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    सूर्य को ‘छूने’ वाला दुनिया का पहला अंतरिक्षयान, जानें कैसे पार की 20 लाख डिग्री की गर्मी

  • December 15, 2021

    न्यूयॉर्क। अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के अंतरिक्षयान ‘पार्कर सोलर प्रोब’ ने सूर्य को ‘छूने’ का अभूतपूर्व कारनामा किया है। एक समय तक असंभव मानी जाने वाली यह उपलब्धि अंतरिक्षयान ने आठ महीने पहले यानी अप्रैल में ही हासिल कर ली थी, लेकिन अंतरिक्ष में करोड़ो किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस यान से जानकारी पहुंचने और इसके बाद जानकारी का विश्लेषण करने में वैज्ञानिकों को लंबा समय लग गया। 
    एक स्पेसक्राफ्ट के जरिए हासिल की गई इस उपलब्धि की दुनियाभर में सराहना हो रही है। हालांकि, आम लोगों के लिए इस मिशन की अहमियत समझना काफी मुश्किल है। ऐसे में अमर उजाला आपको बता रहा है कि एक अंतरिक्षयान के सूर्य के इतना करीब पहुंचने के मायने क्या हैं और कैसे यह उपलब्धि आने वाले समय में सौर विज्ञान का चेहरा बदलने जा रही है। 

    पहले जानें क्या है पार्कर सोलर प्रोब का लक्ष्य?
    नासा ने अपना पार्कर सोल प्रोब अंतरिक्षयान 12 अगस्त 2018 को लॉन्च किया था। यह नासा के ‘लिविंग विद अ स्टार’ कार्यक्रम का हिस्सा है, जिसके जरिए एजेंसी ने सूर्य-पृथ्वी के बीच के सिस्टम के अलग-अलग पहलुओं को समझने और इससे जुड़ी जानकारी इकट्ठा करने का लक्ष्य रखा है। नासा का कहना है कि पार्कर प्रोब से जो भी जानकारी मिलेगी, उससे सूर्य के बारे में हमारी समझ और विकसित होगी।


    कैसे संभव हुआ सूर्य को छूना?
    इस ऐतिहासिक उपलब्धि को हासिल करने के पीछे वैज्ञानिकों और इंजीनियर्स की एक बड़ी टीम का हाथ है, जिसमें हार्वर्ड और स्मिथसोनियन के सेंटर फॉर एस्ट्रोफिजिक्स के सदस्य भी शामिल रहे। यह टीम ने प्रोब में लगे एक अहम उपकरण- ‘सोलर प्रोब कप’ के निर्माण और उसकी निगरानी में जुटी है। यह कप ही वह उपकरण है, जो कि सूर्य के वायुमंडल से कणों को इकट्ठा करने का काम कर रहा है, जिससे वैज्ञानिकों को यह समझने में आसानी हुई कि स्पेसक्राफ्ट सूर्य के वायुमंडल की बाहरी सतह ‘कोरोना’ तक पहुंचने में सफल हो गया है।
    स्पेसक्राफ्ट के कप में जो डेटा इकट्ठा हुआ, उससे सामने आया है कि अप्रैल 28 को पार्कर प्रोब ने सूर्य के वायुमंडल की बाहरी सतह को तीन बार पार किया। एक बार तो कम से कम पांच घंटे के लिए। सोलर प्रोब की इस उपलब्धि को बताने वाली एक चिट्ठी ‘फिजिकल रिव्यू लेटर’ नाम के जर्नल में भी प्रकाशित हुई है। इसमें एयरक्राफ्ट को इंजीनियरिंग का बेहद खास नमूना करार दिया गया है।

    कोरोना का तापमान 11 लाख डिग्री सेल्सियस, आखिर इसे कैसे पार कर पाया अंतरिक्षयान?
    सूर्य के वायुमंडल जिसे कोरोना भी कहा जाता है का तापमान लगभग 11 लाख डिग्री सेल्सियस (करीब 20 लाख डिग्री फारहेनहाइट) है। इतनी गर्मी कुछ ही सेकंड्स में पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी पदार्थों को पिघला सकती है। इसलिए वैज्ञानिकों ने स्पेसक्राफ्ट में खास तकनीक वाली हीट शील्ड्स लगाई हैं, जो कि लाखों डिग्री के तापमान में भी अंतरिक्ष यान को सूर्य के ताप से बचाने का काम करती हैं।

    हालांकि, प्रोब के कप में किसी तरह की हीट शील्ड नहीं लगाई गई है, ताकि इसमें सूर्य से इकट्ठा होने वाली जानकारी बिल्कुल सटीक और स्पष्ट हो। ऐसे में इस उपकरण को उच्च गलनांक वाले पदार्थ जैसे- टंगस्टन, नियोबियम, मॉलिबिडनम और सैफायर की मिलावट से तैयार किया गया है।


    विज्ञान के लिए इस उपलब्धि के क्या मायने?
    पृथ्वी को रोशनी और गर्मी देने वाले इस तारे के बारे में अब तक ज्यादा जानकारी नहीं मिल पाई। खासकर सूर्य की बनावट को लेकर अब तक संशय की स्थिति रही है। ऐसे में पार्कर सोलर प्रोब का सूर्य के वायुमंडल में पहुंचना सूर्य से जुड़े राज को खोलने के लिए अहम है। उदाहरण के तौर पर वैज्ञानिक अब तक इस बात का पता नहीं लगा पाए हैं कि आखिर क्यों सूर्य का बाहरी वायुमंडल 20 लाख डिग्री सेल्सियस तक गर्म है, जबकि खुद सूर्य का तापमान 5500 डिग्री सेल्सियस ही अनुमानित है।

    एस्ट्रोफिजिसिस्ट्स का अंदाजा है कि सूर्य की गर्मी से इसके आसपास मैग्नेटिक फील्ड्स (चुंबकीय क्षेत्र) पैदा होती हैं, जो कि सूर्य की ऊर्जा को कई गुना बढ़ा देती हैं और इसके आसपास के वातावरण को लाखों डिग्री सेल्सियस तक गर्म कर देती हैं। लेकिन यह बात अभी भी साफ नहीं है कि सूर्य का वायुमंडल आखिर इस ऊर्जा को सोखता कैसे है? इसके अलावा यह अंतरिक्षयान सूर्य से निकलने वाले इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन और तेज रफ्तार वाली सौर हवाओं (या आंधी) के बारे में भी ज्यादा जानकारी जुटाने में मदद करेगा।

    इन दोनों ही प्रत्यक्ष घटनाओं का पृथ्वी पर सीधा असर होता है और कई बार इनकी वजह से ही धरती पर पावर ग्रिड्स और रेडियो कम्युनिकेशन में दिक्कत पैदा होती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना के पार पहुंचने और आने वाले समय में और मिशन के जरिए उन रहस्यों के बारे में भी जानकारी मिलेगी, जिनके बारे में करोड़ों किलोमीटर दूर बैठकर डेटा हासिल करना नामुमकिन है।

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