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    तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे मैं एक शाम चुरालूं अगर बुरा न लगे…

  • February 07, 2023

    यूं ही शाख से पत्ते गिरा नहीं करते…
    बिछड़ के लोग भी ज्यादा जिया नहीं करते…
    जो आने वाले हैं मौसम उनका एहतराम करो…
    जो दिन गुजर गए उनको गिना नहीं करते…

    भोपाल को जो खूबसूरती कुदरत ने बक्शी है वो बेमिसाल है। झीलों, पहाड़ों और दरख्तों के हमराह बह रही पुरवाई दिल के तारों को झनझना रही लगती है। मौसम का राजा वसंत अपने रूमानी मिजाज़ के उरूज पे पहुंचा जा रहा है। सर्दी की विदाई और गर्मी की आमद का ये मिलाप कितना दिलकश है। ऐसा महसूस हो रहा है जैसे तीन महीने से शहर में डेरा डाले सर्दी जाना नहीं चाहती और गर्मी है कि शहर के दरवाजे पे आन खड़ी हुई है। मौसम के इस संधिकाल में कभी धूप चमकती है तो कभी ठंडी हवा के झोंके चहलक़दमी करने लगते हैं। कभी आसमान एकदम साफ हो जाता है तो कभी आवारा बादलों के टुकड़े सूरज की हल्की तपिश को रोक लेते हैं। वसंत की इस हसीन कैफियत को लफ्ज़़ों में पिरोना बड़ा कठिन होता है। लिहाज़ा हजऱते दिल हैं कि बहके बहके से फिर रहे हैं। इनदिनों बोट क्लब से लेके वनविहार तक और कलियासोत से लेके केरवा तक का नज़ारा आंखों में हमेशा के लिए बसना चाहता है। फिलवक्त क्या आपको केसरुल जाफरी साब का ये शेर याद नहीं आता -‘ तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे, मैं एक शाम चुरालूं गर बुरा न लगेÓ।


    वसंत के इन दिनों में ही हवाएं अपना रुख बदल के पहले शुमाली (दक्षिणी) और बाद में मगरिबी (पश्चिमी) हो जाएंगी। हवाओं के इस मिजाज़ ने शहर की दुपहरियों को सुस्त और अलसाया सा कर दिया है। भरी दुपहरी में कुछ देर आराम का मूड होता है। हवाओ के सिम्त दरख्तों से गिरते सूखे पत्ते शहर की शाहराहों पे बिखरे पड़े हैं। इन सूखे पत्तों की कतारों से बड़ा ही सुरीला संगीत सुनाई देने लगा है। आम पे बौर सजने लगे हैं। उधर आने वाले वक्त में टेसू और गुलमोहर पेड़ों की शाखों पे अंगारों से दहकेंगे। वहीं नीम, बबूल सहित तमाम दरख़्त अपने कपड़े बदलने में लगे हैं। कभी कभी कोयल की कूक माहौल को अलग ही रंगत दे रही लगती है। एक दौर था जब भोपाल के मौसम का अंदाज़ और भी ज़्यादा बेहतरीन हुआ करता था। ज़ाहिर है तब भोपाल इतना प्रदूषित नहीं था। गोया के पचास साठ बरस पेले तलक भोपाली हमीदिया रोड को ठंडी सड़क कहा करते थे। भोपाल से बैरसिया रोड पे दरख्तों की भरमार हुआ करती थी। इधर पुलबोगदा से आगे जंगल शुरु हो जाता था। रोशनपुरा नाके से भदभदा तक जंगल का अहसास होता था। बढ़ती आबादी और औद्योगिकीकरण से मौसम के खुशनुमा अंदाज़ को काफी ठेस पहुंची है। फिर भी भोपाल का शुमार ग्रीन सिटी के तौर पे ही किया जाता है। हम सबको चाहिए के भोपाल के पर्यावरण की हिफ़ाज़त करें।

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