उज्जैन। हमारे शहर उज्जैनी का नाम प्रति कल्पा भी है, यह इसलिए रखा गया है कि हर युग में उज्जैनी का अस्तित्व रहा है। त्रेता युग से लेकर वर्तमान काल तक उज्जैन नगरी हमेशा इतिहास में दर्ज रही है। यहां इतिहास की धरोहर खूब है लेकिन इन्हें सहेजने वाले सरकार के विभाग उज्जैन पर ध्यान नहीं देते हैं। उज्जैन शहर में सप्त सागर और 84 महादेव के मंदिर हैं जो विश्व में कहीं भी नहीं हैं। आज विश्व धरोहर दिवस है जिसमें शहर की ऐतिहासिक धरोहरों को सवारने का संकल्प लिया जाता है। हमारा शहर उज्जैन जो कि हर युग में अस्तित्व में रहा है। पुराणों के अनुसार भगवान राम से लेकर कृष्ण और बात के कालखंड में विक्रमादित्य और सम्राट अशोक ने भी यहां राज किया है। इस दौरान कई इमारतें बनी और बिगड़ी इनमें से कुछ आज भी अस्तित्व में है जिन्हें सिर्फ सवारने की जरूरत है लेकिन सरकारी ढर्रा सिर्फ योजना बनाता है। इनको सवारने का काम नहीं करता है, कोठी पैलेस जो करीब डेढ़ सौ साल के आसपास पुराना है, इस बिल्डिंग को सिंधिया राजवंश ने बनाया था। इसका उपयोग आजादी के बाद सरकार ने न्यायालय और राजस्व विभाग के कार्यालय के रूप में कई वर्षों तक किया, अब यहां से न्यायलय तो हट गया है और सिर्फ राजस्व विभाग बचा है लेकिन इस इमारत को ठीक ढंग से संवारने और सुधारने का काम नहीं किया गया।
इसके चलते ही इमारत धीरे-धीरे जर्जर होने लगी है। इसके अलावा शहर में पानी की रिचार्जिंग बढ़ाने के लिए एक नदी के अलावा सप्त सागर शहर के आसपास बनाए गए थे ताकि जल की आपूर्ति शहर में सही रहे लेकिन इन 7 सालों में से 2-3 सागर ही हैं जो शहर से थोड़े बाहर है। वही ठीक है बाकी के सागरों की स्थिति एक नाले के समान हो गई। महाकाल वन के 84 महादेव पर जरूर सरकार ने ध्यान दिया है और पिछले सिंहस्थ में इन्हें संवारा गया, वहीं उज्जैन में नो नारायण के मंदिर भी है लेकिन वे निजी हाथों में होने के कारण सरकार ने अब तक इनके विकास पर ध्यान नहीं दिया है। इसके अलावा शहर में कालियादेह पैलेस, यंत्र महल, 24 खंबा द्वार, बौद्ध स्तूप, दिल्ली दरवाजा और भी कई मंदिर और इमारते हैं जिन्हें संवार कर खूबसूरत बनाया जा सकता है। राम जनार्दन मंदिर भी कलात्मकता का बड़ा उदाहरण है यहां महारानी अहिल्या के बाद किसी ने विकास कार्य नहीं कराए। इस मंदिर में भी यदि विकास कार्य हो जाए तो यह बड़ा धार्मिक मंदिर बन सकता है। वर्तमान में यहां सिर्फ शहर के ही लोग आते जाते हैं। बाहर के लोगों को अभी भी यह मंदिर पता नहीं चला है। ऐतिहासिक धरोहरों को संभालने के मामले में मध्य प्रदेश की सरकार को राजस्थान से शिक्षा लेना चाहिए। वहां छोटी से छोटी इमारतों और जल संरचनाओं को बड़ा नाम लेकर पर्यटन कराया जाता है और सरकार को भी खूब राजस्व प्राप्त होता है।
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