भोपाल: ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ 1857 की क्रांति को भारतीय इतिहास में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के रूप में देखा जाता है. मेरठ से 10 मई 1857 को सैनिक विद्रोह के रूप में शुरू हुई इस क्रांति ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका. ब्रिटिश शासन के खिलाफ लोगों में असंतोष फैलता गया और धीरे-धीरे इस आन्दोलन ने उग्र रूप ले लिया. पूरे देश के साथ ही मध्य भारत में भी अंग्रेजी हुकूमत ने इस विद्रोह को दबाने के लिए अनेक क्रांतिकारियों को गोली से भून दिया.
अंग्रेजी शासन के खिलाफ मध्य भारत में चल रहे विद्रोह में भोपाल (Bhopal) के नजदीकी जिले सीहोर (Sehore) की बरबर्तापूर्ण घटना को जलियांवालाबाग हत्याकांड की तरह माना जाता है. दरअसल, दस मई 1857 को मेरठ की क्रांति से पहले ही सीहोर में क्रांति की ज्वाला सुलग गई थी. मेवाड़ा उत्तर भारत से होती हुई क्रांतिकारी चपातियां 13 जून 1857 को सीहोर और ग्रामीण क्षेत्रों में पहुंच गई थीं. एक अगस्त 1857 को छावनी के सैनिकों को नए कारतूस दिए गए. इन कारतूसों में सूअर और गाय की चर्बी लगी हुई थी.
जांच में सुअर और गाय की चर्बी के उपयोग की बात सामने आने पर सैनिकों में आक्रोश और बढ़ गया. सीहोर छावनी के सैनिकों ने सीहोर कॉन्टिनेंट पर लगा अंग्रेजों का झंडा उतार कर जला दिया. इसके बाद महावीर कोठ और वलीशाह के संयुक्त नेतृत्व में स्वतंत्र सिपाही बहादुर सरकार का एलान किया. जनरल ह्यूरोज को जब सीहोर की क्रांतिकारी गतिविधियों के बारे में जानकारी मिली तो उन्होंने इसे बलपूर्वक कुचलने के आदेश दिए.
सीहोर में जनरल ह्यूरोज के आदेश पर 14 जनवरी 1858 को सभी 356 क्रांतिकारियों को जेल से निकालकर सीवन नदी किनारे सैकड़ाखेड़ी चांदमारी मैदान में लाया गया. फिर इन सभी क्रांतिकारियों को एक साथ गोलियों से भून दिया गया था.
जनरल ह्यूरोज ने इन क्रांतिकारियों के शव पेड़ों पर लटकाने के आदेश दिए. आदेश के बाद शवों को पेड़ों पर लटकाकर छोड़ दिया गया. दो दिन बाद आसपास के ग्रामवासियों ने इन क्रांतिकारियों के शवों को पेड़ से उतारकर इसी मैदान में दफनाया. अब प्रति वर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर 14 जनवरी को बड़ी संख्या में नागरिक सैकड़ों मार्ग पर स्थित शहीदों के समाधि स्थल पहुंचकर पुष्पांजलि अर्पित करते हैं.
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