इंदौर। वर्तमान बायपास को तो लगभग चौपट कर ही दिया और इंदौर के मास्टर प्लान में प्रस्तावित आउटर रिंग रोड, जिसे सुपर बायपास का नाम भी दिया गया उसका प्रावधान सिर्फ कागजों पर ही रह गया। कुछ वर्ष पूर्व इसके पश्चिमी हिस्से के निर्माण की हलचल नेशनल हाईवे ने शुरू की थी। मगर जमीन अधिग्रहण से लेकर अन्य मदद राज्य शासन ने नहीं की, जिसके चलते प्रोजेक्ट ही बंद कर दिया गया। मगर अब एक बार फिर राऊखेड़ी से उमरिया तक के 40 किमी के आउटर रिंग के पश्चिमी हिस्से को बनाने की सुगबुगाहट शुरू हुई है। अभी 31 अगस्त को दिल्ली में केन्द्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने इस संबंध में बैठक बुलाई है, जिसमें नेशनल हाईवे अथॉरिटी के अधिकारी तो शामिल रहेंगे, वहीं ऑनलाइन भी इंदौर के पुलिस-प्रशासन प्राधिकरण अधिकारियों से चर्चा की जाएगी।
राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना के सातवें चरण के तहत फोर लेन के आउटर रिंग रोड का निर्माण बायपास के बाहर किया जाना था और यह रिंग रोड शहर को बाहरी ओर से जोड़ता। इसका एक हिस्सा पश्चिमी रिंग रोड का 40 किलो मीटर का पहले बनाने का निर्णय 2010 में भी लिया गया था। रिंग रोड, राऊखेड़ी, गाड़ी पिपल्या, उज्जैन रोड जेल के पीछे, पालिया हातोद के पहले, जम्बुड़ी हब्सी, पिपल्याराव, धरनावदा, कलारिया, पीथमपुर के पास, सोंदवाय घौंसला होते हुए उमरिया तक इस सुपर बायपास का निर्माण किया जाना था। वैसे तो पूरे आउटर रिंग रोड की लम्बाई 84 किलोमीटर की है, मगर इसके पूर्वी हिस्से को छोडक़र पश्चिमी हिस्से के लगभग 40 किलोमीटर के निर्माण का निर्णय पहले लिया गया था। अब एक बार फिर इस 40 किलोमीटर के फोर लेन आउटर रिंग रोड के निर्माण की हलचल शुरू हुई है। दरअसल कुछ समय पूर्व कलेक्टर मनीष सिंह ने भी इंदौर आए मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के समक्ष इंदौर के प्रस्तावित मास्टर प्लान, महत्वपूर्ण सडक़ों, उससे जुड़े प्रोजेक्टों के साथ-साथ बायपास और आउटर रिंग रोड के संबंंध में प्रजेंटेशन दिया था। मुख्यमंत्री के निर्देश पर ही अभी प्रशासन, नगर निगम और नगर तथा ग्राम निवेश ने वर्तमान बायपास के अवैध निर्माणों को चिन्हित कर नोटिस देने की कार्रवाई शुरू कर दी है। वहीं 31 अगस्त को केन्द्रीय मंत्री श्री गडकरी ने महत्वपूर्ण बैठक भी बुलाई है, जिसमें 40 किलोमीटर लम्बे पश्चिमी क्षेत्र के रिंग रोड के निर्माण पर चर्चा होगी। इसमें इंदौर-भोपाल के नेशनल हाईवे, लोक निर्माण विभाग के आला अधिकारियों को भी दिल्ली मीटिंग के लिए बुलाया है, तो वीडियो कान्फ्रेंस के जरिए मीटिंग के दौरान पुलिस-प्रशासन और इंदौर विकास प्राधिकरण सहित नगर तथा ग्राम निवेश के अधिकारी भी मौजूद रहेंगे। दरअसल, प्राधिकरण अभी इस पूरे रोड का निर्माण नहीं कर सकता, क्योंकि एक बड़ा हिस्सा निवेश क्षेत्र के बाहर है। चूंकि 2035 के मास्टर प्लान की कवायद चल रही है, लिहाजा उसमें यह पूरा हिस्सा शामिल किया जा सकता है। फिलहाल तो मीटिंग के बाद ही तय होगा कि इस पश्चिमी रिंग रोड के फोर लेन को कौन-सी एजेंसी बनाएगी।
एमआर-9 से
एमआर-10 की लिंक रोड भी बनेगी
