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    अभिज्ञान शाकुंतलम् के माध्यम से ही दुनिया को संस्कृत साहित्य की महिमा का पता चला

  • November 10, 2022

    • कालिदास समारोह में संगोष्ठी के अंतिम सत्र में प्रस्तुत हुए अनेक महत्वपूर्ण शोध पत्र

    उज्जैन। कालिदास का साहित्य विपुल ज्ञाननिधि है। उसके विविध पक्षों का मंथन करने के लिए युवा शोधार्थी आगे आएँ। कालिदास के अभिज्ञान शाकुंतल के माध्यम से संपूर्ण विश्व को संस्कृत साहित्य की महिमा ज्ञात हुई है। यह बात कालिदास समारोह के संगोष्ठी के अंतिम सत्र में साहित्य पर भारतीय और पाश्चात्य मानदंडों से व्यापक समीक्षा करते हुए सारस्वत अतिथि प्रो. केदारनारायण जोशी ने कही। आयोजित राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के चतुर्थ सत्र की अध्यक्षता म.प्र. साहित्य अकादमी, भोपाल के निदेशक डॉ. विकास दवे ने की। सारस्वत अतिथि वरिष्ठ विद्वान् प्रो. केदारनारायण जोशी, प्रो. जयप्रकाश नारायण द्विवेदी, द्वारिका, प्रो. भगवत्शरण शुक्ल, वाराणसी, प्रो. सरोज कौशल, जोधपुर, डॉ. पंकज भांबुरकर, पुणे थे। इस सत्र में देश के विभिन्न भागों से आए अनेक शोध अध्येताओं ने अपने शोध-पत्रों का वाचन किया। शोध संगोष्ठी की संकल्पना कालिदास समिति के सचिव प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि कालिदास का साहित्य विपुल ज्ञाननिधि है। उसके विविध पक्षों का मंथन करने के लिए युवा शोधार्थी आगे आएँ। सारस्वत अतिथि प्रो. केदारनारायण जोशी, उज्जैन ने कहा कि कालिदास के अभिज्ञान शाकुंतल के माध्यम से संपूर्ण विश्व को संस्कृत साहित्य की महिमा ज्ञात हुई। कालिदास साहित्य पर भारतीय और पाश्चात्य मानदंडों से व्यापक समीक्षा हुई है।



    अध्यक्षीय उद्बोधन में म.प्र. साहित्य अकादमी, भोपाल के निदेशक डॉ. विकास दवे ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्पराएँ में श्रद्धा-विश्वास और वाचिक परम्परा का महत्वपूर्ण स्थान है। प्रो. जयप्रकाश नारायण द्विवेदी, द्वारिका ने कहा कि कालिदास साहित्य में राष्ट्रीयता का सुंदर निदर्शन हुआ है। उनकी टीका और समीक्षाओं को दृष्टि में रखते हुए शोध कार्य होने चाहिए। प्रो. भगवत्वशरण शुक्ल, वाराणसी ने कहा कि कालिदास ने लौकिक के साथ वैदिक मर्यादा का अनुपालन किया। युवा पीढ़ी उनके साहित्य के अध्ययन के लिए गहरी साधना करें। डॉ. पंकज भाम्बुरकर, पुणे ने कहा कि कालिदास साहित्य के कला संदर्भों पर शोध की दिशाओं पर प्रकाश डाला। सत्र में प्रो. सरोज कौशल, जोधपुर ने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि महाकवि कालिदास के काव्यों पर बहुत बड़े परिमाण में लिखा गया है, जिसके संदर्भों का साक्ष्य शोधार्थियों को देना चाहिए। वर्तमान में विविध स्त्री पात्रों को लेकर शोध कार्य करने की आवश्यकता है। अंतिम शोध-सत्र में जिन शोध प्रस्तोताओं ने अपने शोध आलेखों का वाचन किया, उनमें डॉ. नवीन मेहता, साँची, प्रो. धर्मदत्त चतुर्वेदी, सारनाथ, डॉ. मनीषा सोनी, देवास, डॉ. आरती पुंढीर, नई दिल्ली, डॉ. नलिनी सिंह, भोपाल, निधि त्रिपाठी, चिंकी कुमारी, आगरा, डॉ पाँखुरी वक्त जोशी, उज्जैन एवं डॉ. राजीव रंजन, नई दिल्ली सम्मिलित थे। प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत कालिदास समिति के सचिव प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा, प्रभारी निदेशक डॉ. संतोष पण्ड्या, डॉ रमण सोलंकी, डॉ. संदीप नागर ने किया। संचालन आगरा से आईं डॉ अनीता ने किया। आभार प्रदर्शन पुराविद् डॉ. रमण सोलंकी ने किया।

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