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    राष्ट्रप्रेम का ज्वार, अखंड भारत का सपना हो सकार

  • August 14, 2022

    – सुरेश हिन्दुस्थानी

    वर्तमान में जब कहीं से भी देश को तोड़ने की बात आती है तो स्वाभाविक रूप से उसका प्रतिकार भी जबरदस्त तरीके से होता है। यह प्रतिकार निश्चित रूप से उस राष्ट्रभक्ति का परिचायक है, जो इस भारत देश को देवभूमि भारत के रूप में प्रतिस्थापित करने का प्रमाण प्रस्तुत करने का अतुलनीय सामर्थ्य रखती है। यह आज के समय की बात है, लेकिन हम उस कालखंड का अध्ययन करें, जब भारत का विभाजन दर विभाजन हुआ। उस समय के भारतीयों के मन में विभाजन का असहनीय दर्द हुआ। जो असहनीय पीड़ा के रूप में उनके जीवन में प्रदर्शित होता रहा और देश को जगाते-जगाते वे परलोक गमन कर गए।

    अभी तक भारत देश के सात विभाजन हो चुके हैं। जरा कल्पना कीजिए कि अगर आज भारत अखंड होता तो वह दुनिया की महाशक्ति होता। उसके पास मानव के रूप में जनशक्ति का प्रवाह होता। लेकिन विदेशी शक्तियों ने भारत के कुछ महत्वाकांक्षी शासकों को प्रलोभन देकर भारत पर एकाधिकार किया और योजना पूर्वक भारत को कमजोर करने का प्रयास किया। आज जिस भारत की तस्वीर हम देखते हैं, वह अंग्रेजों और उन जैसी मानसिकता रखने वाले लालची भारतीयों द्वारा किए गए कुकृत्यों का परिणाम ही है। बावजूद इसके आज भी भारत में एक वर्ग ऐसा भी है, जिनकी आंखों में अखंड भारत का सपना है। उनके मन में अखंड भारत बनाने का संकल्प है। इसी संकल्प के आधार पर वे सभी इस दिशा में सार्थक प्रयास भी कर रहे हैं।

    भारतीय मनीषी और राष्ट्र के साथ एकात्म भाव रखने वाले महर्षि अरविंद ने विभाजन के असहनीय दर्द को आमजन की दृष्टि से देखने का आध्यात्मिक प्रयास किया। तब उनकी आंखों के सामने अखंड भारत का स्वरूप दिखाई दिया। तब उन्होंने कहा था कि देर कितनी भी हो जाए, पाकिस्तान का विघटन और उसका भारत में विलय होना निश्चित है। राष्ट्र के प्रति इसी प्रकार का एकात्म भाव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर उपाख्य श्रीगुरुजी के जीवन में भी दृष्टव्य होता रहा। वे अपने शरीर को भारत देश की प्रतिकृति ही मानते थे। जब भी देश पर कोई संकट आता था, तब उनके शरीर में वैसा ही कष्ट होता था। इसलिए कहा जा सकता है कि उनको राष्ट्र की समस्याओं का पूर्व आभास भी होता था। जहां तक अखंड भारत की बात है तो यह मात्र कहने भर के लिए ही नहीं, बल्कि एक शाश्वत विचार है। वह आज भी भारत की हवा में गुंजायमान होता रहता है। विचार करने वाली बात यह भी है कि जब भारत के टुकड़े नहीं हुए थे, तब हमारा देश पूरे विश्व में ज्ञान का आलोक प्रवाहित कर रहा था। विश्व का सर्वश्रेष्ठ ज्ञान भारत के संत मनीषियों के पास विद्यमान था। इसलिए भारत के सिद्ध संत केवल भारत के संत न होकर जगद्गुरु के नाम से विख्यात हुए। उनकी दृष्टि में पूरा विश्व एक परिवार की तरह ही था।

    इतिहास का अध्ययन करने से पता चलता है कि महाभारत कालीन गांधार देश यानी आज का अफगानिस्तान वर्ष 1747 में भारत से अलग हो गया। इसी प्रकार 1768 से पूर्व नेपाल भी भारत का अंग ही था। 1907 में भारत से अलग होकर भूटान देश बना। 1947 में पाकिस्तान का निर्माण हुआ। 1948 में श्रीलंका अस्तित्व में आया। इसी प्रकार पाकिस्तान से अलग हुआ बांग्लादेश 1971 में एक अलग देश के रूप में स्थापित हुआ। जरा विचार कीजिए ये सभी देश आज भारत का हिस्सा होते तो भारत की शक्ति कितनी होती? आज कोई अखंड भारत की बात करता है तो कई लोग इसे असंभव कहने में संकोच नहीं करते। यहां पहली बात तो यह है कि हम किसी देश को छीनने की बात नहीं कर रहे हैं, बल्कि अपने देश के विभाजित भाग को भारत में मिलाने की ही बात कर रहे हैं। कभी भारत के हिस्से रहे देशों को भारत में मिलाने की बात करना असंभव नहीं माना जा सकता। आज धीरे ही सही, लेकिन भारत उस दिशा की ओर बढ़ता दिख रहा है। जबकि जो देश भारत से अलग हुए हैं, उनमें से अधिकांश देश बहुत बुरे दौर से गुजर रहे हैं। श्रीलंका की स्थिति सबके सामने आ चुकी है। पाकिस्तान भी उसी राह पर बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है। बांग्लादेश में भुखमरी के हालात हैं। अफगानिस्तान खौफ के वातावरण में जी रहा है। सवाल यह उठता है कि इन देशों को भारत से अलग होने के बाद क्या मिला? जवाब है- कुछ नहीं।

    वर्तमान में भारत में स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। चारों तरफ राष्ट्रभक्ति का ज्वार उफन रहा है। देश की जनता ने इस महोत्सव को एक मेले का रूप प्रदान किया है। इसमें राष्ट्रीय एकता का भाव भी है तो भारत की संस्कृति का प्रवाह भी। भारतीय संस्कृति सबको जोड़ने का प्रयास करती है, जबकि अन्य संस्कृति में विश्व बंधुत्व का भाव नहीं है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि भारतीय संस्कृति के माध्यम से पूरे विश्व को एक ऐसी दिशा का बोध कराया जा सकता है, जहां शांति भी है और प्रगति के रास्ते भी हैं। अब इस दिशा में और अधिक तेजी से कदम बढ़ाने की आवश्यकता है। इसके लिए अमृत महोत्सव से अच्छा अवसर हो ही नहीं सकता। इसलिए सभी भारतीय नागरिक इस दिशा में आगे आकर उस प्रवाह में शामिल होने का प्रयास करें, जो भारत को अखंड बनाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। अखंड भारत की संकल्पना जहां भारत को ठोस आधार प्रदान करने में सहायक होगा, वहीं यही आधार भारत को पुन: विश्व गुरु के सिंहासन पर आसीन करेगा, यह तय है।

    (लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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