इन्दौर। दहेज हत्या के जुर्म में वारंट निकला तो मुजरिम अपनी बीवी के साथ सरेंडर करने एंबुलेंस में ही कोर्ट पहुंच गया। जज ने मानवीयता का तकाजा देते हुए एंबुलेंस पर जाकर सजा वारंट पर उसके अंगूठे के निशान लगवाए और उसे जेल भिजवा दिया।
सूत्रों के मुताबिक घटना 1998 की खुड़ैल थाने की है। बहू को दहेज के लिए तंग कर मरने पर मजबूर करने के मामले में सनावदिया के रहने वाले ससुर दूले खान और उसकी बीवी कल्लो बी काफी समय से गिरफ्तारी से बच रहे थे। कोर्ट ने उन्हें फरार रहते ही दोषसिद्ध करार देते हुए सात साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई थी और उनके गैरजमानती वारंट जारी किए थे और आगामी 21 सितंबर को कोर्ट में हाजिर रहने के निर्देश दिए थे। इस मामले में उसके पुत्र नौशाद खान को पहले ही सजा सुनाकर जिला जेल भिजवा दिया गया था।
इस बीच सुप्रीम कोर्ट में भी विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) खारिज होने के बाद खान दंपति को सरेंडर करने के अलावा कोई चारा नजर नहीं आया। इसके चलते वे बुधवार को एंबुलेंस में ही सवार होकर जिला कोर्ट पहुंचे और जज के समक्ष सरेंडर की मंशा जताई। इस पर जज ने उनके वारंट वापस बुलाते हुए खुडै़ल पुलिस को तलब किया। खुड़ैल थाने के एसआई पीएल शर्मा कोर्ट में हाजिर हुए और वारंट लौटा दिए। दंपति का पुत्र नौशाद पहले ही जिला जेल में है, यह जानकारी देते हुए दूले खान के वकील ने कोर्ट को बताया कि उसे बीमारी के चलते ऑक्सीजन पर रखा जा रहा है। जेल में भी इसका इंतजाम कराया जाए। एजीपी संजय शर्मा के मुताबिक इस पर कोर्ट ने उसे जेल भेजते हुए जिला जेल अधीक्षक को आदेश दिए कि वे जेल मैन्युअल के हिसाब से मुलजिम को जीवनरक्षक सुरक्षा उपलब्ध कराएं। जेल में लाते समय उसकी कोरोना की जांच भी कराएं। इस दौरान मुलजिम कोर्ट तक आने की स्थिति में नहीं था तो मानवता के नाते जज कोर्ट छोडक़र खुद एंबुलेंस तक पहुंचे और दोषसिद्धि के आदेश पर उसके दस्तखत करवाकर उसे जेल रवाना करवाया। इसके पहले दूले खां ने बचने की काफी कोशिश की थी और सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी लगाकर उसका आदेश आने तक गिरफ्तारी रोकने की मांग की थी, लेकिन उसके पक्ष में ऐसा कोई आदेश नहीं हुआ तो वह छिपता फिर रहा था। इसके बाद गत 28 जुलाई को शीर्ष अदालत से उसकी एसएलपी भी खारिज हो गई तो गैरजमानती वारंट निकलने के बाद उसने सरेंडर करना ही मुनासिब समझा।
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