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भारत में क्‍यों नहीं आयी विदेशी वैक्‍सीन इस सवाल पर केन्‍द्रीय स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री ने किया बड़ा खुलासा

February 19, 2022

नई दिल्ली। मॉडर्ना और फाइज़र जैसी कोरोना वैक्सीन (Corona vaccine like Moderna and Pfizer) आखिर भारत(India) में क्यों नहीं आ पाईं? केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय (Union Health Ministry) ने पहली बार इस सवाल का बेहद सटीक और विस्तृत जवाब दिया है. स्वास्थ्य मंत्रालय (Union Health Ministry) ने जो जवाब दिया है,उससे ज़ाहिर हो गया है कि मॉडर्ना और फाइज़र (Moderna and Pfizer) जैसी वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों ने किस तरह से भारत को ब्लैकमेल करने की कोशिश की थी.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया (Union Health Minister Mansukh Mandaviya) ने कहा है कि ‘मॉडर्ना और फाइज़र की वैक्सीन भारत को एक बड़े बाज़ार के तौर पर देख रही थी और इन दोनों अमेरिकी कंपनियों को लगता था कि भारत कभी विदेशी वैक्सीन के बिना अपने देश की 136 करोड़ से ज्यादा आबादी को वैक्सीन नहीं लगा पाएगा.



स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने खुलासा करते हुए बताया कि नवंबर 2021 में भारत में कोरोना वायरस (Corona virus) की पहली लहर पीक पर थी. करीब 1 लाख केस प्रतिदिन आ रहे थे. ठीक इसी बीच मॉडर्ना और फाइज़र भारत सरकार से वैक्सीन खरीदने के लिए मोल भाव कर रही थी. भारत सरकार चाहती थी कि विदेशी वैक्सीन कंपनियां भारत के लिए वैक्सीन का निर्माण भारत में ही करें, लेकिन ये किसी कंपनी को मंज़ूर नहीं था. भारत के सामने ऐसी-ऐसी शर्तें रखी गईं कि उन्हें मानना आसान नहीं था. इसके बाद भारत ने मनमानी शर्तों के आगे नहीं झुकने का फैसला किया. इससे भारत को दिक्कत तो हुई. आलोचना भी झेली, लेकिन भारत ने ना केवल अपनी खुद की वैक्सीन बना ली बल्कि कई देशों को वैक्सीन बांटी भी.
लेखिका प्रियम गांधी मोदी द्वारा लिखी गई ‘A Nation To Protect- Leading India Through The Covid Crisis’ नाम की किताब के लॉन्च के मौके पर स्वास्थ्य मंत्री भी मौजूद थे. इस मौके पर केन्‍द्रीय मंत्री से पूछा गया कि विदेशी वैक्सीन भारत में क्यों नहीं आ पाई? अब तक सरकार इस सवाल के कूटनीतिक जवाब ही देती आई है, लेकिन इस सवाल पर पहली बार स्वास्थ्य मंत्री ने साफ किया कि आखिर ऐसा क्यों हुआ. उन्होंने कहा कि ये नया भारत है जो अपनी शर्तों पर चलता है. और हमने विदेशी कंपनियों के सामने झुकना मंज़ूर नहीं किया. हमने अपनी वैक्सीन बना ली.
मनसुख मंडाविया ने कहा कि अमेरिकी कंपनी मॉडर्ना ने भारत सरकार के सामने शर्त रखी कि वो वैक्सीन बेचेगी और वो भी शर्तों के साथ. मॉडर्ना ने Indemnity Against Liability Clause रखा. यानी वैक्सीन की वजह से कोई साइड इफेक्ट हो जाए या वैक्सीन की वजह से किसी की मौत हो जाए तो कंपनी की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी. इसी तरह फाइज़र कंपनी की शर्त थी कि उन्हें Sovereign Immunity Waiver मिले. मोटे तौर पर इस Waiver का मतलब ये है कि भारत के कानून के तहत कंपनी पर कोई केस नहीं चलाया जा सकेगा.
मनसुख मंडाविया ने कहा कि आज भारत में जो वैक्सीन बन रही हैं वो या तो पूरी तरह स्वदेशी हैं या भारत में ही बनाई जा रही हैं. कोवैक्सीन और कोवीशील्ड भारत में ही बनाई गई हैं. दो विदेशी वैक्सीन भारत में आई हैं. एक है रुस की स्पूतनिक और दूसरी है जॉनसन एंड जॉनसन की सिंगल डोज वैक्सीन. इन दोनों को भारत सरकार ने मंज़ूरी दे दी. और ये दोनों भी भारतीय फार्मा कंपनियां ही बना रही हैं. यानी आज भारत में वही कंपनियां काम कर पा रही हैं, जो भारत की शर्तों के हिसाब से चली. वो कंपनियां नहीं जिन्होंने वैक्सीन बेचने के नाम पर भारत का खून चूसने की कोशिश की है.
इन कंपनियों ने वैक्सीन बेचने के नाम पर कई देशों का किस तरह शोषण किया है. फाइजर कंपनी ने अर्जेंटीना की सरकार से कहा था कि अगर उसे कोरोना की वैक्सीन चाहिए तो वो एक तो ऐसा इंश्‍योरेंस यानी बीमा खरीदे जो वैक्सीन लगाने पर किसी व्यक्ति को हुए नुकसान की स्थिति में कंपनी को बचाए. यानी अगर वैक्‍सीन का कोई साइड इफेक्‍ट होता है, तो मरीज को पैसा कंपनी नहीं देगी, बल्कि बीमा कंपनी देगी.जब सरकार ने कंपनी की बात मान ली थी, तो फाइजर ने वैक्सीन के लिए नई शर्त रख दी और कहा था कि इंटरनेशनल बैंक में कंपनी के नाम से पैसा रिजर्व करे. देश की राजधानी में एक मिलिट्री बेस बनाए जिसमें दवा सुरक्षित रखी जाए. एक दूतावास बनाया जाए जिसमें कंपनी के कर्मचारी रहें ताकि उनपर देश के कानून लागू न हों.

ब्राजील के साथ भी फाइजर कंपनी ने वैक्सीन के बदले ऐसी ही तीन मुश्किल शर्तें रखी थी. पहली शर्त, वैक्सीन का पैसा बैंक के इंटरनेशनल अकाउंट में जमा करना है. दूसरा ये कि साइड इफेक्‍ट्स होने पर कंपनी के ऊपर मुकदमा नहीं चलेगा और तीसरी शर्त ये कि ब्राजील अपनी सरकारी संपत्तियां कंपनी के पास गारंटी की तरह रखे. ताकि भविष्य में अगर वैक्सीन को लेकर कोई कानूनी विवाद हो तो कंपनी इन संपत्तियों को बेच कर उसके लिए पैसा इकट्ठा कर सके.

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