होली के सतरंगी रंगों की खुमारी रंग पंचमी तक चलेगी। गोया के होली की मस्ती भरी फुहारों में इंसानी गिले-शिकवे भी धुल जाते हैं। कल भोपाल के गली मुहल्लों से लेके घरों घर खूब होली खेली गई। कहीं भांग तो कहीं सोमरस के भोग लगाए गए। कल अखबारों की छुट्टी थी लिहाज़ा आज अखबार नहीं आये। अखबार से याद आया जनाब के कबी भोपाल में अखबारों में होली के टाइटल देने की रिवायत हुआ करती थी। शहर की मुख्लिस और मख़सूस हस्तियों को होली की उपाधियां जब अखबारों में शाया होतीं तो पूरे भोपाल में चर्चा हो जाती। आइये आज आपको भोपाल के दो ऐसे सहाफियों (पत्रकारों) से रूबरु करवाएं जो अपने अखबारों में होली के टाइटल दिया करते थे। पेले जि़कर करेंगे। मध्य प्रदेश के वजूद में आने के पेले यानी 1952 से सन 60 तक ये सिलसिला चला। भोपाल के अखबार नवभारत में होली के टाइटल उस दौर के नामवर सहाफी मरहूम सत्यनारायण श्रीवास्वत दिया करते थे। उस वखत इब्राहिमपुरे में लाला मुल्कराज की हवेली के एक किराए के कमरे से निकलता था। सत्यनारायण श्रीवास्तव इसे निकालते थे। दरअसल तब नवभारत का हेड आफिस जबलपुर में था। ब्रॉड शीट पे जबलपुर से अखबार भोपाल आता था। भोपाल से नवभारत टेबलॉयड साइज का होता था। इसे जबलपुर से आनेवाले नवभारत के साथ रख के बेचा जाता। मरहूम सत्यनारायण श्रीवास्तव साब 8 पेज के मल्टीकलर होली नम्बर की महीने भर पेले से तैयारियां करते। तब नवभारत की टेबलॉयड साइज की वजे से उसे बच्चा नवभारत कहा जाता था। इसके पेले पेज पे भोपाल की सियासत, नोकरशाही और सामाजिक इदारों की हस्तियों को भोत दिलचस्प होली के टाइटल दिए जाते। तब भोपाल स्टेट के सीएम शंकर दयाल शर्मा और उनकी कैबिनेट को होली की उपाधियां पूरे शहर में चर्चा का विषय बन जातीं। उनके मंत्रियों, अफसरों और विधायकों को भी होली के टाइटल दिए जाते। भोपाल की अदबी जगत के शायरों, लेखकों, अफ़सानानिगारों को भी दिलचस्प होली के टाइटल दिए जाते। इस दौर में नवभारत का होली नम्बर लोग ढूंढ-ढूंढ के पढ़ते। मरहूम सत्यनारायण श्रीवास्वत ने होली के टाइटल का ये सिलसिला 1960 तक चलाया। मरहूम के फज़ऱ्न्द जनसंपर्क महकमे के डिप्टी डायरेक्टर प्रलय श्रीवास्तव के पास उस वक्त के नवभारत के कुछ अंक आज भी महफूज़ हैं।
विचित्र विनोद
मशहूर सहाफी, राइटर, अफसानानिगार और कवि मरहूम विचित्रकुमार सिन्हा ने 1972 में तन्ज़ो-मिज़ाह (हास्य-व्यंग्य) का रिसाला विचित्र विनोद शुरु किया। ये अदबी हलक़ों में बड़ा मक़बूल हुआ। चंदा भैया भी विचित्र विनोद का होली नम्बर निकालते थे। उसमें भोपाल की सियासी, समाजी, सहाफत, अफसरशाही, व्यापारी, डाक्टर से लेके पुलिस वालों को होली के बेहतरीन टाइटल दिए जाते थे। हर टाइटल सामने वाले के किरदार पे बड़ा ही सटीक फिट होता था। होली के ये टाइटल चौपाइयों की तरह लिखे जाते। उस वक्त विचित विनोद बड़ी डिमांड में आ जाता। सन 1989 में इस पाक्षिक रिसाले को चंदा भैया के सहाफी फरजंद कृष्णकांत सक्सेना ने साप्ताहिक कर दिया। खास बात ये है कि विचित्र विनोद रिसाला आज भी शाया होता है। आज भी इस रिसाले का होली विशेषांक निकाला जाता है। इसमे आज भी सियासत, सहाफत सहित तमाम जानी मानी हस्तियों को होली के टाइटल दिए जाते हैं। अब इस काम मे कृष्णकांत सक्सेना के फज़ऱ्न्द विलक्षण सक्सेना भी टाइटल लिखने लगे हैं। गुजिश्ता 6 मार्च को विचित्र विनोद के होली अंक का इजरा किया गया। इसमे चौपाई नुमा टाइटल दिये गए हैं।
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