समाज को प्रताड़ित करने, यहां तक कि महिलाओं के साथ बलात्कार करने, पुलिस और सेना तक को अपना निशाना बनाने लगे। म्यांमार का हाल यह हो गया था कि शांति के उपासक बहुसंख्यक बौद्ध पहले इनसे घबराए हुए थे । फिर इन बौद्धों ने भी अपने अस्तित्व को बचाने के लिए शांति का मार्ग छोड़ दिया। वर्ष 2012 में एक बौद्ध धर्म की युवती का बलात्कार करने के बाद हत्या कर दी जाती है, इस घटना से बौद्ध इतने आक्रोशित हुए कि उन्होंने भी सामने से रोहिंग्याओं से लड़ना शुरू कर दिया।

    इसी दौरान इन रोहिग्याओं की ‘‘अराकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी’’ (एआरएसए), अक्टूबर 2016 में बांग्लादेश-म्यांमार सीमा पर सैन्य चौकियों पर हमला करती है, जिसमें नौ सीमा अधिकारी और चार सैनिक मारे गए। यही आतंकी संगठन 25 अगस्त 2017 को 30 पुलिस चौकियों और एक सेना के बेस पर आक्रमण कर देता है, जिसमें 12 सुरक्षाकर्मियों की मौत होती है। फिर जब म्यांमार की सेना रोहिंग्या बहुल क्षेत्र को अपने अधिकार में लेती है, तब वहां हिन्दुओं और बौद्धों की सामूहिक कब्रें मिलती हैं और पूरी दुनिया को पहली बार यह पता चलता है कि ये रोहिंग्या कितने क्रूर हैं।

    बौद्धों के अलावा हिन्दू नरसंहार करने में भी आगे रहे ये रोहिंग्या
    अब तक अनेक मीडिया रिपोर्ट आ चुकी हैं, ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल’ ने भी रोहिंग्याओं द्वारा प्रताड़ित किए गए लोगों से बात की थी। साक्ष्यों के आधार पर इस अंतरराष्ट्रीय संस्था ने पाया कि इन रोहिग्याओं ने यहां अल्प जनसंख्या में रहनेवाले हिन्दुओं पर भी भयंकर अत्याचार किए । रोहिंग्या आतंकियों ने रखाईन प्रांत में रह रहे हिंदुओं पर आरोप लगाया कि वे म्यांमार की बौद्ध सरकार का समर्थन करते हैं और उनके अलगाववादी विचारधारा के खिलाफ सरकार की सहायता कर रहे हैं। ‘एमनेस्टी’ ने अपनी पड़ताल में पाया कि रोहिंग्या मुस्लिम आतंकियों ने वर्ष 2017 में म्यांमार में 99 हिन्दुओं का नरसंहार किया था। हिंदू बच्चों, महिलाओं और पुरुषों को मारकर जमीन में दबा दिया था।

    ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल’ की रिपोर्ट कहती है, नकाबपोश रोहिंग्या मुस्लिम आतंकियों ने सुबह-सुबह गांव में घुसकर हिन्दू महिलाओं, बच्चों और पुरुषों को घेरा, उनके घरों को लूटा । इसके बाद पुरुषों को अलग करके सबसे पहले उनका नरसंहार किया था। मारे गए इन हिन्दुओं की लाशें बाद में एक सामूहिक कब्र में पाई गईं। इस दौरान रोहिंग्या मुस्लिमों ने कुछ महिलाओं को तभी छोड़ा, जब उन्हें इस्लाम में परिवर्तित करा दिया गया। बाकी सभी को मारकर दफना दिया गया था । वहीं, जिन आठ महिलाओं ने मुस्लिम बनने की शर्त कबूल कर अपनी जान बचाई, उनकी गवाही भी एक तथ्य के रूप में आज मौजूद है। जांच में यह भी सामने आया है कि रोहिंग्या आतंकियों ने इसके अतिरिक्त भी अन्य कई मौकों पर हिन्दुओं को निशाना बनाया था।

    कई आतंकवादी संगठनों के साथ संबंध हो चुके हैं उजागर
    म्यांमार में जब रोहिंग्याओं के अत्याचार बढ़ने लगे, तब यहां की सरकार ने अपने देशवासियों के लिए विवाह, परिवार नियोजन, आंदोलन की स्वतंत्रता, रोजगार, शिक्षा, धार्मिक पसंद समेत अन्य कई सख्त कानून लागू किए । जिसमें ये रोहिंग्या फिट नहीं बैठ पाए और यहां से पलायन करने लगे। सबसे पहले इन्होंने भारत में अवैध रूप से प्रवेश करना शुरू किया। कई बांग्लादेश पहुंचे । रोहिंग्या शरणार्थियों के शिविर बांग्लादेश के चटगांव क्षेत्र में हैं जो इस्लामी चरमपंथ और अलगाववादी गतिविधियों के लिए कुख्यात है। अतीत में, उत्तर-पूर्व के आतंकवादियों ने भारत में आतंकवादी हमलों से पहले और बाद में इस क्षेत्र में आश्रय लिया था।

