– प्रहलाद सबनानी
पिछले सप्ताह अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने यूएस फेड दर में 25 आधार बिंदुओं की वृद्धि करते हुए इसे 5.25 प्रतिशत तक पहुंचा दिया है। मार्च 2022 के बाद से यूएस फेड दर में यह लगातार 10वीं बार वृद्धि की गई है एवं वर्ष 2007 के बाद से यूएस फेड दर अपने उच्चत्तम स्तर पर पहुंच गई है। हालांकि, अमेरिका में मुद्रा स्फीति को नियंत्रण में लाने के उद्देश्य से अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा यूएस फेड दर में वृद्धि की जा रही है परंतु अब उच्च ब्याज दरों का विपरीत प्रभाव अमेरिकी अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों पर स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है।
हाल ही में दो अमेरिकी बैंक, सिलिकोन वैली बैंक एवं सिग्नेचर बैंक असफल हो चुके हैं एवं तीसरा बैंक फर्स्ट रिपब्लिक भी असफल होने की स्थिति में पहुंच गया था। उसे समय रहते जेपी मोर्गन कम्पनी को बेच दिया गया। पेसिफिक वेस्टर्न बैक एवं वेस्टर्न अलाइन्स बैंक में भी तरलता की समस्या खड़ी हो गई है। असफल हो रहे अमेरिकी बैंकों को अन्य स्वस्थ बड़े आकार के बैंकों को बेच देना, इस समस्या का स्थाई हल नहीं कहा जा सकता है। असफल हो जाने की स्थिति तक पहुंचे उक्त पांच बैंकों के अतिरिक्त छोटे आकर के अन्य कई बैंकों पर अभी भी तरलता का दबाव है और यह समस्त बैंक, ब्याज दरों में लगातार हो रही वृद्धि के चलते ही इस स्थिति में पहुंचे हैं।
दरअसल, अमेरिका में बैकों द्वारा अपनी जमाराशि का एक बड़ा हिस्सा यूएस ट्रेजरी द्वारा जारी बांड्स में निवेश किया गया है। पूर्व में इन बांड्स पर ब्याज दर कम था, परंतु अब जारी किए जा रहे बांड्स पर ब्याज दर अधिक है, जिसके चलते पूर्व में जारी किए गए बांड्स की बाजार कीमत कम हो गई है इससे बैंकों पर तरलता का दबाव आ गया है। अमेरिका में निर्मित हुई इस स्थिति के लिए पूर्ण रूप से फेडरल रिजर्व को ही जिम्मेदार माना जा रहा है। साथ ही, अमेरिका ने स्वयं भी भारी मात्रा में कर्ज ले रखा है और अमेरिकी सरकार को स्वयं भी बढ़ते ब्याज दर का दंश झेलना पड़ रहा है। अमेरिकी वित्त सचिव ने चेतावनी भरे अन्दाज में कहा है कि यदि अमेरिकी सरकार द्वारा अपने कर्ज लेने की सीमा में वृद्धि नहीं की गई तो 01 जून 2023 के बाद अमेरिका अपने ऋण के भुगतान में चूक कर सकता है।
दूसरे, चूंकि अमेरिका में ब्याज दरों को लगातार बढ़ाया जा रहा है और निवेशकों द्वारा अन्य देशों से अमेरिकी डॉलर निकालकर अमेरिका में निवेश किया जा रहा हैं, अतः अन्य देशों की मुद्रा पर दबाव बढ़ता जा रहा है और इन देशों की मुद्रा का अवमूल्यन हो रहा है। इस अवमूल्यन से इन देशों द्वारा आयात किए जाने वाले उत्पाद महंगे हो रहे हैं। इस स्थिति से निपटने के लिए अन्य कई देशों द्वारा भी ब्याज दरों में वृद्धि की जा रही है और अपने देश के बैंकों को खतरे में डाला जा रहा हैं। इस प्रकार लम्बे समय में अमेरिकी आर्थिक नीतियों का असर अन्य देशों पर भी विपरीत प्रभाव डाल सकता है।
पूर्व में, भारतीय रिजर्व बैंक भी, अमेरिका द्वारा लगातार की जा रही ब्याज दरों में वृद्धि को देखते हुए, रेपो दर में वृद्धि करने का निर्णय ले रहा था। परंतु, अप्रैल 2023 में भारतीय रिजर्व बैंक ने रेपो दर में किसी भी प्रकार की वृद्धि नहीं करने का निर्णय लिया। रिजर्व बैंक के इस निर्णय को साहसिक कदम बताया गया। भारत को देखते हुए कुछ अन्य देशों ने भी ब्याज दरों में लगातार की जा रही वृद्धि को रोक लिया है। ब्याज दरों में अब और वृद्धि भारतीय बैंकिंग उद्योग एवं उद्योग जगत को निश्चित रूप से विपरीत रूप से प्रभावित करने लगेगी क्योंकि एक तो भारत में मुद्रा स्फीति तुलनात्मक रूप से नियंत्रण में आ चुकी है और दूसरे, भारत तेज आर्थिक विकास के चक्र में शामिल हो चुका है।
अप्रैल 2023 माह में वस्तु एवं सेवा कर संग्रहण का उच्चत्तम स्तर पर आना, बढ़ती हवाई यात्रियों की संख्या का उच्चत्तम स्तर पर आना, टोल संग्रहण में उछाल आना, अप्रैल 2023 माह में सेवा क्षेत्र के पीएमआई (परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स) का 13 वर्ष के उच्चत्तम स्तर 62 पर पहुंचना, जो मार्च 2023 माह में 57.8 पर था, विनिर्माण क्षेत्र के पीएमआई का चार माह के उच्चत्तम स्तर पर पहुंचना, आदि ऐसे सूचक हैं जिनसे सिद्ध होता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था बेहद मजबूत स्थिति में पहुंच गई है।
