इंदौर। जिन मंदिरों को आस्था का केन्द्र माना जाता है… मंदिरों के लिए अयोध्या तक संघर्ष किए जाता है… खासगी ट्रस्ट से संघर्ष कर मंदिरों का व्यवस्थापन हासिल किया जाता है… वहीं हालत यह है कि इंदौर शहर सहित जिले की केवल 4 तहसीलों देपालपुर, महू, सांवेर और हातोद में ही प्रशासन के स्वामित्व के 1487 मंदिर हैं, जिनमें प्रशासन या प्रशासन का कोई नुमाइंदा झांककर भी नहीं देखता… इंदौर तहसील के शहरी इलाकों के साथ ही हर गांव में राम, कृष्ण, हनुमान, शिव-पार्वती, गणपति के 327 मंदिर हैं… लेकिन यह मंदिर केवल प्रशासन की सूची तक ही सीमित हैं… जिला प्रशासन द्वारा इन मंदिरों की देखभाल के लिए एक माफी शाखा बनाकर माफी ऑफिसर की नियुक्ति की गई है… लेकिन इस पद पर हमेशा किसी रिटायर्ड व्यक्ति को उपकृत किया जाता रहा है… उक्त माफी ऑफिसर द्वारा मंदिरों की देखरेख तो दूर उनकी सूची तक को नहीं पढ़ा जाता है… माफी ऑफिसर के अधीन भी दो-चार कर्मचारी हैं, जो गोपाल मंदिर, बांकेबिहारी मंदिर जैसे बड़े-बड़े मंदिरों की देखरेख में ही शुमार रहते हैं…इसके अलावा इंदौर जिले की देपालपुर तहसील में सर्वाधिक 452 मंदिर हैं तो सांवेर में इंदौर से ज्यादा 387 मंदिर पुजारियों के भरोसे चल रहे हैं…इंदौर की ही हातोद तहसील कहने को तो काफी छोटी तहसील है, लेकिन इस तहसील में भी प्रशासन के 155 मंदिर हैं…. इन सभी मंदिरों की सूची अग्निबाण के पास उपलब्ध है…
सर्वाधिक मंदिर राम और हनुमान के
जिला प्रशासन के स्वामित्व की सूची में मौजूद 1487 मंदिरों में अधिकांश मंदिर राम-हनुमान के हैं…इन मंदिरों में हनुमान जयंती और राम जन्मोत्सव के दिन बड़े आयोजन तो होते हैं, लेकिन इसमें जिला प्रशासन की भागीदारी नदारद रहती है… इसके अलावा शिव-पार्वती और राधा-कृष्ण मंदिर भी जहां सूची में शामिल हैं, वहीं 4 शनि मंदिर भी हैं…ये सभी मंदिर होलकरों के शासनकाल में माता अहिल्याबाई ने बनवाए थे…जिनका संचालन बाद में होलकरों की ही वंशज गौतमीबाई को मिला था…इन मंदिरों के साथ जितनी भूमियां हैं वह होलकरों ने मंदिर के संचालन के लिए पुजारियों को दान में दी थीं, जिन पर प्रशासन ने अपना नाम चढ़ा लिया…
पुजारियों के ‘भरोसे भगवान
जिस तरह खासगी ट्रस्ट के मंदिर पुजारियों के भरोसे थे, उसी तरह प्रशासन के मंदिर भी इन्हीं पुजारियों के भरोसे चल रहे हैं…प्रशासन के कई मंदिरों के परिसर में ही पुजारियों का निवास है और मंदिरों से प्राप्त चढ़ावे से उनका जीवन-यापन होता है…प्रशासन द्वारा भी किसी पुजारी को कोई वेतन नहीं दिया जाता…इन मंदिरों की बिजली व्यवस्था भी सीधे खंभे से चल रही है… और मंदिर होने के कारण विद्युत विभाग भी ध्यान नहीं देता है… मंदिर के पुजारियों द्वारा ही भगवान की जन्म जयंती पर भक्तों के भरोसे आयोजन किए जाते हैं…इन्हीं आयोजनों से पुजारी का भी सालभर का खर्च निकल आता है…प्रशासन को भी मंदिरों की इन व्यवस्थाओं का पता है…लेकिन प्रशासन के धर्मस्व विभाग या माफी शाखा के पास ऐसा कोई बजट नहीं है, जिसके जरिए मंदिरों का संचालन हो सके…
इन मंदिरों के स्वामित्व की है कई एकड़ जमीन
प्रशासन के जो 1487 मंदिर इंदौर जिले में हैं उनमें से लगभग सभी मंदिरों के पास भूमियां तो हैं ही, वहीं कई मंदिरों के पास अटूट संपदा और सैकड़ों एकड़ भूमियां भी हैं… हालांकि मंदिरों की इन भूमियों पर व्यवस्थापक कलेक्टर का नाम चढ़ा हुआ है… इंदौर शहर के ही सुखलिया स्थित खेड़ापति मंदिर के पास चार सर्वे की भूमि ही तो सुल्काखेड़ी के गोवर्धन मंदिर, मारुति मंदिर, महादेव मंदिर, कृष्ण मंदिर, नृसिंह मंदिर, रणछोड़ मंदिर सहित 11 मंदिरों की करीब 170 एकड़ भूमि शामिल है तो सिरपुर के 7 मंदिरों की 72 एकड़, नैनोद के बालाजी मंदिर की 22 एकड़, सिंहासा के रामकृष्ण मंदिर की 17 एकड़, कलारिया के राम मंदिर की 9 एकड़, माचला के खेड़ापति हनुमान मंदिर और राऊ के मुरलीमनोहर मंदिर की 22 एकड़ जमीन है तो कस्बा इंदौर के मंदिरों के पास करीब 70 एकड़ जमीन है… इंदौर के पलासिया में ही खेड़ापति मंदिर की 12 एकड़ कीमती जमीन मुकदमे में फंसी है, वहीं पीपल्याहाना के महादेव मंदिर की भी 7 एकड़ जमीन दस्तावेजों में है… आश्चर्य की बात यह है कि खजराना के अल्पसंख्यक इलाके में भी प्रशासन के 8 मंदिर हैं…इसके अलावा तिल्लौरखुर्द के तिलकेश्वर महादेव एवं कम्पेल के खेड़ापति मंदिर के पास बहुमूल्य भूमियां हैं…इसके अलावा प्रशासन के देपालपुर, महू, सांवेर, हातोद में स्थित मंदिरों के नाम पर भी कई भूमियां रही हैं… प्रशासन की माफी शाखा के पास किसी भी मंदिर एवं उसके स्वामित्व की भूमियों की जानकारी या उनके व्यवस्थापन की कोई व्यवस्था नहीं है…
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