हाईकोर्ट में लगी याचिका के मद्देनजर पिछले दिनों निर्देश दिए गए थे कि एमआर-9 से एमआर-10 को जोडऩे वाली 18 मीटर लिंक रोड का निर्माण किया जाए। योजना 171 में सर्वे नम्बर 85/2 में प्रस्तावित 12 मीटर मार्ग निर्माण के लिए प्राधिकरण ने गैर योजना मद में शासन से स्वीकृति मांगी थी, लेकिन शासन ने बॉम्बे हॉस्पिटल से लेकर महालक्ष्मी नगर और तुलसी नगर तक बनने वाली सडक़ की तरह इस लिंक रोड के लिए भी प्राधिकरण सीईओ को पत्र भेजा, जिसमें नवीन धारा 49 के परिपेक्ष में बोर्ड के समक्ष प्रकरण प्रस्तुत कर निर्णय लेने के निर्देश दिए।
11 साल पहले यह योजना फाइलों में हो गई थी दफन
वर्तमान बायपास चूंकि शहरी क्षेत्र में आ गया है और इस पर यातायात का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है, वहीं बड़ी संख्या में आवासीय, व्यवसायिक और अन्य गतिविधियां भी शुरू हो गई। इतना ही नहीं, सर्विस रोड बनाने के कारण नेशनल हाईवे ने बायपास को चौपट अलग कर डाला। सर्विस रोड के साथ संकरे बोगदे बना डाले। लिहाजा आउटर रिंग रोड, जिसे सुपर बायपास नाम दिया, उसका प्रावधान भी वर्तमान मास्टर प्लान में किया गया और 2010 यानी 11 साल पहले ही इसके निर्माण की हलचल शुरू हुई और बकायदा रेसीडेंसी कोठी पर बड़ी बैठक भी आयोजित की गई। लेकिन 11 साल बाद यह प्रोजेक्ट फाइलों में ही दफन हो गया, जिस पर अब एक बार फिर हलचल शुरू हुई है। 22 जनवरी 2010 को इस पश्चिमी हिस्से के रिंग रोड के निर्माण के लिए ही हुई बैठक में बकायदा लम्बा-चौड़ा प्रजेंटेशन भी दिया गया था।
मास्टर प्लान में भी 84 किमी के रोड का है प्रावधान
इंदौर का जो वर्तमान मास्टर प्लान 1 जनवरी 2008 से लागू होकर अभी 31 दिसम्बर 2021 तक है, उसमें भी लगभग 84 किलो मीटर आउटर रिंग रोड का प्रावधान किया गया है। यह बात अलग है कि मास्टर प्लान में जो महत्वपूर्ण सडक़ें बीते 40 सालों से प्रस्तावित की गई है वे आज तक नहीं बन सकी। एमआर से लेकर मास्टर प्लान की कई सडक़ें अभी भी आधी-अधूरी है, जिनके निर्माण की प्रक्रिया अब शुरू की गई है। उसी तरह आउटर रिंग रोड का प्रावधान भी प्लान तक ही सीमित रहा और अब प्लान समाप्त भी हो रहा है और आगामी 2035 के मास्टर प्लान में भी इस आउटर रिंग रोड का प्रावधान नए सिरे से किया जाएगा। अब उम्मीद कीजाना चाहिए कि आगामी मास्टर प्लान में प्रावधानित इस आउटर रिंग रोड के साथ-साथ अन्य महत्वपूर्ण सडक़ों का निर्माण समय सीमा में पूरो हो, वरना अवैध निर्माण बड़ी संख्या में हो जाते हैं।
जमीन ना मिलने पर वापस लौटा दिया था प्रोजेक्ट
नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने 84 किलोमीटर लम्बे इस सुपर बायपास के लिए लगभग 700 हेक्टेयर से अधिक जमीनों की मांग की थी, लेकिन राज्य शासन ने भू-अर्जन की प्रक्रिया कर जमीन ही उपलब्ध नहीं करवाई, जिसके चलते नेशनल हाईवे ने लगभग 1400 करोड़ रुपए की राशि वापस लौटा दी, जो केन्द्र सरकार ने इसके लिए मंजूर की थी। इस प्रोजेक्ट की 50 फीसदी राशि राज्य शासन को भी वहन करना थी, जिससे जमीन अधिग्रहण सहित अन्य प्रक्रिया पूरी होती। सुपर बायपास के लिए लगभग 100 से ज्यादा गांवों की जमीनें अधिग्रहित करना थी और उस वक्त तो पुराना अधिग्रहण कानून लागू था, मगर अब जो नया भूमि अधिग्रहण कानून आया है उसमें तो निजी जमीनें हासिल करना ही अत्यंत मुश्किल हो गया है और बाजार दर से दो से चार गुना नकद मुआवजे का प्रावधान अलग कर दिया गया है।
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