नई दिल्ली। अफगानिस्तान (Afghanistan) पर तालिबानी(Taliban) कब्जे के बाद काबुल में हुए फिदायीन हमले(fidayeen attacks) से एक बार फिर तालिबान(Taliban) और आईएसआईएस-खुरासान प्रोविंस (ISIS-Khorasan Province) के बीच गठजोड़ की चर्चा है। हालांकि तालिबान (Taliban) ने आईएस-के (ISIS-K) के साथ किसी भी तरह के तालमेल के आरोपों का खंडन किया है। तालिबान(Taliban) ने आईएस-के (IS-K)को अपना शत्रु घोषित कर रखा है, लेकिन कई ऐसे आधार हैं जो तालिबान के ऐलान पर शक करने को विवश कर देते हैं। दोनों में मिलीभगत का दावा करने वालों के भी अपने-अपने तर्क हैं। दोनों संगठनों के बीच दुश्मनी को दिखावा साबित करने वाले प्रमुख आधार ये हैं-
असलम फारूकी की रिहाई
आईएस-के(IS-k) के आतंकी मौलवी अब्दुल्ला उर्फ असलम फारूकी (Aslam Farooqui) को अफगान सेना ने पिछले साल गिरफ्तार किया था। सिख गुरुद्वारा नरसंहार समेत काबुल में कई बम धमाकों को अंजाम दे चुके इस आतंकी ने खुद स्वीकार किया था कि वह आईएस-के का सदस्य है। लेकिन गत 15 अगस्त को काबुल पर कब्जे के बाद तालिबान ने बगराम जेल में बंद अन्य आईएसआईएस आतंकियों के साथ फारूकी को जेल से आजाद कर दिया। फारूकी को ही अफगानिस्तान में सक्रिय आईएस-के का प्रमुख माना जाता है। उसने पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से भी अपने संबंधों को स्वीकार किया था।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट
दोनों संगठनों के बीच तालमेल दिखाने के लिए संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट (UN Report)का हवाला दिया जा रहा है। अफगानिस्तान के पूर्व उपविदेश मंत्री और यूएन में राजदूत रहे महमूद सैकल इसी रिपोर्ट के आधार पर दावा कर चुके हैं कि तालिबान और आईएस-के बीच गहरे संबंध हैं। सैकल ने कहा था- रिपोर्ट से आईएस-के, तालिबान और अलकायदा के बीच आपसी निर्भरता की पुष्टि होती है। उन्होंने यह भी बताया कि अलकायदा तालिबान की ही छतरी तले भारतीय उपमहाद्वीप में अपनी गतिविधियों को अंजाम देता आया है।
पूर्व उपराष्ट्रपति का दावा
अफगानिस्तान के पूर्व उपराष्ट्रपति और नार्दर्न अलायंस के नेता अमरुल्लाह सालेह ने भी कहा है कि आईएस-के और तालिबान अलग नहीं है। वह कहते हैं-अफगानिस्तान में आईएस-के या दाईश जैसे संगठन एक तरह से फर्जी हैं, इन संगठनों में तालिबान और हक्कानी समूह के ही फिदायीन हमलावर शामिल हैं, इन्हें संगठन का नाम इसलिए दिया गया कि बम धमाकों के लिए इन्हें ही जिम्मेदार ठहराया जा सके। सालेह ने ट्वीट किया-तालिबान की ओर से आईएस-के के साथ तालमेल से इनकार करना ठीक वैसा ही है जैसे कि पाकिस्तान का क्वेटा शूरा से इनकार करना, तालिबान ने अपने आका से बहुत कुछ सीखा है।
आईएस के नजदीकी हक्कानी नेटवर्क से दोस्ती
खुफिया रिपोर्ट और विशेषज्ञों के मुताबिक आईएस-के और हक्कानी नेटवर्क के बीच बेहद मजबूत गठजोड़ है। इसके बावजूद तालिबान हक्कानी नेटवर्क के नेताओं को खुलेआम समर्थन देता है। उदाहरण के लिए तालिबान ने हाल ही में जिस खलील हक्कानी को काबुल में सुरक्षा प्रभारी बनाया है, वह हक्कानी ग्रुप का सदस्य है। यही नहीं खलील हक्कानी के सिर पर 50 लाख डॉलर का इनाम भी घोषित किया गया है। आतंकी गतिविधियों पर नजर रखने वाले शोध संस्थान ‘एशिया पैसफिक फाउंडेशन’ के विशेषज्ञ डॉ. सज्जन गोहेल के मुताबिक वर्ष 2019 से 2021 के बीच किए गए कई आतंकी हमले आईएस-के, तालिबान, हक्कानी नेटवर्क और अन्य आतंकी संगठनों के सहयोग से हुए।
सिराजुद्दीन तालिबान का उपनेता
अमेरिका स्थित मिडल ईस्ट इंस्टीट्यूट ने भी अपनी शोध रिपोर्ट में दावा किया है कि हक्कानी नेटवर्क के अलकायदा, आईएसआईएस (इसकी ही एक शाखा आईएस-के है), तहरीक-ए-तालिबान और अलकायदा से गहरे संबंध हैं। इसके बावजूद हक्कानी नेटवर्क का मुखिया सिराजुद्दीन हक्कानी तालिबान का उपनेता है। सिराजुद्दीन के पिता जलालुद्दीन हक्कानी ने ही हक्कानी नेटवर्क की स्थापना की थी।
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