वाशिंगटन । भारत चीन के साथ अपने संबंधों को लेकर हमेशा से आशंकित रहा, लेकिन गलवन घाटी में हुई टकराव की घटना ने उसकी सोच पूरी तरह से बदलकर रख दी है। भारत अब चीन के साथ संबंधों को सीमित करने के अभियान में जुटा हुआ है। यह बात अमेरिका की रेडियो न्यूज मैगजीन- द वर्ल्ड ने अपने आलेख में कही है। गलवन घाटी की घटना से पहले चीन भारत के सबसे बड़े कारोबार सहयोगी देशों में शामिल था। चीन की संचार कंपनियों ने ही भारत में 3जी और 4जी सिस्टम स्थापित किए थे। गलवन की घटना ने चीन की संचार कंपनियों की योजनाओं को धराशाई कर दिया गया है।
चीनी दिग्गज कंपनी हुवावे भारत में 5जी नेटवर्क तैयार करने की राह पर थी, लेकिन गलवन की घटना ने सब कुछ बदलकर रख दिया। चीन की संचार कंपनियों की भारत को लेकर योजनाएं धराशाई हो गईं। भारत ने सुरक्षा चिंताओं के चलते टिकटॉक समेत एक सौ से ज्यादा चीनी एप पर प्रतिबंध लगा दिया। साथ ही दूरसंचार कंपनियों को चीन के उपकरण का इस्तेमाल रोकने के लिए निर्देश जारी कर दिए हैं।
भारत में यह आशंका पैदा हो गई है कि चीन अपने फायदे के लिए भविष्य में तकनीक क्षेत्र में मुश्किल स्थिति पैदा कर सकता है। इसलिए देश के संवेदनशील तंत्र से उसे दूर ही रखा जाए। द वर्ल्ड ने नई दिल्ली के संचार विशेषज्ञ वीके चेरियन की यह टिप्पणी अपने कार्यक्रम में शामिल की है।
पत्रिका के अनुसार चीन की पाकिस्तान, श्रीलंका और म्यांमार में रणनीतिक बंदरगाह पर कब्जा करने की रणनीति ने काफी पहले ही भारत को सशंकित कर दिया था। इसके चलते भारत रणनीतिकार सोच-समझकर अपने कदम बढ़ा रहे थे। इसी के चलते भारत चीन की महात्वाकांक्षी वन बेल्ट-वन रोड (ओबीओआर) परियोजना से दूरी बनाए रखी। एशियाई देशों के बीच हुए व्यापार समझौते से भी खुद को दूर रखा।
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