कैथल: प्रचंड गर्मी में जो राहत ठंडा पानी पीकर मिलती है, वह शायद किसी और चीज़ से नहीं मिल सकती. तपती गर्मी में अगर एक गिलास ठंडा पानी पीने को मिल जाए तो क्या कहने. लेकिन फ्रिज का ठंडा पानी नहीं, बल्कि मिट्टी के घड़े का पानी. फ्रिज का ठंडा पानी आपका गला खराब कर सकता है. आपको बीमार कर सकता है. लेकिन मिट्टी के घड़े का पानी पीने के अनगिनत फायदे हैं.
देखा जाए तो पिछले कुछ सालों से घरों में फ्रिज के होते हुए भी घड़े का चलन बढ़ा है. इसका कारण है लोग सेहत को लेकर पहले से ज्यादा जागरूक हुए हैं. पर क्या आपने कभी सोचा कि जो घड़ा तपती गर्मी में आपके गले को ठंडक पहुंचाकर प्यास बुझाता है, वह कैसे बनता है? कौन बनाता है? उसकी लागत क्या है? जितना मजा इसके ठंडे पानी के स्वाद में आता है, उतनी ही कड़ी मेहनत इसे बनाने में लगती है.
कैसे बनाया जाता है मिट्टी का घड़ा?
कारीगर बताते हैं की पहले दाम देकर मिट्टी खरीदकर लाते हैं और उसके बाद मिट्टी को सुखाया जाता है. सूखने के बाद मिट्टी को बारीक किया जाता है और उसके बाद उसे आटे की तरह गूंथ कर तैयार कर लिया जाता है. इसके बाद घूमने वाले चाक की मदद से एक बर्तन की शेप दी जाती है. लेकिन अभी घड़ा तैयार नहीं हुआ, बल्कि अभी तो इसके ऊपर बहुत काम होता है और लगभग 1-2 घंटे की प्रोसेस में एक घड़ा तैयार होता और जिसके बाद पकाना बाकी रह जाता है.
आगे बताया कि चाक से उतरने के बाद घड़े को कारीगर के औजारों से पीट-पीटकर एक घड़े की शेप दी जाती है, जिसमे 1 घंटे का समय लगता है. इसके बाद घड़े को एक सांचे में सूखने के लिए रखा जाता है और घड़ा सूखने के बाद दोबारा से उसको शेप देने के लिए रेत डालकर पीटा जाता है, जिसके बाद फाइनली घड़ा तैयार होता है. कुछ देर धूप में सुखाने के बाद जब इसकी नमी चली जाती है तो फिर आग में डालकर इसके पका लिया जाता है.
घड़ा बनाने वाले महावीर बताते हैं की घड़ा बनाने में जितनी मेहनत लगती है, उसके मुताबिक घड़ों को बेचकर मिलने वाला दाम कुछ भी नहीं. वहीं आज के आधुनिकता के युग में कारीगर काम छोड़ रहे हैं, क्योंकि लोग घड़े की बजाय फ्रिज का पानी पीना पसंद करते हैं. फिर भी बुजुर्ग और तासिर की समझ रखने वाले लोग आज भी घड़े का ही ठंडा पानी पीना पसंद करते हैं. महावीर बताते हैं की आसपास के क्षेत्र में सिर्फ वही घड़े बनाते हैं और सभी काम छोड़ चुके हैं. वहीं महावीर को यही डर है की आगे आने वाली पीढ़ियों में शायद घड़े बनाने वाले भी न बचें, क्योंकि आमदनी और मेहनत का सही मेल नहीं हो पाता.
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