    रोहिंग्या मुस्लिमों के आतंकवादी संगठन अका-उल-मुजाहिदीन के पाकिस्तान में इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई), जैश-ए-मोहम्मद (जेएम) और लश्करे-तोयबा के साथ संबंध उजागर हो चुके हैं। ऐसी खबरें भी हैं कि जम्मू में अवैध रूप से रहने वाले रोहिंग्याओं ने सनजूवान में सेना शिविर के स्थान के बारे में जैशे – मुहम्मद के आतंकवादियों की मदद की थी । सूचना के आधार पर ही जेएम ने एक सेना शिविर पर हमला किया, जिसमें छह भारतीय सैनिक शहीद हुए थे। अब तक देश के अलग-अलग राज्यों में कई प्रकरण सामने आ चुके हैं जिनमें पाया गया कि कैसे ये रोहिंग्या मुसलमान अपराधों में लिप्त हैं।

    भारत के हर राज्य में पहुंच चुके हैं ये रोहिंग्याई घुसपैठिए
    वर्तमान में भारत का कोई राज्य नहीं बचा, जहां इनकी घुसपैठ न हो । दिल्ली से सटे हरियाणा के मेवात (नूह), उत्तराखण्ड के हल्द्वानी, बनभूलपुरा इलाके में हुए दंगों को अभी बहुत समय नहीं बीता है, इस हिंसा में रोहिंग्या मुसलमानों के हाथ होने की बात सामने आ चुकी है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, बनभूलपुरा इलाके में तकरीबन 5,000 रोहिंग्या मुसलमान और अन्य बाहरी लोग रहते हैं। बांग्लादेश के रास्ते भारत में दाखिल हुए रोहिंग्याओं ने नेपाल के बाद भारत के मैदानी और पहाड़ दोनों ही स्थानों पर अपनी अवैध बस्तियां बनाना जारी रखा है। देश की राजधानी दल्ली, इससे सटे हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखण्ड, त्रिपुरा, राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, केरल, गुजरात, आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक समेत अन्य राज्यों में भी हिंसा, बालात्कार, लूट, ड्रग सप्लाई जैसे कई अपराधिक गतिविधियों में अनेकों बार इनकी संलिप्तता सामने आती रही है। फिर भी भारत में ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं जोकि मानवाधिकारों के नाम पर इन अपराधी रोहिंग्याओं की वकालत कर रहे हैं । इन्हें स्थायी रूप से भारत में बसाने के लिए उच्चतम न्यायालय तक में याचिका लगा रहे हैं और भारत की सरकार को ही कठघरे में खड़ा कर रहे हैं।

    भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बनते जा रहे रोहिंग्या
    इस संबंध में पकड़े गए रोहिंग्याओं की रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट गईं प्रियाली सूर की याचिका पर जो जवाब मोदी सरकार ने दिया है, वह निश्चित ही स्वागत योग्य कदम है। केंद्र सरकार ने आज साफ बता दिया है कि अवैध रूप से भारत में प्रवेश करने वालों से विदेशी अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार निपटा जाएगा। रोहिंग्याओं ने भारत में अवैध रूप से आकर बड़ी संख्या में फर्जी आधार, वोटर आईडी जैसे पहचान पत्र बनवा लिए हैं। इसकी विश्वसनीय जानकारी है कि वो यहां मानव तस्करी समेत देशभर में गंभीर आपराधिक गतिविधियों में शामिल हैं और आंतरिक एवं राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ये गंभीर खतरा हैं।

    सरकार ने फिर से स्पष्ट किया है कि एक विदेशी को केवल संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है। उसे देश में रहने और बसने का अधिकार नहीं है। यह अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को ही उपलब्ध है। इसके साथ ही यह भी ध्यान देने योग्य है कि भारत यूएनएचसीआर शरणार्थी कार्ड को मान्यता नहीं देता, जिसे कुछ रोहिंग्या मुसलमानों ने यह सोचकर हासिल कर लिया है कि इस आधार पर वो भारत में शरणार्थी का दर्जा पा लेंगे।

    राष्ट्रीय सुरक्षा हितों की रक्षा के लिए मोदी सरकार की प्रतिबद्धता
    इतना ही नहीं केंद्र ने यह भी साफ कर दिया है कि भारत पहले से ही बड़ी संख्या में बांग्लादेशियों की घुसपैठ की गंभीर समस्या से जूझ रहा है। बांग्लादेशी घुसपैठियों ने कुछ सीमावर्ती राज्यों (असम और पश्चिम बंगाल) की डेमोग्राफी ही बदल दी है। मोदी सरकार ने अपने हलफनामे में सुप्रीम कोर्ट के ही कई फैसलों का हवाला दिया है । साथ ही सरकार द्वारा न्यायालय को भी यह बता दिया गया है कि सुप्रीम कोर्ट के अधिकारों की एक सीमा है और वह उस हद को पार करके संसद की शक्तियों को कमतर नहीं कर सकता है। न्यायपालिका को संसद और कार्यपालिका के विधायी और नीतिगत क्षेत्रों में प्रवेश करके अवैध रूप से भारत में प्रवेश करने वालों को शरणार्थी का दर्जा देने के लिए एक अलग कैटिगरी बनाने का कोई अधिकार नहीं है। कहना होगा कि केंद्र सरकार का यह स्पष्ट निर्णय अवैध प्रवासन से उत्पन्न चुनौतियों के बीच राष्ट्रीय सुरक्षा हितों की रक्षा के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

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