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मंदी से संभल नहीं पाएगी पूरी दुनिया, केवल दो देश दिखा सकते हैं दम

July 04, 2022


नई दिल्ली: कई सालों के बाद दुनिया के ऊपर फिर से मंदी (Global Recession) के बादल छाने लगे हैं. कोरोना महामारी, यूरोप में जारी लड़ाई (Russia-Ukraine War) और सप्लाई चेन की बाधाएं (Supply Chain Disruptions) जैसी समस्याओं से जूझ रही ग्लोबल इकोनॉमी (Global Economy) के ऊपर मंदी का खतरा पहले से हीं अधिक हो चुका है. इस बार मंदी का खतरा इस कदर गंभीर है कि दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति एलन मस्क (Elon Musk) को भी इसका डर सता रहा है. अब ग्लोबल ब्रोकरेज फर्म नोमुरा होल्डिंग्स (Nomura Holdings) ने भी इस खतरे को लेकर दुनिया को आगाह किया है.

इन कारणों से बढ़ा मंदी का जोखिम
नोमुरा ने एक ताजी रिपोर्ट में कहा है कि अगले 12 महीने के भीतर दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं मंदी की चपेट में आ जाएंगी. रिपोर्ट के अनुसार, सख्त होती सरकारी नीतियां और जीवन-यापन की बढ़ती लागत ग्लोबल इकोनॉमी को मंदी की ओर धकेल रही है. नोमुरा की बात पर यकीन करें तो दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका (US) के साथ-साथ यूरोपीय यूनियन (EU) के देश, ब्रिटेन (UK), जापान (Japan), दक्षिण कोरिया (South Korea), ऑस्ट्रेलिया (Australia) और कनाडा (Canada) जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाएं मंदी की चपेट में आ सकती हैं.

महंगाई होगी काबू, पर पड़ेगी मंदी की मार
नोमुरा ने कहा कि दुनिया भर के सेंट्रल बैंक्स (Central Banks) महंगाई (Inflation) को काबू करने के लिए ब्याज दरें बढ़ा रहे हैं. सेंट्रल बैंक्स नीतियों को काफी सख्त किए जा रहे हैं, भले ही इसका ग्लोबल ग्रोथ पर बुरा असर पड़े. उसने रिसर्च रिपोर्ट में कहा, ‘इस बात के संकेत बढ़ रहे हैं कि दुनिया की इकोनॉमी ग्रोथ की रफ्तार सुस्त पड़ने की दिशा में बढ़ रही है. इसका मतलब हुआ कि ग्रोथ के लिए अर्थव्यवस्थाएं अब निर्यात में सुधार आने की बात पर निश्चिंत नहीं रह सकती हैं. इन्हीं कारणों ने हमें एक से अधिक अर्थव्यवस्थाओं में मंदी का अनुमान जाहिर करने पर बाध्य किया है.’

अमेरिका पर होगा मंदी का बड़ा असर
रिपोर्ट के अनुसार, महंगाई की ऊंची दर बनी रहने वाली है, क्योंकि कीमतों का प्रेशर अब कमॉडिटीज तक सीमित नहीं रहा है, बल्कि सर्विस सेक्टर, रेंटल और वेतन भी इसकी मार झेल रहे हैं. हालांकि नोमुरा का कहना है कि मंदी कितनी भयावह होगी, यह अलग-अलग देशों के लिए अलग होगी. अमेरिका के बारे में नोमुरा ने कहा कि दुनिया की सबसे बड़ी इकोनॉमी इस साल की अंतिम तिमाही यानी अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में मंदी की चपेट में जा सकती है. अमेरिका में मंदी पांच तिमाही यानी 01 साल 04 महीने तक रह सकती है.


रूस के एक कदम से हिल जाएगा यूरोप
यूरोप के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर रूस ने गैस सप्लाई (Russia Gas Supply) पूरी तरह से रोक दिया तो यूरोपीय देशों में मंदी की मार और गंभीर हो सकती है. रिपोर्ट के अनुसार, अगले साल यानी 2023 में अमेरिका और यूरोप की इकोनॉमी 01 फीसदी की दर से कम हो सकती है. वहीं ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और दक्षिण कोरिया जैसी मध्यम आकार की अर्थव्यस्थाओं को लेकर नोमुरा ने कहा कि अगर ब्याज दरें बढ़ने से हाउसिंग सेक्टर कॉलैप्स हुआ तो इन देशों में मंदी अनुमान से ज्यादा भयावह हो सकती है. दक्षिण कोरिया में मंदी की मार सबसे ज्यादा पड़ेगी और इस देश की इकोनॉमी का साइज इस साल जुलाई-सितंबर तिमाही में 2.2 फीसदी कम हो सकता है.

भारत और चीन को नहीं छू पाएगी मंदी
एशियाई अर्थव्यस्थाओं की बात करें तो जापान के ऊपर भी मंदी का खतरा है. एशिया की दूसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी जापान में मंदी की मार तुलनात्मक रूप से कम रह सकती है. जापान को पॉलिसी सपोर्ट और इकोनॉमिक रीओपनिंग में देरी से मदद मिल सकती है. वहीं एशिया की सबसे बड़ी और दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी चीन (China) को लेकर नोमुरा का मानना है कि अनुकूल नीतियों के कारण यह देश मंदी की मार से बच सकता है. हालांकि चीन के ऊपर जीरो-कोविड स्ट्रेटजी के चलते कड़े लॉकडाउन का खतरा है. प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेज ग्रोथ रेट वाला देश भारत (India) भी मंदी की मार से अछूता रह सकता है. हालांकि ग्लोबल इकोनॉमी की मंदी के सीमित असर की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है.

अभी और डूबेगा शेयर बाजार
अगर आप भी शेयर मार्केट (Share Market) में गिरावट का दौर थमने का इंतजार कर रहे हैं, तो नोमुरा ने अपनी रिपोर्ट में आपके लिए बुरी खबर दी है. ब्रोकरेज फर्म का साफ मानना है कि हाल-फिलहाल शेयर बाजारों की गिरावट थमने के संकेत नहीं हैं. नोमुरा ने कहा कि मंदी के डर से बाजार में अभी और गिरावट आने वाली है. हालांकि बाजार के लिए राहत की बात सिर्फ यह हो सकती है कि मंदी का असर कुछ कम रह सकता है. रिपोर्ट के अनुसार, मंदी के चलते अमेरिकी इकोनॉमी का साइज करीब 1.5 फीसदी गिरने की आशंका है, जबकि इसमें महामारी के दौरान करीब 10 फीसदी की और महान आर्थिक मंदी के चलते करीब 04 फीसदी की गिरावट आई थी.

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