जब जनता भ्रष्ट हो जाएगी तो नेता पर उंगली कैसे उठाएगी… चुनाव से पहले खुलेआम नोट देकर वोट खरीदने के ऐलान किए जाते हैं… कहीं लाड़ली बहना के नाम पर नोट दिए जाते हैं….कहीं कर्जमाफी का ऐलान कर मतदाता लुभाए जाते हैं…कहीं मुफ्त बिजली की रोशनी दिखाई जाती है…कहीं वेतनवृद्धि तो कहीं बेरोजगारी भत्ता, कहीं छात्रवृत्ति तो कहीं छात्राओं को साइकिलें बांटी जाती हैं और चुनाव जीतने के बाद खुलेआम लाड़ली बहनों को नोट के बदले वोट दिए जाने पर बधाई दी जाती है…इधर सरकारी दौलत लुटाई जाती है तो उधर चुनाव लडऩे वाला उम्मीदवार पैसों के दम पर मैदान में उतरता है… महिलाओं को साड़ी तो पुरुष को शराब का चस्का लगता है… कार्यकर्ताओं को खुलेआम पैसे बांटते हैं… समाज के ठेकेदार भरपल्ले नोट ले जाते हैं… बिना पैसा लुटाए चुनाव नहीं लड़ा जाता है… जब सरकार दौलत लुटाएगी…प्रत्याशी पैसा लगाएगा तो उसकी वसूली को कोई कैसे नाजायज कह पाएगा…नोट लेकर वोट देने वाली जनता किसी भी नेता के वोट के बदले नोट की कोशिशों पर उंगली कैसे उठाएगी…सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने नेताओं पर तो बंदिशें लगाईं, लेकिन जनता को लुभाकर वोट हड़पने और मतदाताओं से नोट के बदले वोट लेने की परिपाटी पर रोक नहीं लगाई…चुनाव के वक्त बांटी जाने वाली इस खैरात पर रोक लगना चाहिए… जनता की गाढ़ी कमाई लूटने वाली जनता और लुटाने वाले नेताओं को भी सवालों में खड़ा करना चाहिए…राज्यों को कर्ज में डुबाकर खैरात बांटना…चुनाव जीतने के लिए किसी भी हद तक गुजर जाना…राज्यों को कंगाल बनाना और जनता को बेईमान बनाना किसी भी नेता के ईमान बेचने से ज्यादा गंभीर अपराध है…यह अब प्रतिस्पर्धा में शामिल हो चुका है…एक दल घोषणा करता है, दूसरा दल उससे बड़ी घोषणा करने लग जाता है… जनता को मुफ्त की खैरात का सपना नजर आता है और वोट मजबूत उम्मीदवार के हाथों से फिसल जाता है…सर्वोच्च न्यायालय में इस खैरात की खिलाफत की याचिका लंबित पड़ी है… इस पर फैसला होना चाहिए…यह रुकना चाहिए…यह सिलसिला नस्लों को खराब कर रहा है…मुफ्त में मिलने वाली खैरात लोगों को निकम्मा बना रही है और राज्यों को कंगाल… मेहनत करने वालों पर करों का बोझ बढ़ा रही है और मुफ्तखोरी बढ़ा रही है…यह राजनीतिक दलों की सेहत के लिए भी खराब है और ईमानदार मतदाताओं पर भी कुठाराघात है…नोट फॉर वोट का फैसला तो हो चुका…अब वोट फॉर नोट का फैसला भी होना चाहिए…
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