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    संसद के शीत कालीन सत्र में हंगामे के आसार, महंगाई-बेरोजगारी पर सरकार को घेरेगा विपक्ष

  • November 27, 2022

    नई दिल्ली: संसद का शीतकालीन सत्र में हंगामे के पूरे आसार हैं. विपक्ष ने राज्यपालों की भूमिका, महंगाई, बेरोजगारी के मुद्दे पर सरकार को घेरने की तैयारी कर ली है. वहीं सरकार की नजर डेटा संरक्षण विधेयक सहित करीब एक दर्जन विधेयक पारित कराने पर है लेकिन विपक्ष के तेवर देख लगता नहीं कि सदन में उसकी राह आसान होगी.

    विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों में राज्यपालों के कथित हस्तक्षेप, जांच एजेंसियों के दुरुपयोग, बेरोजगारी, किसानों की समस्या, मंहगाई, पुरानी पेंशन योजना बहाल करने की मांग जैसे मुद्दों पर विपक्ष सरकार को घेरने की तैयारी कर रहा है. संसदीय कार्य राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि हम सत्र में सुचारू रूप से कामकाज सुनिश्चित करना चाहते है. इसके बारे में छह दिसंबर को सर्वदलीय बैठक में विभिन्न दलों के साथ चर्चा होगी और विषय तय किये जायेंगे.

    राज्यपाल हस्तक्षेप के मुद्दे को उठाएगा विपक्ष
    कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, आरएसपी सहित कई विपक्षी दल सत्र के दौरान महंगाई, बेरोजगारी के अलावा विपक्षी दलों के शासन वाले तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, केरल जैसे राज्यों में राज्यपाल द्वारा कथित तौर पर कामकाज में हस्तक्षेप करने के विषय को शीतकालीन सत्र में पुरजोर तरीके से उठाएंगे. लोकसभा में कांग्रेस के मुख्य सचेतक के. सुरेश ने बताया कि सत्र में उठाये जाने वाले मुद्दों को लेकर अगले एक-दो दिनों में पार्टी की रणनीति संबंधी बैठक होगी जिसमें विषयों को अंतिम रूप दिया जायेगा.

    कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने कहा, विपक्षी दलों के शासन वाले तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, केरल, झारखंड जैसे राज्यों में राज्यपाल द्वारा कथित तौर पर कामकाज में हस्तक्षेप करने का विषय एक एक प्रमुख मुद्दा है. कुछ समय पहले महाराष्ट्र में भी हमने देखा था कि क्या हुआ. उन्होंने कहा कि राज्यपालों द्वारा राज्य सरकार के कामकाज में हस्तक्षेप करना संविधान एवं संघीय ढांचे की भावना के खिलाफ है और यह मुद्दा सत्र के दौरान उठाया जा सकता है.


    महंगाई और बेरोजगारी पर घिरेगी सरकार
    सुरेश ने कहा कि सत्र के दौरान महंगाई, बेरोजगारी के मुद्दे को प्रमुखता मिलेगी, साथ ही किसानों के मुद्दे भी प्रमुख होंगे क्योंकि सरकार ने उनसे किया वादा पूरा नहीं किया है. दूसरी ओर, मेघवाल ने कहा, हम कम से कम 10 विधेयक पारित कराना चाहते हैं. इस बारे में चर्चा होगी और यह सब निर्भर करेगा कि परिस्थितियां कैसी रहती हैं. यह पूछे जाने पर विपक्ष महंगाई, बेरोजगारी, पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारों को रिहा करने के अदालती आदेश से जुड़े विषय को उठाना चाहेगा, मेघवाल ने कहा कि सर्वदलीय बैठक में जो भी विषय उठेंगे, उस पर विचार करने के बाद सत्र में चर्चा के मुद्दे तय किये जायेंगे और उन्हें प्राथमिकता के आधार पर लिया जायेगा.

    उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ करेंगे अपर हाउस की अध्यक्षता
    संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने इस बैठक के लिए लोकसभा एवं राज्यसभा में राजनीतिक दलों के सदन के नेताओं को निमंत्रण भेज दिया है. यह पहला सत्र होगा जब उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ राज्यसभा की अध्यक्षता करेंगे. सत्र के दौरान ही आठ दिसंबर को हिमाचल प्रदेश और गुजरात विधानसभा चुनाव के परिणाम भी सामने आएंगे. ऐसे में शीतकालीन सत्र पर इन दोनों राज्यों के चुनाव परिणाम की छाया भी देखने को मिलेगी.

    सदन में चर्चा होनी चाहिए- सांसद
    रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (RSP) के सांसद एन. के. प्रेमचंद्रन ने कहा, महंगाई और बेरोजगारी सबसे प्रमुख मुद्दे होंगे. हम इन दोनों विषयों पर नियम 193 के तहत निचले सदन में चर्चा कराने की मांग करेंगे. उन्होंने कहा कि इसके अलावा एक प्रमुख मुद्दा पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने का है और इस विषय पर भी विपक्ष सदन में चर्चा कराने की मांग करेगा.

    सरकार पारित कराना चाहती है विधयेक
    संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान सरकार डाटा संरक्षण विधेयक, कीटनाशक प्रबंधन विधेयक, वरिष्ठ नागरिकों एवं अभिभावकों के कल्याण एवं देखरेख से संबंधित विधेयक सहित करीब एक दर्जन विधेयकों को चर्चा एवं पारित कराने के लिये ला सकती है.सरकार ने डाटा संरक्षण से जुड़े विधेयक को नये सिरे से पेश करने के उद्देश्य से कुछ दिनों पहले ही संशोधित विधेयक का मसौदा जारी किया था. विपक्षी दलों ने हालांकि इस विधेयक को जल्दबाजी में पारित कराने के प्रयास का विरोध करने के संकेत दिये हैं.

    सत्र के दौरान डाटा संरक्षण विधेयक एक प्रमुख विधेयक है जिसपर सरकार और विपक्ष में सहमति बनना जरूरी होगा. डाटा संरक्षण विधेयक को 2019 के शीतकालीन सत्र में लोकसभा में पेश किया गया था लेकिन इसमें नागरिकों की निजता सहित कुछ प्रावधानों पर विपक्षी दलों के विरोध के बाद इसे संसद की संयुक्त समिति को भेज दिया गया था. समिति की सिफारिशों के आधार पर इसे आगे बढ़ाने की बजाए इसे वापस ले लिया गया था.

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