वर्ल्ड ऑफ स्टेटिक्स के प्रतिवेदन में भी बताया गया है कि बड़े देशों में भारत अकेला एक ऐसा देश है जहां मंदी की शून्य सम्भावना है। जबकि ब्रिटेन में 75 प्रतिशत, अमेरिका में 65 प्रतिशत, जर्मनी, इटली एवं कनाडा में 60 प्रतिशत, फ्रान्स में 50 प्रतिशत, दक्षिणी अफ्रीका में 45 प्रतिशत, मंदी आने की सम्भावना व्यक्त की गई है। अन्य कई देशों, रूस, जापान, दक्षिण कोरिया, स्पेन, ब्राजील, चीन आदि पर भी मंदी का साया मंडरा रहा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार, वर्ष 2023 में दुनिया में बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच भारत ही पुनः सबसे तेज गति से आगे बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बनी रहेगी।
दूसरी ओर, हाल ही में भारत द्वारा विभिन्न देशों के साथ सम्पन्न किए गए मुक्त व्यापार समझौतों का असर भी अब भारत से उत्पादों के निर्यात पर दिखाई देने लगा है। भारत वित्तीय वर्ष 2026-27 तक संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) को अपना निर्यात बढ़ाकर 50 अरब डॉलर तक ले जा सकता है। दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौते के कारण यह वृद्धि होने की उम्मीद की जा रही है। वर्ष 2022-23 में यूएई को 31.3 अरब अमेरिकी डॉलर का निर्यात किया गया था। मुक्त व्यापार समझौता लागू होने के बाद भारत और यूएई के बीच विदेशी व्यापार में काफी वृद्धि हुई है।
अमेरिका एवं चीन के बाद शीघ्र ही यूएई तीसरा ऐसा देश बन जाएगा जिसके साथ भारत का विदेशी व्यापार 100 अरब डॉलर के आंकड़े को पार कर जाएगा। इसी प्रकार, सेवा क्षेत्र में भी भारत से निर्यात वित्तीय वर्ष 2023-24 में 400 अरब डॉलर पर पहुंच सकता है, जो वित्तीय वर्ष 2022-23 में 322.72 अरब डॉलर का रहा था एवं वित्तीय वर्ष 2021-22 में 254 अरब डॉलर का रहा था। सेवा क्षेत्र के अतिरिक्त अन्य उत्पादों के निर्यात वित्तीय वर्ष 2023-24 में 500 अरब डॉलर तक पहुंचने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है, कुल मिलाकर वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत से कुल निर्यात 900 अरब डॉलर का रहने की प्रबल सम्भावना है, जो वित्तीय वर्ष 2022-23 में 770 अरब डॉलर का रहा है।
डिजिटल अर्थव्यवस्था के मामले में भी भारत पूरे विश्व को राह दिखा रहा है। भारत में 75.9 करोड़ से अधिक ‘सक्रिय’ इंटरनेट उपयोगकर्ता हो गए हैं, जो महीने में कम से कम एक बार वेब का उपयोग करते हैं। यह आंकड़ा वर्ष 2025 तक 90 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है। इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (आईएएमएआई) द्वारा जारी एक प्रतिवेदन में बताया गया है कि ‘सक्रिय’ इंटरनेट उपयोगकर्ता में 39.9 करोड़ ग्रामीण इलाकों में निवासरत हैं जबकि 36 करोड़ शहरी क्षेत्रों में निवास करते हैं। यह दर्शाता है कि भारत के ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट का उपयोग अधिक हो रहा है। अनुमान है कि वर्ष 2025 तक भारत में सभी नए इंटरनेट उपयोगकर्ताओं में 56 प्रतिशत ग्रामीण इलाकों से होंगे।
भारत में डिजिटल क्रांति एवं सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति के बाद से तो अब भारतीय कंपनियां अमेरिका में भी बड़ी संख्या में वहां के नागरिकों को रोजगार दे रही हैं। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) ने ‘इंडियन रूट्स, अमेरिकन सॉयल’ शीर्षक नामक एक सर्वेक्षण प्रतिवेदन तैयार किया है। इस प्रतिवेदन के अनुसार 163 भारतीय कंपनियों ने अमेरिका में अभी तक 40 अरब डॉलर से अधिक का निवेश किया है, जिससे अमेरिका में 4,25,000 नौकरियां पैदा हुई हैं। इस प्रतिवेदन के अनुसार भारतीय कंपनियों ने सामाजिक दायित्व भी बखूबी निभाया है और इस पर करीब 18.5 करोड़ डॉलर खर्च किए हैं।
भारतीय कम्पनियां न केवल भारत में बल्कि अन्य देशों में अपने व्यवसाय को विस्तार दे रही हैं। अतः इन भारतीय कंपनियों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए कम ब्याज दर पर ऋण की पर्याप्त सुविधा उपलब्ध होती रहे, इसका ध्यान बनाए रखने की सख्त जरूरत है। अतः भारत में ब्याज दरों को निचले स्तर पर बनाए रखना अब आवश्यक हो गया है। अमेरिका को भी इस सम्बंध में अब विचार किए जाने की आवश्यकता है एवं ब्याज दरों में वृद्धि को आने वाले समय में रोकना चाहिए, अन्यथा अमेरिकी अर्थव्यवस्था के साथ साथ विश्व में अन्य देशों की अर्थव्यवस्था भी विपरीत रूप से प्रभावित हो सकती है।
(लेखक, आर्थिक विषयों के जानकार हैं।)
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